दादा जी का अमूल्य पेड़: रिश्ते और प्रकृति का अनमोल सबक

यह प्रेरणादायक हिंदी कहानी (Hindi Motivational Story) सुरेश और उसके दादा जी के गहरे रिश्ते को दर्शाती है, जिसकी निशानी आंगन में लगाया गया एक आम का पेड़ है।

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यह प्रेरणादायक हिंदी कहानी (Hindi Motivational Story) सुरेश और उसके दादा जी के गहरे रिश्ते को दर्शाती है, जिसकी निशानी आंगन में लगाया गया एक आम का पेड़ है। दादा जी की मृत्यु के बाद, जब पेड़ से चोट लगने पर पिता उसे काटना चाहते हैं, तो सुरेश मजबूत तर्क और हृदयस्पर्शी भावनाओं से अपने पिता को रोकता है। वह उन्हें समझाता है कि यह पेड़ केवल लकड़ी नहीं है, बल्कि दादा जी का आशीर्वाद, पर्यावरण का लाभ, और उनकी अमूल्य यादों का प्रतीक है। अंत में, पिता अपनी गलती मानते हैं और पेड़ को न काटने का निर्णय लेते हैं। यह कहानी हमें रिश्तों के मूल्य, प्रकृति प्रेम, और बड़ों की विरासत का सम्मान करना सिखाती है।

सुरेश एक नटखट और प्यारा बच्चा था, जो अपने दादा जी, बाबा रामदीन, की जान था। गाँव की गलियों में अक्सर दोनों की जोड़ी घूमती दिखती थी। बाबा रामदीन रोज़ाना सुरेश के लिए बाज़ार से मीठे फल लेकर आते थे, जिन्हें खाकर सुरेश खुशी से झूम उठता। दादा जी उसे कभी डांटते नहीं थे, बस प्यार से समझाते थे।

एक धूप वाली दोपहर, आम खाते हुए सुरेश ने कहा, "दादा जी, अगर हम इतने सारे रसीले फल खाने के लिए बाज़ार से न खरीदकर, अपने आंगन में ही सभी तरह के पौधे लगा दें, तो कितना अच्छा हो! हम रोज़ ताज़े फल तोड़कर खाएंगे!"

दादा जी मुस्कुराए। उनकी आँखों में असीम स्नेह था। उन्होंने जवाब दिया, "वाह, मेरे सुरेश! क्या विचार है! पर देखो बेटा, सिर्फ फल खाने की बात नहीं है। आज हम आम का एक पेड़ लगाएंगे। तुम्हें एक सबसे ज़रूरी बात का ध्यान रखना होगा – तुम्हें हर रोज़ इस नन्हे पौधे को पानी देना होगा, इसका ख़्याल रखना होगा। यह पेड़ केवल पेड़ नहीं, बल्कि हमारी जिम्मेदारी और रिश्ते की निशानी होगा।"

सुरेश ने तुरंत हामी भर दी। "हाँ, दादा जी! मैं वादा करता हूँ। मैं इसे अपना दोस्त समझकर बड़ा करूंगा!"

उसी शाम, शुभ मुहूर्त देखकर, बाबा रामदीन ने आंगन के बीचों-बीच एक आम का पौधा लगा दिया। यह दिन सुरेश के लिए एक अविस्मरणीय स्मृति बन गया।

यादों का छाँव

समय तेज़ी से भागा। वर्षों बाद, सुरेश अब एक समझदार और युवा विद्यार्थी बन चुका था। आंगन का नन्हा पौधा अब घना और विशाल पेड़ बन गया था, जिसकी ठंडी छाँव में बैठकर सुरेश अपनी किताबें पढ़ता और आराम करता था।

पर समय के साथ बाबा रामदीन अब दुनिया में नहीं रहे थे। उनकी यादें हर पल सुरेश के दिल में बसी थीं, और उस आम के पेड़ को देखकर उसे हमेशा लगता कि दादा जी उसके आस-पास ही हैं। यह पेड़ मानो प्यार और मार्गदर्शन की एक जीवित मूर्ति था।

एक दिन, पेड़ पर मीठे-मीठे सुनहरे आम लगे। शाम को गली के कुछ शरारती बच्चों ने आम तोड़ने के लिए पत्थर फेंकना शुरू कर दिया। दुर्भाग्यवश, एक बड़ा पत्थर सीधा सुरेश की माँ के सिर पर जा लगा। उन्हें ज़ोरदार चोट आई और घाव हो गया।

सुरेश के पिता, रमेश जी, बहुत क्रोधित हुए। वह तुरंत बाज़ार गए और कुछ मज़दूरों को कुल्हाड़ी लेकर पेड़ काटने के लिए बुला लाए।

रमेश जी ने मज़दूरों से कहा, "काट दो इस झंझट के पेड़ को! इसकी वजह से आज मेरी पत्नी को चोट लगी है। कल फिर किसी को नुकसान होगा।"

जैसे ही मज़दूर ने पेड़ पर कुल्हाड़ी उठाई, सुरेश दौड़कर सामने आ गया।

तर्क और भावना

सुरेश ने कांपती आवाज़ में कहा, "पिताजी, रुक जाइए! इस पेड़ को मत काटिए!"

रमेश जी गुस्से में बोले, "हट जाओ सुरेश! तुम्हें नज़र नहीं आता, इस बेकार पेड़ से हमें कितना नुकसान हुआ है? बच्चे रोज़ पत्थर फेंकते हैं। यह खतरा है! इसे कट जाना ही चाहिए।"

सुरेश की आँखों में आंसू थे। उसने पेड़ के तने को कसकर पकड़ लिया और कहा, "पिताजी, यह सिर्फ एक पेड़ नहीं है। यह मेरे दादा जी की निशानी है! जब उन्होंने इसे लगाया था, तो मुझसे कहा था कि इसका ख़्याल रखना, इसे कभी नुकसान मत होने देना। यह पेड़ ही मेरी दादा जी से जुड़ी यादों का एकमात्र सहारा है।"

सुरेश ने अपनी बात को तर्क से आगे बढ़ाया, "पिताजी, यह पेड़ हमें ठंडी हवा देता है, इसकी लकड़ी से कीमती वस्तुएं बनती हैं, इसकी पत्तियां पूजा में काम आती हैं, और सबसे बड़ा फ़ायदा – यह पेड़ हमें पर्यावरण के महत्व को सिखाता है। पेड़ काटने से नुकसान का हल नहीं निकलता। हमें बच्चों को समझाना होगा। इस पेड़ को मत काटिए, दादा जी का आशीर्वाद इसी में है।"

सुरेश की माँ, जो घायल होने के बावजूद ये सब देख रही थीं, बाहर आईं। उन्होंने रमेश जी के कंधे पर हाथ रखा और कहा, "रमेश, सुरेश सही कह रहा है। यह हमारे बुजुर्गों की निशानी है। यह हमारे घर की शोभा है। बच्चों की गलती की सज़ा हम पेड़ को नहीं दे सकते। मुझे लगता है, हमें इस पेड़ की देखभाल और सुरक्षा के लिए बाड़ लगानी चाहिए।"

माँ और बेटे की गहरी भावनाओं और ठोस तर्कों के सामने रमेश जी का गुस्सा शांत हो गया। उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ।

उन्होंने कहा, "तुम दोनों सही हो। यह पेड़ वाकई हमारे लिए बहुत उपयोगी है और इसमें पिता जी का प्यार बसा है। मैं अपनी गलती मानता हूँ। हम इसे नहीं काटेंगे। बल्कि, अब हम इसकी और ज़्यादा देखभाल करेंगे।"

यह सुनकर सुरेश की आँखों में खुशी के आंसू आ गए। उसने पेड़ को गले लगाया और मन ही मन कहा, "दादा जी, आप हमेशा हमारे साथ रहना।"

कहानी से सीख (Moral of the Story):

best hindi story hindi के माध्यम से हमें यह सीख मिलती है कि:

  1. बड़ों की बात और विरासत का सम्मान: हमें अपने बुजुर्गों की सीखों और उनके द्वारा बनाई गई विरासत (जैसे दादा जी का पेड़) का हमेशा सम्मान करना चाहिए। वे न केवल यादें हैं, बल्कि हमारे लिए जीवन का मार्गदर्शन भी हैं।

  2. पेड़ों का महत्व: पेड़ हमारे जीवन का आधार हैं। वे हमें फल, लकड़ी, हवा और छाँव देते हैं। हमें छोटी-मोटी समस्याओं के कारण उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए, बल्कि उनका संरक्षण करना चाहिए।

  3. समस्या का समाधान: किसी समस्या का पहला हल 'नष्ट करना' नहीं होना चाहिए। हमें शांत मन से रचनात्मक समाधान (जैसे बाड़ लगाना) खोजना चाहिए।

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