थोड़ा सा तो हो ना बचपन

थोड़ा सा तो हो ना बचपन- रात का आसमान हमेशा बच्चों को अपनी ओर खींचता है। चमचमाते तारे, हल्के बादल, और ठंडी हवा मिलकर ऐसा माहौल बनाते हैं जैसे आसमान खुद कोई कहानी सुना रहा हो

By Lotpot
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थोड़ा सा तो हो ना बचपन- रात का आसमान हमेशा बच्चों को अपनी ओर खींचता है। चमचमाते तारे, हल्के बादल, और ठंडी हवा मिलकर ऐसा माहौल बनाते हैं जैसे आसमान खुद कोई कहानी सुना रहा हो। बच्चे जब टिमटिमाते तारों को देखते हैं, तो उनके मन में कई सवाल उठते हैं—ये तारे कहाँ से आते हैं, क्या ये भी हमारी तरह थकते हैं, क्या ये आसमान में घूमते भी होंगे? यही कल्पना शक्ति इस प्यारी कविता का आधार है।

इस कविता में तारे छोटे बच्चों की तरह दिखाए गए हैं। वे बादलों की सवारी करके थक जाते हैं और माँ से पानी माँगते हैं। यह विचार बच्चों के मन में जादू पैदा करता है, क्योंकि इसमें आकाश और धरती दोनों को एक ही परिवार जैसा दिखाया गया है। जब तारे बताते हैं कि उन्होंने जंगल, नदी, पहाड़ और धरती का जीवन आसमान से देखा, तो बच्चों के अंदर प्रकृति को समझने की एक हल्की जिज्ञासा भी जागती है।

कविता का सबसे सुंदर हिस्सा वो है जब तारे बात करते-करते ऊंघने लगते हैं, और माँ उन्हें आराम करने के लिए बिस्तर लगवाती है। यह दृश्य बच्चों को सुरक्षा, सुकून और प्यार का एहसास दिलाता है। सोने से पहले पढ़ी जाने वाली कहानियों और कविताओं का यही असर होता है—वे मन को शांत करती हैं और कल्पना की दुनिया को और बड़ा बना देती हैं।

यह कविता बच्चों में कल्पना शक्ति (imagination), प्रकृति से जुड़ाव (nature connection) और सकारात्मक सोच (positive thinking) को बढ़ावा देती है। स्कूल प्रोजेक्ट, होमवर्क, बच्चों की कहानी पुस्तकों और बेडटाइम रीडिंग के लिए यह एकदम सही है।

थोड़ा सा तो हो ना बचपन

कर बादल की खूब सवारी
थक कर आये तारे,
मां जल्दी से पानी दे दो
थक गए हम तो सारे।

क्या-क्या देखा तुमने आज
मुझको भी बतलाओ,
मीठा-मीठा शरबत ले लो
पूरी बात सुनाओ।

धरती का जीवन देखा
जंगल, नदी, पहाड़,
देखा हमने आसमान से
एक नया संसार।

कहते-कहते लगे ऊंघने
नन्हे-नन्हे तारे,
मां ने ज्यों बिस्तर लगवाया
सो गए पल में सारे।

थोड़ा सा तो हो ना बचपन।

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