लालच का फल: ट्रांसपोर्टर चंचल और वफ़ादार साथियों की कहानी

पढ़ें लालच का फल: ट्रांसपोर्टर चंचल और उसके वफ़ादार साथियों की यह प्रेरणादायक कहानी जो आपको सिखाएगी कि लालच में आकर अपनों का त्याग करने का अंजाम क्या होता है।

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Focus Keyword: लालच का फल (Lalach Ka Phal)

परिचय: नमस्कार! हम सब जानते हैं कि जीवन में ईमानदारी और मेहनत से कमाया गया सम्मान ही असली दौलत होती है। लेकिन जब हम लालच (Greed) के बहकावे में आ जाते हैं, तो अपनी छोटी-सी मगर क़ीमती चीज़ों की क़द्र करना भूल जाते हैं।

आज की यह प्रेरणादायक कहानी एक छोटे ट्रांसपोर्टर चंचल की है, जिसने बड़े मुनाफ़े के लालच में अपने वफ़ादार साथियों को छोड़ दिया। यह कहानी हमें सिखाएगी कि कैसे स्वार्थ और लालच का फल (Lalach Ka Phal) हमेशा कड़वा होता है। यह एक best hindi story hindi है जो सच्ची दोस्ती और मेहनत का महत्व बताती है।

चंचल ट्रांसपोर्टर और उसके मेहनती सहायक

एक छोटे क़स्बे में चंचल नाम का एक युवा ट्रांसपोर्टर रहता था। उसके पास "रफ़्तार कूरियर सेवा" नाम की एक छोटी सी कंपनी थी, जिसमें सिर्फ़ एक पुरानी वैन थी। इस वैन को चलाने में उसकी मदद करते थे दो बहुत ही वफ़ादार सहायकराजू (जो ड्राइविंग जानता था) और कालू (जो सामान की लोडिंग-अनलोडिंग करता था)।

राजू और कालू की मेहनत से चंचल का काम ठीक-ठाक चल रहा था। वे हमेशा मुश्किल से मुश्किल डिलीवरी भी मुस्कुराहट के साथ पूरी करते थे, और चंचल को उनका साथ बहुत पसंद था, लेकिन उसका मन संतुष्ट नहीं था।

चंचल अक्सर अपने छोटे से दफ़्तर में बैठकर शिकायत करता:

चंचल (राजू से): "राजू, यार! इस पुरानी वैन और इन छोटे-मोटे पार्सलों से क्या होगा? मुझे तो इस शहर का सबसे अमीर ट्रांसपोर्ट किंग बनना है! अगर मेरे पास 'हिमगिरी लॉजिस्टिक्स' (शहर की सबसे बड़ी कंपनी) जैसे पचास ट्रक हों, तो मेरी क़िस्मत पलट जाए!"

क़स्बे के बाहर एक पुराने मंदिर के पुजारी, दादा ज्ञानचंद, जो सबकी सुनते थे, अक्सर चंचल को समझाते:

दादा ज्ञानचंद (शांत आवाज़ में): "बेटा चंचल! जो तुम्हारे पास है, उसी में संतोष और श्रद्धा रखो। ये राजू और कालू तुम्हारी असली पूँजी हैं। याद रखना, लालच का फल अंत में पछतावा ही देता है।" चंचल (झुँझलाकर): "आप पुराने ज़माने के हैं, दादा! अब बड़ा बनने के लिए बड़ा दिल और बड़ी चाल चाहिए।"

चंचल ने हमेशा दादा ज्ञानचंद की सलाह को हँसकर टाल दिया।

तूफ़ान और बड़े टेंडर का खज़ाना

एक दिन, चंचल को एक पहाड़ी रास्ते पर छोटे पार्सल की डिलीवरी देनी थी। राजू और कालू अपनी पुरानी वैन लेकर उसके साथ थे।

अचानक, आसमान में भयंकर गरज के साथ बारिश शुरू हो गई। तूफ़ानी हवाएँ इतनी तेज़ थीं कि वैन चलाना मुश्किल हो गया। तूफ़ान से बचने के लिए, चंचल ने तेज़ी से पास के एक बड़े, बंद गोदाम की ओर गाड़ी मोड़ी।

जब वे गोदाम के अंदर पहुँचे, तो चंचल की आँखें फ़टी की फ़टी रह गईं। वहाँ पहले से ही शहर के सबसे बड़े ट्रांसपोर्टर, ठेकेदार बलवान सिंह, के बीस से ज़्यादा नए और क़ीमती ट्रक खड़े थे। ये ट्रक किसी बड़े सरकारी टेंडर का माल लेकर जा रहे थे।

चंचल (ख़ुशी से काँपते हुए): "अरे वाह! यह तो किस्मत का खजाना है! अगर ये ट्रक मेरे हो जाएँ, तो मैं रातों-रात राजा बन जाऊँगा! इन छोटे-मोटे पार्सलों और पुरानी वैन को कौन पूछेगा?"

उसने देखा कि ट्रक के साथ आए गार्ड और ड्राइवर तूफ़ान के कारण गोदाम के दूसरे छोर पर ऊँघ रहे थे।

अपनों का त्याग और धोखे का नाटक

चंचल के मन में तुरंत लालच का बीज फूट पड़ा। उसने सोचा, 'अब जब मुझे इतने बड़े ट्रक मिलने वाले हैं, तो ये पुरानी वैन और वफ़ादार सहायक मेरे किस काम के? ये तो सिर्फ़ मेरी दौलत में हिस्सा माँगेगे!'

चंचल तुरंत राजू और कालू के पास गया, जो बारिश थमने का इंतज़ार कर रहे थे।

चंचल (गुस्से में चिल्लाते हुए): "तुम दोनों बेकार हो! तुम मेरे साथ नहीं रह सकते! जाओ, अपनी यह पुरानी वैन लेकर यहाँ से निकल जाओ! अब मुझे तुम्हारी ज़रूरत नहीं है!"

राजू और कालू, इस कठोर व्यवहार से बहुत दुखी हुए।

राजू (आँखों में नमी के साथ): "मालिक, तूफ़ान बहुत तेज़ है। हम कहाँ जाएँगे?" चंचल (चीख़ते हुए): "कहाँ भी जाओ! मुझे तुम्हारी वफ़ादारी नहीं, दौलत चाहिए!"

चंचल ने उन्हें तूफ़ान और बारिश में बाहर निकाल दिया और ज़बरदस्ती वैन की चाबी छीनकर बाहर फेंक दी। वैन किसी तरह स्टार्ट हुई और राजू-कालू दुखी मन से वहाँ से निकल गए।

इसके बाद, चंचल ने तुरंत चालाकी शुरू की। उसने चुपचाप बलवान सिंह के गार्डों के लिए चाय का इंतज़ाम किया और उनकी बहुत चापलूसी करने लगा।

चंचल (मीठी आवाज़ में): "अरे साहब! आप तो इस शहर की शान हैं। आपके ट्रक तो सोने जैसे हैं! मैं बस आपकी सेवा करना चाहता था।"

गार्डों को लगा कि यह एक साधारण आदमी है, इसलिए उन्होंने उसे अनदेखा कर दिया।

ट्रकों का पलायन और लालच का शून्य

काफ़ी देर तक, चंचल ने चालाकी से ट्रकों के पास मंडराकर बलवान सिंह के गार्डों को उलझाए रखा।

जैसे ही तूफ़ान थमा और सड़कें साफ़ हुईं, चंचल ख़ुशी से उछल पड़ा।

चंचल (मन ही मन): "बस! अब मेरा समय आ गया है। मैं इन ट्रकों को चुराकर ले जाऊँगा।"

चंचल ने तुरंत सबसे आगे वाले ट्रक में घुसकर उसे स्टार्ट करने की कोशिश की, लेकिन ट्रक कोड से सुरक्षित था। उसने ज़ोर से हॉर्न बजाया और चिल्लाया:

चंचल (चिल्लाते हुए): "चलो! स्टार्ट हो जाओ! ये सब मेरी दौलत है!"

लेकिन कोई ट्रक नहीं हिला। बलवान सिंह के गार्डों की नींद खुली। बलवान सिंह, जो अब तक सो रहा था, उठा और अपने खास वॉकी-टॉकी पर एक गुप्त कोडवर्ड बोला।

कोड सुनते ही, सभी ट्रकों के ड्राइवर तुरंत हरकत में आ गए। सभी ट्रक एक साथ स्टार्ट हुए और एक पल में गोदाम से बाहर निकलकर तेज़ी से शहर की ओर रवाना हो गए।

चंचल (चीख़ते हुए): "अरे! कहाँ जा रहे हो? रुको! ये ट्रक मेरे हैं!"

बलवान सिंह ने चंचल की ओर देखा और दहाड़ लगाई: "अगर दोबारा मेरी दौलत के पास आया, तो जान से हाथ धो बैठेगा!" बलवान सिंह भी अपने ट्रक के पीछे रवाना हो गया।

लालच का कड़वा फल और सच्चा पश्चाताप

हारकर, थककर और खाली हाथ, चंचल वापस उस जगह लौटा जहाँ उसने अपने वफ़ादार साथी राजू और कालू को छोड़ा था। वहाँ न राजू था, न कालू, और न ही उसकी पुरानी वैन। सिर्फ़ टूटे हुए टायर के निशान और कीचड़ थी।

चंचल को एहसास हुआ कि उसने क्या खो दिया है।

तभी, दादा ज्ञानचंद धीरे-धीरे वहाँ पहुँचे।

दादा ज्ञानचंद (शांत और गहरी आवाज़ में): "क्या हुआ, चंचल? तुम्हें क्या मिला? क्या तुम शहर के सबसे अमीर ट्रांसपोर्टर बन गए?" चंचल (टूटी हुई आवाज़ में): "दादा, मेरा लालच इतना बड़ा था कि इसने मुझे अंधा कर दिया। मैंने बड़ी दौलत के चक्कर में अपने वफ़ादार साथी खो दिए। मैंने सोचा कि मैं बिना किसी ईमानदारी के, सिर्फ़ धोखे से अमीर बन जाऊँगा।" दादा ज्ञानचंद: "चंचल, तुमने जिस वफ़ादारी को घमंड में आकर ठुकरा दिया, वह अब वापस नहीं मिलेगी। बलवान सिंह के ट्रक तुम्हारे नहीं थे। तुम्हारे पास तो राजू और कालू थे। लालच का फल यही होता है— तुम्हें न लाभ मिला, न अपनी पूँजी बची।"

उस दिन के बाद, चंचल ने अपना लालच पूरी तरह त्याग दिया। उसने बहुत मुश्किल से राजू और कालू को ढूँढ़ा, उनसे माफ़ी माँगी और उन्हें फिर से काम पर वापस बुलाया। उसने सीखा कि वफ़ादारी और संतोष किसी भी क़ीमती ट्रक से ज़्यादा मूल्यवान होते हैं।

कहानी का सार (Summary)

यह कहानी लालची ट्रांसपोर्टर चंचल की है, जो अपने वफ़ादार सहायक राजू और कालू को क़ीमती ट्रकों के लालच में तूफ़ान में अकेला छोड़ देता है। लालच में फँसकर, वह न तो बलवान सिंह के ट्रकों को चुरा पाता है, और न ही अपने पुराने, वफ़ादार राजू और कालू को बचा पाता है। दादा ज्ञानचंद से सीख लेने के बाद, चंचल को एहसास होता है कि लालच का फल हमेशा शून्य होता है, और वह अपने वफ़ादार साथियों से माफ़ी माँगता है।

सीख (Moral)

  1. लालच का फल शून्य:लालच का फल हमेशा नुकसानदायक होता है। बड़ी दौलत के चक्कर में हमें कभी भी अपने पास मौजूद वफ़ादार साथी, रिश्तों और मेहनत की कमाई का त्याग नहीं करना चाहिए।

  2. वफ़ादारी अनमोल है: जो लोग मुश्किल समय में आपके साथ खड़े रहते हैं, उनका मूल्य किसी भी धन-दौलत से ज़्यादा होता है।

  3. स्वार्थ का परिणाम:स्वार्थ में आकर अपनों को छोड़ने वाले का कोई अपना नहीं रहता।

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