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कविता: घोड़ा- यह कविता "घोड़ा" की शक्ति, साहस और हौसले को दर्शाती है। घोड़ा सिर्फ एक जानवर नहीं है, बल्कि मेहनत, निष्ठा और धैर्य का प्रतीक है। घोड़ा अपने मालिक का सबसे वफादार साथी होता है, जो हर मुश्किल परिस्थिति में निडर होकर खड़ा रहता है। उसकी तेज गति और दृढ़ता हर किसी को प्रेरणा देती है। यह कविता बताती है कि घोड़ा, चाहे कितना भी काम किया जाए, न थकता है, न झुकता है। यह हमारी जिंदगी में भी धैर्य और साहस का महत्व सिखाता है।
कविता: घोड़ा
हिनहिन कर के चलता घोड़ा,
नहीं किसी से डरता घोड़ा।
देख हमारी भारी शोभा,
साहस से भरता घोड़ा।
खींच-खांच करवाते कितना,
मगर न पीछे हटता घोड़ा।
खा कर भूसा, घास, चना,
भारी हिम्मत रखता घोड़ा।
पीता दूध, मलाई खाता,
हर कदम पर इतराता घोड़ा।
सड़क से उठ, आसमान छूता,
सपनों में रंग भरता घोड़ा।
तेज दौड़ता, हवा संग उड़ता,
हौसले का सबक सिखाता घोड़ा।
सूरज की किरणों को थामे,
धैर्य का पाठ पढ़ाता घोड़ा।
समझदार, भरोसेमंद साथी,
मालिक का गर्व कहलाता घोड़ा।
कभी युद्धों का सिपाही बनता,
तो कभी रथ का सारथी बनता।
धरती से जुड़कर चलता,
आंधी-पानी सहता घोड़ा।
शांति का दूत, शक्ति का परिचायक,
हर दिल को भाता घोड़ा।