हिंदी बाल कविता: धूप

By Lotpot
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धूप

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धूप

आग-सी लगने लगी है धूप,
इस तरह पड़ने लगी है धूप।

गर्मियों ने फिर कहर ढाया,
चैन-सुख हरने लगी है धूप।

तान सीना सभी के घर जा,
बे-वजह लड़ने लगी है धूप।

सोख सारा जल नदी-तालाब का,
जुल्म लो करने लगी है धूप।

है बड़ा ही कठिन सहना, बाप रे,
देह में गड़ने लगी है धूप।

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