सर्दी पर बाल कविता - "जाड़ा"- यह कविता सर्दी के मौसम, जिसे "जाड़ा" कहा गया है, के प्रभाव और अनुभवों को बड़े ही रोचक और सरल तरीके से प्रस्तुत करती है। कवि ने जाड़े की ठंड को इस प्रकार व्यक्त किया है कि हर कोई सर्दी की ठिठुरन में "धर-धर" काँप रहा है। ठंड से बचने के लिए लोग कोट, स्वेटर और मफलर पहनते हैं, फिर भी सर्दी जैसे पीछा ही नहीं छोड़ती।
सर्दी के कारण धूप नाना (बुजुर्ग) लोग भी सूरज की रोशनी का आनंद लेते हैं, लेकिन ठंड इतनी बढ़ जाती है कि उन्हें खाँसी होती है। यह दृश्य हास्य और व्यंग्य का मेल है। ठंड से बचने के लिए लोग घर-घर में आग जलाते हैं, लेकिन "जाड़ा" अपनी जिद पर अड़ा रहता है और कहीं जाने का नाम नहीं लेता।
कवि ने जाड़े के मौसम की वास्तविकता को बेहद सजीव और सरल शब्दों में प्रस्तुत किया है। कविता छोटे-छोटे शब्दों और लयबद्ध पंक्तियों के साथ सर्दी के ठिठुरते मौसम की छवि बच्चों और पाठकों के मन में गहरी छाप छोड़ती है। इसे पढ़ते हुए पाठक को सर्दी का अहसास और हल्का हास्य दोनों मिलते हैं।
काँपते हर वक्त
धर-धर,
आ रहा जाड़ा।
कोट, स्वेटर और मफलर,
ला रहा जाड़ा।
धूप नाना खा रहे हैं,
रोज सूरज की।
खाँसते खों-खों उन्हें ना,
भा रहा जाड़ा।
आग घर-घर में जलाते,
लोग देखो जी।
फिर भी है चिपका पड़ा,
ना जा रहा जाड़ा।