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मनुष्य का प्रथम गुण
हिंदी प्रेरक कहानी: मनुष्य का प्रथम गुण:- "बंटी! चलो खाना खालो!" अन्दर रसोई से मां ने बंटी को आवाज लगाई। (Stories | Motivational Stories)
“नहीं, मैं खाना नहीं खाऊंगा” बंटी ने अपने कमरे से ही मुंह फुलाए उत्तर दिया।
“क्यों! क्यों नहीं खाओगे?” मां कमरे में प्रवेश करती हुई बोली।
“नट्टू ने मेरी कमीज पहन ली है”। बंटी मुंह फेरते हुए बोला। “तो क्या हुआ। नट्टू तुम्हारा छोटा भाई है” मां बंटी के पास बैठती हुई बोली। “पर कमीज तो मेरी है न!” तभी मां ने बंटी को प्यार से संवारते हुए उससे पूछा- “बेटे क्या तुम जानते हो मनुष्य का प्रथम गुण क्या है?”
“नहीं!” “तो सुनो, एक गांव में एक ब्राहमण रहता था वह बड़े ही लालची स्वभाव का था। वह किसी को भी अपनी वस्तु देना तो दूर लेने के नाम से उसे छूने तक नहीं देता था”। (Stories | Motivational Stories)
एक दिन किसी काम से उसे शहर जाना पड़ा, रास्ते में एक आदमी से उसकी मुलाकात हुई वह भी शहर जा रहा था, दोनो साथ मिलकर...
एक दिन किसी काम से उसे शहर जाना पड़ा, रास्ते में एक आदमी से उसकी मुलाकात हुई वह भी शहर जा रहा था, दोनो साथ मिलकर बातें करते हुए शहर की ओर बढ़ने लगे।
बीच रास्ते में उन्होने एक पोटली देखी। देखते ही ब्राहमण ने झट से पोटली उठा ली और उसे खोल कर देखा। पोटली में ढेर सारे सोने के सिक्के थे उसने तुरन्त उस पोटली को अपने झोले में डाल दिया। तभी उसके साथी ने उससे कहा, भाई देखो उस पोटली पर मेरा भी अधिकार है। क्योंकि हम दोनो ने उसे एक साथ देखा था। अतः मुझे भी उसमें से कुछ सिक्के दे दो।
यह सुनकर ब्राहमण ने कहा- “वाह! तुम्हें क्यों दू? मैं बिल्कुल नहीं दूंगा, इस पर सिर्फ मेरा ही अधिकार है क्योंकि मैंने पहले उठाया है” ये सुनकर उसके साथी ने कहा “ठीक है भाई यदि मुझे रंजमात्र भी हिस्सा नहीं देना चाहते तो मैं कदापि नहीं लूंगा”। (Stories | Motivational Stories)
शहर में आकर दोनो अलग हो गए और अपने अपने काम निपटाने लगे। ब्राहमण एक दुकान से सामान खरीद कर पैसे दे रहा था कि एक चोर की निगाह उसी पोटली पर पड़ी। चोर आहिस्ते से उसके हाथ में धरे झोले को झपट कर ऐसे भागा कि ब्राहमण ठगा सा रह गया, ब्राहमण के शोर मचाने से पहले वह भीड़ में न जाने कहां खो गया पता न चला। वह सिर पर हाथ धर के रोने लगा, अब उसके पास कुछ खाने के लिए भी पैसे नहीं थे, सारे उसके अपने पैसे एवं पाए हुए सोने के सिक्के तो उसी झोले में थे।
शाम को भूखे प्यासे वह अपने गांव लौट रहा था तब रास्ते में उसी आदमी से उसकी मुलाकात हुई वह भी अपने घर लौट रहा था, उसने ब्राहमण की दयनीय स्थिति देखी और उससे पूछा- “कहो मित्र क्या बात है तुम बड़े परेशान नजर आ रहे हो? ब्राहमण ने उसे अपनी सारी कहानी बाताई और कहा, मैं बहुत भूखा हूं, अब बिना कुछ खाए मुझसे एक कदम भी चला नहीं जा रहा है”।
यह सुनकर उस आदमी ने लड़खड़ाते हुए ब्राहमण को सहारा देते हुए एक वृक्ष की छाया के नीचे बिठाया और अपने झोले से रोटी निकाल कर उसे देते हुए बोला। “लो मित्र तुम इसे खा लो इसमें तुम्हें कुछ शान्ति मिलेगी”।
तब ब्राहमण रोटी लेते हुए अपने किए हुए कर्म पर पश्चाताप करते हुए उससे पूछा मित्र एक मै हूं जो रास्ते में पाए हुए पराये धन का एक हिस्सा भी तुम्हें नहीं दिया और एक तुम हो जो अपने हिस्से की रोटी मुझे दे दी। और वह रो पड़ा। यह सुनकर उस आदमी ने उसे चुप कराते हुए कहा बंधु! सहनशक्ति और त्याग का गुण मनुष्य का प्रथम गुण है, इसे जीवन में सदा अपनाए रखना चाहिए।
तब कहानी समाप्त करके मां ने बंटी से पूछा- “बेटा अब बताओ तुम्हारा क्या इरादा है?” यह सुनकर बंटी ने मां के गले में हाथ डालते हुए जवाब दिया- “तुम ठीक कहती हो मां, नट्टू मेरा छोटा भाई है उसे मेरी कमीज पहनने का पूरा अधिकार है”। (Stories | Motivational Stories)