हिंदी प्रेरक कहानी: मेहनत के रूपए

कृष्णपुर का राजा अश्वसेन बहुत अत्याचारी था। एक बार उसने किसी निर्दोष आदमी को फांसी की सजा सुना दी। फांसी के फंदे पर लटकने के पूर्व उस आदमी ने राजा को शाप दिया, तुम निःसंतान मरोगे।

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मेहनत के रूपए

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हिंदी प्रेरक कहानी: मेहनत के रूपए:- कृष्णपुर का राजा अश्वसेन बहुत अत्याचारी था। एक बार उसने किसी निर्दोष आदमी को फांसी की सजा सुना दी। फांसी के फंदे पर लटकने के पूर्व उस आदमी ने राजा को शाप दिया, "तुम निःसंतान मरोगे"।

कई वर्ष हुए, राजा के कोई सन्तान नहीं हुई। फलस्वरुप उसकी चिंता बढ़ गई। (Motivational Stories | Stories)

एक बार राजा अश्वसेन के दरबार में कोई साधु आया। उसने राजा की चिंता का कारण जानना चाहा। राजा ने उसे सब कुछ बता दिया। फिर साधु बोला, "महाराज, आप एक काम कीजिए। शाप खत्म हो जाएगा"।
"क्या करूं?" राजा ने पूछा।

"आपके राज्य में चुटिया बेलारी एक गांव है। वहां दयालुराम नामक एक किसान रहता है। वह बहुत ईमानदार, मेहनती और सज्जन आदमी है। आप उससे दस हज़ार रूपये कर्ज लेकर अपने राज्य के ऐसे लोगों को अच्छी तरह भोजन कराइए जिन्होंने पिछले एक साल से कभी भरपेट भोजन नहीं किया है" यह कह कर साधु अपनी राह चलता बना।

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अगले दिन राजा ने दयालुराम को बुलवाकर कहा, "मैं तुमसे दस हज़ार रूपए कर्ज चाहता हूं। ये रूपये फिर तुम्हें वापस मिल जाएंगे"।

दयालुराम चकित हो बोला, "महाराज, आपको मुझ गरीब से दस हज़ार रूपए कर्ज लेने की कैसे जरूरत पड़ गयी, मैं कुछ समझा नहीं। यदि बुरा न मानें तो सच्चाई मुझे बता दें। भाला ही होगा"। (Motivational Stories | Stories)

राजा अश्वसेन ने साधु की कही हुई सारी बातें दयालुराम को सुना दी। सब सुनकर दयालुराम ने कहा, "ऐसी बात है तो आपको स्वयं मेरे घर आना चाहिए। मैं कर्ज दूंगा। वैसे भी मैं अभी रूपए लेकर नहीं आया हूं"।

"तुम कल यहाँ रूपये पहुंचा दो। मैं तुम्हारे घर नहीं आऊँगा" राजा बोला।

"ऐसा नहीं हो सकता'' दयालुराम ने स्पष्ट कहा।

"क्यों?"

"दाता कभी याचक के समीप नहीं आता है। याचक को ही दाता के करीब आना पड़ता है"।  दयालुराम की बात से राजा थोड़ा क्रोधित हुआ। मगर परिस्थितिवश उसने क्रोध को दबा लिया। फिर कहा, "अच्छी बात है। मैं ही तुम्हारे घर आ जाऊँगा"।

अगले दिन कर्ज देते समय दयालुराम ने राजा से साफ-साफ कहा, "जब आपके संतान हो जाएगी, उसके बाद ही मैं यह कर्ज वापस लूंगा। और हां, ये मेरी मेहनत के रूपए हैं।  वापसी में मैं भी आपकी मेहनत के ही रूपए लूंगा, दूसरे नहीं"। (Motivational Stories | Stories)

राजा ने दयालुराम की हर बात झट से मान ली। रूपए पाकर राजा राजधानी लौट आया। फिर उसने उन रूपयों का उपयोग उसी तरह किया, जैसा कि...

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राजा ने दयालुराम की हर बात झट से मान ली। रूपए पाकर राजा राजधानी लौट आया। फिर उसने उन रूपयों का उपयोग उसी तरह किया, जैसा कि साधु ने कहा था। समय पर राजा के एक सुन्दर पुत्र हुआ। खूब खुशियां मनायी गईं। फिर राजा को दयालुराम के कर्ज लिए रूपये की वापसी का ख्याल आया। उसने एक सेवक द्वारा उसके दस हज़ार रूपए भिजवा दिए। दयालुराम ने उन रूपयों को अस्वीकार करते हुए सेवक को लौटा दिया।

यह बात मालूम होते ही राजा को दयालुराम पर बहुत क्रोध आया। उसने उसे तुरंत बुलवाया। फिर उससे पूछा, "तुमने अपने रूपए क्यों नहीं लिये?" (Motivational Stories | Stories)

"महाराज, जो रूपए आपने मुझे भिजवाये, वे तो प्रजा के रूपए हैं, आपके नहीं। मैंने आपको अपनी मेहनत के रूपए दिये थे। आप भी अपनी मेहनत की कमाई के रूपए मुझे दीजिए। बात भी ऐसी ही थी। दूसरे किसी तरह के रूपए मैं नहीं लूंगा। यही वजह है जो मैंने सेवक द्वारा भिजवाये रूपए नहीं लिये," दयालुराम ने बिना किसी भय के सारी बात कह डाली।

"तुम दस हज़ार के बदले एक लाख रूपए ले लो"। राजा ने उसे प्रलोभन दिया।

"आप मुझे सारा खज़ाना ही क्यों न दे दें, मैं नहीं लूँगा। मैं सिर्फ दस हज़ार रूपए लूंगा, जो आपकी मेहनत की कमाई के होने चाहिए। उससे अधिक एक पैसा भी नहीं"। दयालुराम ने पूरी दृढ़ता के साथ अपनी बात कह डाली।

राजा कुपित हो बोला, "सोच लो, फिर तुम्हें रूपए कभी नहीं मिलेंगे"।

"कोई फिक्र नहीं"।

अब तो राजा अश्वसेन के क्रोध की सीमा नहीं रही। उसने दयालुराम को जेल में बन्द करवा दिया। (Motivational Stories | Stories)

कई माह हुए, अचानक एक दिन राजा के बेटे की तबीयत खराब हो गई। हालत दिन-प्रतिदिन बिगड़ती चली गयी। राज्य के सभी अच्छे चिकित्सकों ने उसे देखा। मगर स्थिति में ज़रा भी सुधार नहीं हुआ। राजा और रानी चिन्तित हो उठे। ऐसे में एक दिन वही साधु राजदरबार में यों ही आ पहुंचे, जिसने राजा को सन्तान प्राप्ति का उपाय बताया था। साधु को आया देखकर राजा बहुत खुश हुआ। उसने उसे अपने पुत्र की बीमारी के बारे में बताया।

तब साधु ने पूछा, "क्या दयालुराम का कर्ज लौटा दिया?"

"नहीं तो!" राजा ने कहा, "उसने तो रूपए लेने से बिल्कुल इन्कार कर दिया। मैंने उसे जेल में बन्द करवा दिया है"।

"ऐसा करके आपने उचित नहीं किया। उपकार के बदले में जेल, यह तो बहुत बड़ी कृतहीनता हैं। उसे तुरंत जेल से बाहर कीजिए। साथ ही जैसे भी हो उससे कर्ज लिए रूपए जल्द वापस कर दीजिए। वह अपने रूपए क्यों नहीं लेता है, जरूर कुछ बात होगी। आप उसे मनाइए। यह आपका कर्तव्य है। याद रहे, यदि आपने एक साल के अन्दर उसके रूपए नहीं लौटाए तो, आपका पुत्र जीवित नहीं रहेगा। उसकी हालत भी नहीं सुधरेगी। मैंने आपको समय से पहले सावधान कर दिया है। अब आप जो उचित समझें करें," यह कहकर साधु अधिक देर वहां नहीं ठहरा। अब राजा घाबराया। उसने तुरंत दयालुराम को जेल से बाहर निकलवाकर अपने समीप बुलाकर कहा, "मुझे क्षमा कर दो, मैंने तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया। मैं बहुत लज्जित हूं। आज से मैं तुम्हारा कर्ज़ चुकाने के लिए स्वयं मेहनत करूंगा। उससे जो पैसे मिलेंगे, उन्हें एकत्र कर दस हज़ार रूपये होते ही तुम्हें लौटा दूंगा"।

"ठीक है, महाराज," दयालुराम बोला।

लगातार साल भर तक राजा अश्वसेन वेष बदल कर अपने राज्य के एक-एक गांव और शहर में गया। वहां काम की खोज की। जब जो भी काम राजा को मिला, उसे उसने पूरी इमानदारी, और निष्ठा से किया। बदले में मिले पैसे एकत्र करते जाते। इस बीच राजा का पुत्र स्वत: ठीक हो गया।

साल भर के अन्दर राजा ने एक हजार रूपए एकत्र कर लिये। फिर वह खुशी-खुशी उन रूपयों को लेकर दयालुराम के घर जा पहुंचा। राजा ने उसके रूपए लौटाते हुए कहा, "दयालुराम अब मैं जान गया कि अपनी मेहनत के रूपए कितने मूल्यवान होते हैं। यही नहीं, इसी बहाने मैंने साल भर में अपनी प्रजा के दुःख-दर्द को भी समझा। तुमसे कर्ज लेने से ही मेरी आंखे खुलीं। क्या तुम मेरी एक बात मानोगे?" 

"कहिए महाराज,'' दयालुराम ने अपने रूपए लेते हुए कहा।

"मुझे अपने राज्य की आर्थिक सुव्यवस्था के लिए एक अच्छे सलाहकार की जरूरत है और वह मैं तुम्हें बनाना चाहता हूं। बोलो, स्वीकार करोगे?"

"अगर आपकी ऐसी चाह है तो मुझे कोई एतराज नहीं है" दयालुराम ने राजा का प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार कर लिया। (Motivational Stories | Stories)

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