हिंदी प्रेरक कहानी: प्रकृति से बेईमानी

किसी नगर में दानवीर नाम का एक व्यक्ति रहता था। उसका नाम और स्वभाव एक जैसे ही थे। दानवीर किसी भी सीमा तक जाकर जरूरत मंद लोगो की सहायता करता था।

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प्रकृति से बेईमानी

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हिंदी प्रेरक कहानी: प्रकृति से बेईमानी:- किसी नगर में दानवीर नाम का एक व्यक्ति रहता था। उसका नाम और स्वभाव एक जैसे ही थे। दानवीर किसी भी सीमा तक जाकर जरूरत मंद लोगो की सहायता करता था। कई गावों में उस की ज़मीनें थीं जिन पर तरह-तरह के अनाज़ उगाये जाते थे। खेतों की देखभाल स्थानीय किसान करते थे। दानवीर केवल अलग-अलग भाईयों में फसल की बिक्री का काम करता था किसानों के प्रति वह बहुत उदार था और सभी को उचित से अधिक फसल का हिस्सा देता था।

एक दिन सड़क पर जाते हुए उसकी नज़र एक भिखारी पर पड़ी। भिखारी ने साफ कपड़े पहने हुए थे और वह कुछ पढ़ा लिखा भी दिखता था। दानवीर ने उससे पूछा कि वह भीख क्यों मांगता है। भिखारी ने उत्तर दिया कि उसने कर्ह जगह नौकरी के लिए प्रार्थना पत्र दिये पर उसे कहीं भी सफलता नहीं मिली।

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दानवीर ने उसे एक अवसर दिया, “तुम मेरी एक आढ़त पर काम करो। जो भी लाभ होगा उस का चैथाई तुम रख लेना और शेष मुझे दे देना”।

युवक राजी हो गया और उसने दानवीर का धन्यवाद किया अगले दिन से वह मंडी में दानवीर की आढ़त पर काम करने लगा।

युवक ने बहुत मेहनत से काम किया। दानवीर महीने में एक बार भी वहां नही आया क्योंकि बिक्री...

युवक ने बहुत मेहनत से काम किया। दानवीर महीने में एक बार भी वहां नही आया क्योंकि बिक्री बहुत अच्छी हो रही थी। महीने के अंत में युवक, अपने हिस्से का हिसाब लगाने लगा। तभी उसके मन में विचार आया “मुनाफे का केवल चैथाई हिस्सा बहुत कम है। मैंने सारा महीना दिन रात मेहनत की है। मालिक दानवीर तो एक बार भी नही आया। सारे मुनाफे का हकदार केवल मैं ही हूँ”।

महीने के अंत में दानवीर हिसाब करने आया। युवक अब पहले वाला भिखारी नहीं रहा था। उसने कहा, “मैने सारा महीना दिन रात मेहनत की है। आप तो एक बार भी यहां नहीं आये और न ही आपने इस आढ़त पर कोई परिश्रम किया है। सारे मुनाफे पर केवल मेरा ही अधिकार है”।

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दानवीर को बड़ी निराशा हुई उसने बड़ी शान्ति से कहा, “तुम सारा मुनाफा रख लो पर मुझे अब तुम्हारी जरूरत नहीं है। दानवीर ने किसी और को उसकी जगह बिठा दिया”।

युवक एक बार फिर सड़क पर आ गया कई नौकरियां की लेकिन कामयाब नहीं हुआ। और फिर से भीख मांगने के अतिरिक्त उसके पास कोई अन्य चारा नहीं था।

हमें प्रकृति के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए क्योंकि उसने हमें वे संसाधन दिये हैं जिन पर परिश्रम करके हम धन की उत्पत्ति करते हैं। हमें केवल इतना अधिकार है कि कुल उपज में से अपने श्रम का प्रतिकार ले लें। यदि हम प्रकृति के प्रति बेईमानी करेंगे। तो शीघ्र ही वह स्थिति आ जायगी कि परिश्रम करने के लिए संसाधन बचेगें ही नहीं।

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