थोड़ा सा तो हो ना बचपन
थोड़ा सा तो हो ना बचपन- बचपन की सबसे खूबसूरत बात यह है कि हर चीज नई और जादुई लगती है। हर सुबह एक नया अनुभव लेकर आती है, जैसे सूरज का चमकना, चिड़ियों का चहचहाना
थोड़ा सा तो हो ना बचपन- बचपन की सबसे खूबसूरत बात यह है कि हर चीज नई और जादुई लगती है। हर सुबह एक नया अनुभव लेकर आती है, जैसे सूरज का चमकना, चिड़ियों का चहचहाना
थोड़ा सा तो हो ना बचपन- बचपन की सबसे खूबसूरत बात यह है कि हर चीज नई और जादुई लगती है। हर सुबह एक नया अनुभव लेकर आती है, जैसे सूरज का चमकना, चिड़ियों का चहचहाना
बचपन की दुनिया कल्पनाओं, शरारतों और मासूमियत से भरी होती है। इसी उम्र में बच्चा छोटी-छोटी बातों में भी खुशी ढूँढ लेता है और हर जीव को अपना दोस्त बनाने की क्षमता रखता है।
हर बच्चे का स्कूल जाना सिर्फ पढ़ाई की शुरुआत नहीं होता, बल्कि एक नए संसार में कदम रखने जैसा होता है। मुनिया के लिए भी स्कूल जाना एक सपना है,
सपने नए हैं आँखों में : - बचपन वह समय होता है जब सपने सबसे सच्चे होते हैं और कल्पनाएँ सबसे रंगीन। छोटे बच्चों की आँखों में छिपे सपने किसी भी आसमान से बड़े होते हैं, और उनकी सोच किसी भी सीमा को नहीं मानती।
थोड़ा सा तो हो ना बचपन- रात का आसमान हमेशा बच्चों को अपनी ओर खींचता है। चमचमाते तारे, हल्के बादल, और ठंडी हवा मिलकर ऐसा माहौल बनाते हैं जैसे आसमान खुद कोई कहानी सुना रहा हो
“चंदामामा” एक सुंदर और स्नेह से भरी बाल कविता (Children’s Poem) है, जिसे शंकर विटणकर ने लिखा है। यह कविता बच्चों की कल्पना शक्ति (imagination) को नई उड़ान देती है।