हिंदी बाल कविता: बनारस की सुबह

By Lotpot
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बनारस की सुबह

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बनारस की सुबह

सूरज की पहली किरण से जागती काशी,
गंगा के जल में लहराती रश्मि।

मंदिरों की घंटियाँ मधुर सुर में बजतीं,
भोर के भजन में देवताओं की वाणी सजतीं।

घाटों पर साधुओं का ध्यान और तप,
धुंधलके में बसी हरि की अद्भुत झलक।

नावों की कतारें, पानी में हलचल,
माँ गंगा की धारा में जीवन का स्पंदन।

घाटों पर पंडित, सिखाते संस्कारों का ज्ञान,
बजते शंखों में गुंजित होता ब्रह्म का वरदान।

स्नानार्थी डुबकी लगाते गंगा की गोद में,
पवित्र जल में हर पाप को धोते।

सुबह की ठंडी बयार, शांति की छाया,
बनारस की माटी में रचती श्रध्दा और माया।

आरती की अग्नि, फूलों की महक,
गंगा की लहरों में बसती प्रभु की झलक।

मंदिरों में आरती, दीपों की ज्योति,
संतों की वाणी में बसी है मोक्ष की गति।

रंग-बिरंगी साड़ी में सजीं घाट की रेखाएँ,
सूरज की किरणों में जगमगातीं अनगिनत कथाएँ।

शांत धारा में बहता समय का प्रवाह,
बनारस की सुबह में बहती भक्ति की धारा।

हर कदम पर जीवन का अनोखा है सार,
काशी की सुबह में बसा है ईश्वर का द्वार।

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