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"खुशियों का झूला" कविता बचपन की मासूमियत और खुशी का प्रतीक है। इसमें झूला झूलने की मस्ती और प्रकृति के संग-साथ का आनंद व्यक्त किया गया है। कविता हमें सिखाती है कि छोटी-छोटी खुशियां हमारे जीवन को रंगीन बनाती हैं। परिवार के संग बिताए गए ये पलों का जादू जीवनभर याद रहता है। यह कविता हमें जीवन की चिंताओं को भूलकर खुशियों में खो जाने का संदेश देती है।
झूला झूलें हम बागों में,
खुशबू भरी फिजाओं में।
हवा संग बातें करते जाएं,
खुशियों का गीत गुनगुनाएं।
ऊंचे पेड़ों की डालों से,
बंधा हमारा झूला है।
सपनों का झोंका लहराता,
मन मयूर-सा झूमा है।
छोटे-छोटे पलों में देखो,
खुशियों का संसार बसा।
ये संसार हमें सबसे प्यारा,
ये झूला में सबसे प्यारा।
की हंसी, पापा का संग,
इन पलों में प्यार बसा।
बचपन की हर मस्ती प्यारी,
हंसी के झूले हैं तिरछी सवारी।
हवा संग गूंजी है खिलखिलाहट,
दिल से निकली मीठी हंसी की आहट।
चलो सब मिल झूला झूलें,
दुनिया की फिक्रों को भूलें।
खुशियों का झूला कभी न रुके,
प्यार से हर दिल चमक उठे।
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