कोल्हू का बैल: समझदारी की सीख- एक बार की बात है, एक तेली के पास कोल्हू का बैल था। बैल पूरे दिन तेल निकालने के लिए कोल्हू घुमाता रहता था। तेली ने बैल की आँखों पर पट्टी बांध रखी थी, ताकि बैल यह न समझ सके कि वह सिर्फ एक ही जगह पर घूम रहा है। एक दिन, वहाँ से एक दार्शनिक गुजरा।
दार्शनिक ने तेली से पूछा, "तुमने इस बैल की आँखों पर पट्टी क्यों बांध रखी है?"
तेली मुस्कुराते हुए बोला, "अगर पट्टी न हो, तो यह समझ जाएगा कि यह एक ही जगह पर घूम रहा है और चलना बंद कर देगा।"
दार्शनिक ने फिर सवाल किया, "लेकिन जब तुम सो रहे होते हो, तब कैसे पता चलता है कि बैल चल रहा है या नहीं?"
तेली ने जवाब दिया, "इसके गले में घंटी लटकी हुई है। जब बैल चलता है तो घंटी बजती रहती है। अगर घंटी बंद हो जाती है, तो मैं समझ जाता हूँ कि यह रुक गया है।"
दार्शनिक ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "क्या यह संभव नहीं कि बैल एक ही जगह खड़ा होकर अपनी गर्दन हिलाकर घंटी बजा रहा हो?"
तेली झुंझलाते हुए बोला, "यह बैल है, दार्शनिक नहीं, जो इतनी धूर्तता सोच सके।"
दार्शनिक हँसते हुए बोला, "शायद तुम सही कह रहे हो। लेकिन किसी भी चीज पर बिना गहराई में गए अपनी धारणा बना लेना हमें मूर्ख बना सकता है।"
तेली ने दार्शनिक की बात पर विचार किया और कहा, "आपकी बात सच है। मुझे अपनी सोच में सुधार करना होगा।"
सीख:
यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें बिना सोचे-समझे किसी भी चीज का निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए। विचारशीलता और विवेक से ही सही निर्णय लिया जा सकता है। अनावश्यक बहस से बचना चाहिए और अपने ज्ञान का सदुपयोग करना चाहिए।
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