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चंदामामा ठहरो थोड़ा- इस कविता में एक बच्चे की कल्पना और मासूमियत को दर्शाया गया है, जो चंदामामा को अपना दोस्त मानता है। बच्चा चाँद से लुका-छिपी खेलना चाहता है और उसे चुनौती देता है कि वह उसे पकड़ नहीं सकता। वह चाँद की चमक, उसकी खूबसूरती और उसके बदलते रूपों को देखता है। बच्चा चाँद के साथ दोस्ती करना चाहता है और सपने में उसके साथ आसमान में खेलना चाहता है। इस कविता से बच्चों को चाँद और उसके साथ जुड़ी कल्पनाओं का आनंद मिलता है। कविता में मासूमियत, कल्पना और दोस्ती की भावना झलकती है, जो बच्चों के दिलों को छूने वाली है।
चंदामामा ठहरो थोड़ा,
कहाँ चले तुम जाते हो?
खेल रहे क्या आँख मिचौली,
बादल में छिप जाते हो?
मुझे बुला लो मैं देखूंगा,
कितने हो छिपने में तेज़।
नहीं पकड़ पाओगे मुझको,
मैं दौड़ूंगा तुमसे तेज।
कभी तो पूरे गोल बनते,
कभी घटते कभी बढ़ते।
तुम्हारे रंग के चाँदनी रात में,
कितने प्यारे सपने लाते।
तारों के संग मिलकर छिपते,
आसमान में लुका-छिपी करते।
मैं भी एक दिन पास आऊँगा,
तुमसे दोस्ती कर जाऊँगा।
तुम्हारी चाँदनी छू लूँगा,
तुम्हारे संग मैं भी झूलूंगा।
चंदामामा ठहरो थोड़ा,
संग तुम्हारे मैं भी आऊँ।
बादल के परदे हटाकर,
रात को रोशन कर जाऊँ।
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