Motivational Story: माँ का प्रेम

रविवार का दिन यानि छुट्टी का दिन और उस पर से ठंड का मौसम यानि दिसंबर का महीना।  रूपेश के घर आज उसके सभी दोस्त मौजूद थे और आंगन में धूप में कुर्सी टेबल जमाए रूपेश अपने दोस्तों के साथ कैरम के खेल में पूरी तरह खोया हुआ था।

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माँ का प्रेम

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Motivational Story माँ का प्रेम:- रविवार का दिन यानि छुट्टी का दिन और उस पर से ठंड का मौसम यानि दिसंबर का महीना।  रूपेश के घर आज उसके सभी दोस्त मौजूद थे और आंगन में धूप में कुर्सी टेबल जमाए रूपेश अपने दोस्तों के साथ कैरम के खेल में पूरी तरह खोया हुआ था।  उसके साथ नरेन्द्र, लक्ष्मण, मनोज, राजेन्द्र सभी मौजूद थे। इनमें से सिर्फ मनोज कैरम के खेल में शामिल नही था वो रैफरी बना बड़े गौर से उनका खेल देख रहा था। बाकी सब खेल में जुटे हुए थे। (Motivational Stories | Stories)

नरेन्द्र और लक्ष्मन दनादन गोटियां पॉकेट में डालते जीतते चले जा रहे थे जबकि रूपेश और राजेंद्र पूरी कोशिश करने के बाद भी हार रहे थे। हर गेम लगातार हारने के कारण रूपेश और राजेन्द्र दोनों का मूड खराब होने लगा था। 

अब बारी रूपेश की थी, रूपेश ने स्ट्राइकर को ठीक स्थान पर रखा और उंगली से चोट  करने जा ही रहा था कि मम्मी की...

अब बारी रूपेश की थी, रूपेश ने स्ट्राइकर को ठीक स्थान पर रखा और उंगली से चोट  करने जा ही रहा था कि मम्मी की आवाज ने उसे चौंका दिया- "अरे रूपेश बेटे रूपेश" और इसी कारण अंजाने में स्ट्राइकर पर उसकी उंगलियों की चोट अचानक ही छू गई। चूंकि वह चौंक उठा था सो निशाना गलत बैठा परिणामस्वरूप पॉकेट में गोटी गिरने की बजाय उसका स्ट्राइकर उसमें जा घुसा। झल्लाकर गुस्से में वह बुरी तरह चीखा- "क्या है मम्मी क्‍यों चीख रही हो? यहां सब गड़बड़ हो गया"। "बेटे गमले में लगे तुलसी के पौधे में एक लोटा पानी डाल देना। रूपेश के क्रोध से पूर्णत: बेखबर उसकी मम्मी बाहर आंगन में आती हुई बोली।

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"ओफ्फोह मम्मी तुम देख रही हो यहां हम लोग सब खेल में कितने बिजी हैं"। उसने पुनः झल्लाकर जवाब दिया। (Motivational Stories | Stories)

"ठीक है बेटे लेकिन खेल के बाद गमले में पानी जरूर डाल देना"। मम्मी ने हाथ में पकड़ी चाय की ट्रे नीचे रखते हुए कहा। 

"अरे यार ये सब अच्छा नहीं लगता"। अपनी ही धुन में रूपेश ने जवाब दिया।  

अरे क्यों ऐसी कया बात हो गई बेटे? कहती हुई मम्मी ट्रे से चाय की प्यालियां उठाकर उन सबको देने लगी। सबने चुपचाप अपनी-अपनी प्याली थाम ली और चाय पीने लगे। ओफ्फोह मम्मी तुम समझती क्यों नहीं, देखो ठंड का मौसम है गमले में पानी डालेंगे तो तुलसी के पौधे को ठंड लग जाएगी। रूपेश ने अपनी समझ से अच्छी दलील पेश की थी। (Motivational Stories | Stories)

अच्छा पौधे को ठंड लग जाएगी? मम्मी मुस्कुरा पड़ीं और नहीं तो क्या, अब आप ही सोचो कड़कती ठंड में हम भी तो गर्म पानी से नहाते हैं ठंडे पानी से क्‍यों नहीं हम लोग नहाते भला? रूपेश ने अपनी बुद्धि का परिचय देते हुए कहा। 

अगर ऐसी बात है तो ठंड में पेड़ पौधे हमारी तरह कोट या स्वेटर मफलर क्यों ज़हीं पहनते हैं बेटा? मम्मी ने मुस्कुराकर पूछा था।  

रूपेश इसका जवाब न दे पाया वह निरूत्तर हो गया। उसे लगा मम्मी बिल्कुल ठीक ही तो कह रहीं हैं। उसके सभी दोस्त बड़े गौर से मम्मी की बातें सुन रहे थे। "देखों बेटा प्रकृति की माया ही अलग है वह हमारे समझ से परे है, अब देखो जंगल या पहाड़ों में जो पेड़ पौधे पाए जाते हैं। उसे कौन पानी देकर नियमित सींचता है। भला है ना? फिर भी ठंड, गर्मी, बरसात से बिल्कुल भी नहीं डरते हर हाल में वे प्रसन्‍न रहते हैं"। 

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हाँ आप ठीक कह रही हैं मम्मी। अंततः रूपेश ने हामी भरी। वैसे सीधे शब्दों में जान लो बेटा कि जो भी बीज या पौधा हम घर में अपनी देखरेख में लगाते हैं उसकी पूरी देखरेख हमें ही करनी पड़ती है वरना ये पौधे मुरझा कर सूख जाएंगे फिर चाहे वो फल फूलों के पौधे हों या तुलसी का। विस्तार से समझाती हुई मम्मी बोली। (Motivational Stories | Stories)

आप बिल्कुल ठीक कह रही हैं आंटी। नरेन्द्र ने मम्मी की बातों का समर्थन किया। हां आपका कहना बिल्कुल सही है। लक्ष्मण ने सिर हिलाकर जवाब दिया।

जिस तरह मां अपने बच्चों से बहुत प्रेम करती है उसी तरह ये पौधे भी हमारे बच्चों की तरह होते हैं और इनकी सही देखरेख करना ही हमारा इनके प्रति प्रेम जाहिर होता है समझे"। मम्मी पुनः मुस्कुराती हुई बोलीं।

मैं सब कुछ समझ गया मम्मी, और आज से ही मैं अपने आंगन में लगे सभी पौधों की पूरी देखरेख करूंगा। रूपेश मम्मी की ओर देखते हुए बोला।  

"शाबाश बेटा...मम्मी ने रूपेश के सिर पर हाथ फेरते हुए खुश होकर कहा"। (Motivational Stories | Stories)

"आंटी हम लोग भी अब इस बात को सदैव ध्यान रखेंगे और हम भी ऐसा ही करेंगे"। रूपेश के सभी दोस्तों ने एक साथ उल्लास में हामी भरी। रूपेश ने देखा मम्मी के चेहरे पर खुशी की चमक दौड़ रही थी।

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