कहानी - संकल्प और दृढ़ता

कहानी  - संकल्प और दृढ़ता:- यह एक इंजीनियर जॉन रॉबलिंग की असली कहानी है जो 1870 में यूएसए के न्यूयॉर्क में ब्रूकलिन पुल बना रहे थे। यह पुल 1883 में करीब 13 साल बाद पूरा हुआ था।

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कहानी  - संकल्प और दृढ़ता:- यह एक इंजीनियर जॉन रॉबलिंग की असली कहानी है जो 1870 में यूएसए के न्यूयॉर्क में ब्रूकलिन पुल बना रहे थे। यह पुल 1883 में करीब 13 साल बाद पूरा हुआ था। 1883 में जॉन रॉबलिंग नाम के इंजीनियर को न्यूयॉर्क को एक बड़े टापू के साथ पुल द्वारा जोड़ने की प्रेरणा मिली। हालांकि पूरे विश्व के पुल बनाने वाले विशेषज्ञों का मानना था कि ऐसा करना असंभव है और उन्होंने जॉन को यह आइडिया भूलने की सलाह दी। यह नहीं हो सकता था। यह मुमकिन नहीं था। इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था।

इस पुल के लिए जॉन के दिमाग में जो आइडिया और छवि थी, उसे वह अनदेखा नहीं कर पा रहे थे। वह उसके बारे में सारा समय सोचते रहते थे और उन्हें दिल से पता था कि ऐसा हो सकता है। उन्हें सिर्फ अपने सपने को किसी और को बताने की ज़रूरत थी। काफी सलाह और मनाने के बाद उन्होंने अपने बेटे वॉशिंगटन को मनाया, जो एक इंजीनियर बनने वाला था, कि ऐसा पुल बन सकता है।

पहली बार काम करने वाले पिता और बेटे ने कांसेप्ट बनाया कि कैसे उसे बनाया जाएगा और उस काम में आने वाली परेशानियों को कैसे दूर किया जाएगा। बहुत उत्सुकता और प्रेरणा के बाद अपनी इस चुनौती को पूरा करने के लिए उन्होंने अपने सहकर्मियों को इकट्ठा किया ताकि वह अपने सपने का पुल बना सके।

प्रोजेक्ट अच्छी तरह से शुरू हुआ लेकिन कुछ महीनों बाद उस स्थान पर हुए एक हादसे में जॉन रॉबलिंग की जान चली गई। इस दौरान वॉशिंगटन भी घायल हुए थे और उनके दिमाग में कुछ नुकसान हुआ था जिसकी वजह से वह बोल और चल नहीं सकते थे।

‘हमने कहा था उन्हें कि ऐसा मत करो। पागल लोग और उनके पागलपन के सपने। ऐसे बेकार के सपने देखना कहाँ की अक्लमंदी है।' कुछ इस तरह की नकारात्मक बातें उन्हें सुनने को मिली और कहा गया कि इस प्रोजेक्ट को बंद कर देना चाहिए क्योंकि सिर्फ रॉबलिंग को ही पता था कि पुल किस तरह बनना है।

विकलांग होने के बावजूद वॉशिंगटन ने हार नहीं मानी और उसमें पुल को पूरा करने का जज्बा अभी भी था और उसका दिमाग पहले की तरह तेज़ चल रहा था। उसने अपनी प्रेरणा और उत्सुकता को अपने दोस्तों में बाँटने की कोशिश की लेकिन वे सभी डरे हुए थे।

अस्पताल के कमरे में जब वॉशिंगटन पलंग पर लेटा हुआ था, तभी खिड़की से उस पर सूरज की रोशनी पड़ी, एक ठंडी हवा का झोंका सफेद पर्दों से छनता हुआ उसने महसूस किया और उसने आसमान की ओर देखा और एक पल के लिए उसने बाहर पेड़ के ऊपरी हिस्से को देखा।

ऐसा लगा जैसे उसे संदेश मिला हो कि उसे हार नहीं माननी। अचानक उसे एक ख्याल आया। वह एक उंगली हिला सकता था और उसका इस्तेमाल वह ज़्यादा से ज़्यादा करना चाहता था। अपनी उंगली हिलाते हुए उसने अपनी पत्नी के साथ बातचीत का संपर्क करना शुरू किया। उसने अपनी पत्नी के हाथ को अपनी उंगली से छुआ और उसे बताया कि वह चाहता है कि उसकी पत्नी इंजीनियरों को दोबारा बुलाकर लाए। फिर उसने इसी तरह से उसके हाथ पर बताया कि इंजीनियरों को क्या करना है। यह बेशक मूर्खतापूर्ण लग रहा हो लेकिन प्रोजेक्ट दोबारा शुरू हुआ। करीब 13 साल तक वॉशिंगटन इसी तरह अपनी उंगली से अपनी पत्नी के हाथ पर आदेश देते रहे और आखिरकार पुल पूरा हो गया। आज बेहद आकर्षक ब्रूकलिन पुल पूरी शान के साथ खड़ा है और एक ऐसे आदमी की जीत और उसके जज्बे को दर्शाता है जिसने किसी भी हालात में हार नहीं मानी। यह उन सभी इंजीनियरों और उनकी टीम के काम और उनके उस आदमी पर विश्वास को श्रद्धांजलि अर्पित करता है जिसे आधी दुनिया पागल मानती थी। यह पुल उस पत्नी का प्यार और समर्पण बताता है जिसने 13 साल तक अपने पति के संदेशों को इंजीनियरों तक पहुँचाया और उन्हें बताया कि उन्हें क्या करना है।

यह कभी न हार मानने वाला सबसे उम्दा उदाहरण है जो बताता है कि विकलांग होने के बावजूद भी वॉशिंगटन ने नामुमकिन काम को पूरा किया।

हम भी अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी में कई रुकावटों का सामना करते हैं लेकिन हमारी तकलीफ कई लाखों लोगों की तकलीफों से कम होती है जिनका सामना उन्हें रोज़ करना पड़ता है। ब्रूकलिन पुल हमें दिखाता है कि सपने जो नामुमकिन होते हैं उन्हें अपनी दृढ़ता और संकल्प से पूरा किया जा सकता है।

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