हिंदी बाल कविता: बादल छाये

कविता में बादलों के उमड़-घुमड़ करने और बारिश की खुशबूदार अनुभूति का वर्णन किया गया है। अंत में, सूरज दादा के आग उगलने के बावजूद उनकी अनुपस्थिति का उल्लेख किया गया है, जो इशारा करता है कि वे सामने होकर भी नहीं दिखाई देते हैं।

By Lotpot
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बादल छाये

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बादल छाये

उमड़-उमड़ कर बादल छाये,
साथ छलकती गागर लाए।

गिरा दिया चुपके से पानी,
सुमन बगीचे में हर्षाये।

तितली के रंगों सी नैया,
डब्बू जी ने खेल दिखाये।

कूद-फांद मस्ती में अपनी,
मेंढक जी खुलकर टरयि।

आग उगलते सूरज दादा,
खड़े वहीं, पर नजर न आये।

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