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हाथी राजा बहुत भले : इस कविता में हाथी राजा का मजेदार और प्यारा वर्णन किया गया है। हाथी राजा को सभी बहुत पसंद करते हैं क्योंकि वह बहुत भले और शांत स्वभाव के हैं। कविता में बताया गया है कि वह अपनी सूंड और कान हिलाते हुए घूमते हैं। कवि उन्हें अपने घर आने का निमंत्रण देता है और कहता है कि वह उनके घर आकर हलवा-पूरी खाएं और आराम से कुर्सी पर बैठें। कविता के अंत में, कुर्सी भी अपनी खुशी जाहिर करते हुए 'चटर-पटर' की आवाज करती है।
हाथी राजा बहुत भले
\सूंड हिलाते कहाँ चले?
कान हिलाते कहाँ चले?
मेरे घर भी आओ ना,
हलवा-पूरी खाओ ना।
आओ बैठो कुर्सी पर,
कुर्सी बोली, चटर-पटर।
हाथी बोले, “अरे वाह,
क्या स्वादिष्ट है यह खाना!
हलवा-पूरी, मालपुआ,
साथ में खीर का प्याला।
तभी तोता बोला, “सुनो ज़रा,
क्या मैं भी खा सकता हूं कुछ बचा?”
हाथी ने तोते को बुलाया पास,
“आओ खाओ, है यह खास।”
इस तरह हाथी राजा का दिन बना,
मित्रता और मस्ती से भरा।
सबने सीखा, प्यार और अपनापन,
मिल-जुलकर जीवन का यह अपनापन।
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