हिंदी बाल कविता: अब न करूंगा मैं हंगामा

By Lotpot
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अब न करूंगा मैं हंगामा

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अब न करूंगा मैं हंगामा

मोटा ताजा चिंकम बंदर,
रहता था जंगल के अंदर।

तोड़-तोड़ कर केले खाता,
इधर-उधर छिलके फैलाता।

एक रोज जब बारिश आई,
उसने एक छलांग लगाई।

पैर पड़ा छिलके के ऊपर,
संभल न पाया, गिरा फिसल कर।

टूटा हाथ, नाक भी फूटी,
और पैर की हड्डी टूटी।

भालू ने आ उसे उठाया,
बांध-पट्टियां उसे लिटाया।

तब वह बोला भालू मामा,
अब न करूंगा मैं हंगामा।

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