Bal Kavita: जाड़े की धूप

By Lotpot
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जाड़े की धूप

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जाड़े की धूप

दिल को सहज लुभाने वाली
जाड़े की यह धूप भली, 

आसमान का महल छोड़कर
धरती पर हंसती निकली।

बिल्कुल राजकुमारी जैसी
लगती है सबको प्यारी,

खुलकर इसका स्वागत करते
कभी न होता मन भारी।

दोपहरी में इसकी महिमा
गाते नहीं अघाते हम,

बर्फीली रातों का रोना
रोकर नहीं सुनाते हम।

जिस दिन कुहरा भैया आते
इसके पथ में रोढ़े बन,

सहज कांपने लगते उस दिन
अनायास सबके तन-मन।

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