Motivational Story : भगवान हमारे भीतर है - एक बार राजा वीरसेन के दरबार में एक कवि आया। उसने राजा की महानता की प्रशंसा करते हुए एक सुंदर कविता प्रस्तुत की। उसने कहा, "राजा वीरसेन बहुत महान हैं, वह दयालु और न्यायप्रिय हैं।" उसकी कविता को सुनकर सभी दरबारियों ने जोरदार तालियां बजाईं। कवि का उत्साह बढ़ा, और उसने दूसरी कविता भी सुनाई, जो लोगों को और अधिक प्रभावित कर गई।
लेकिन जब कवि ने तीसरी बार कविता सुनाई, तो उसने कहा, "मैं राजा वीरसेन से बड़ा हूं।" यह सुनते ही दरबार में सन्नाटा छा गया। सभी सोचने लगे कि यह कवि सच कह रहा है या अनुचित दावा कर रहा है। राजा वीरसेन भी असमंजस में थे। उन्होंने तुरंत चतुर सिंह की तरफ देखा।
चतुर सिंह ने मुस्कराते हुए कहा, "महाराज, कृपया मुझे इस विषय पर बोलने की अनुमति दें।" राजा ने सहमति दी। चतुर सिंह ने कवि से पूछा, "आप यह कैसे कह सकते हैं कि आप राजा वीरसेन से बड़े हैं?" कवि ने गर्व से जवाब दिया, "क्योंकि मैं वह हूं जिसने राजा वीरसेन की प्रशंसा में कविता बनाई है। अगर मैं यह कविता न लिखता, तो कोई उनकी इतनी सराहना नहीं करता।"
यह सुनकर चतुर सिंह ने कहा, "आपकी बात में सच्चाई है कि आपने कविता बनाई। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि यह शक्ति और प्रेरणा आपको कहां से मिली?" कवि असमंजस में पड़ गया और चुप रहा। चतुर सिंह ने आगे कहा, "यह प्रेरणा आपके भीतर के भगवान से आई है। जो शक्ति और सृजन का स्रोत है, वह भगवान हमारे भीतर ही हैं।"
चतुर सिंह की बात सुनकर राजा वीरसेन और दरबार के सभी सदस्य गहराई से सोच में पड़ गए। राजा ने कहा, "चतुर सिंह, आपने आज एक बड़ी सच्चाई बताई। वास्तव में, भगवान हमारे भीतर ही हैं। हमें अपनी क्षमताओं पर घमंड नहीं करना चाहिए, क्योंकि हर सफलता का स्रोत भीतर का वह ईश्वर है।"
कवि ने चतुर सिंह को धन्यवाद दिया और कहा, "आज आपने मुझे मेरी सीमा और असली शक्ति का एहसास कराया। मैं अब इसे कभी नहीं भूलूंगा।"
सीख:
यह कहानी हमें सिखाती है कि घमंड नहीं करना चाहिए। जो भी हम करते हैं, वह हमारे भीतर के भगवान की शक्ति और प्रेरणा से ही संभव होता है। सही मायनों में, आत्मज्ञान और सच्चाई ही हमारे सबसे बड़े गुरू हैं।
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