यह कविता एक सकारात्मक और प्रेरणादायक संदेश देती है। नए वर्ष के आगमन के साथ, कवि आशाओं और खुशियों की नई किरणें देखता है। कविता में यह संदेश है कि हर दिशा में प्रेम, विश्वास और खुशहाली का वास हो। कवि यह भी कहते हैं कि समाज में वैर-भाव की बेलें न उगें, बल्कि सद्भावना की क्यारियां खिलें। यह शांति और अमन का संदेश फैलाने वाली कविता है, जिसमें मानवता के लिए प्रेम और करुणा को प्राथमिकता दी गई है। कविता यह प्रेरणा देती है कि नया साल केवल एक दिन की खुशी न होकर, हमारे जीवन में हर दिन नई आशा और सत्कर्म का संकल्प लेकर आए। प्रेम और सद्भाव ही सच्चे समाज की नींव हैं। "प्रेम-प्रीत हो सबकी भाषा" को आदर्श मानकर एक खुशहाल और शांतिपूर्ण समाज का निर्माण हो। प्रेम-प्रीत हो सबकी भाषा आशाओं की किरणें लाया,नया वर्ष खुशियां ले आया।दिशा-दिशा नव मंगल गाये,नवप्रभात विश्वास जगाये। कण-कण में छायी खुशहाली,नवयुग की है शान निराली।नव निर्माण, नया ले सपना,सत्कर्मों का प्रण हो अपना। बेल न पनपे वैर-भाव की,क्यारी फूलें सद्भावना की।अमन-चैन जगती में जागे,शांति-दूत बन आएं आगे। झोलों में भी मुस्कायें हम,हर लें दुखियों के सारे गम।नये वर्ष की नव परिभाषा,प्रेम-प्रीत हो सबकी भाषा। और पढ़े: घर का आँगन-दादी माँ बाल कविता - घोड़ा सर्दी पर एक सुन्दर कविता - सर्दी के दिन आए चंदामामा ठहरो थोड़ा- बाल कविता