Bal Kavita: ओस

By Lotpot
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ओस

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ओस

जाड़े में चल दूर देश से,
रोज रात को आती ओस।

चुपके-चुपके घास-पात पर,
सांस चैन की पाती ओस।

फूल और कांटों में कोई,
अन्तर नहीं बताती ओस।

एक तरह से प्यार सभी पर,
खुलकर सहज लुटाती ओस।

सूरज की किरणों को हंस-हंस,
अद्भुत रूप दिखाती ओस।

किन्तु धूप के बढ़ते ही चट,
कहीं नहीं दिख पाती ओस।

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