हिंदी बाल कविता: गिल्लू रानी

गिलहरी की यह कविता उसकी जीवनशैली को उजागर करती है। इसमें उनकी अद्वितीयता, उसकी जिज्ञासा और खुशमिजाजी का वर्णन है जो हर स्थान पर अपनी पहुंच बना लेती है।

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गिल्लू रानी

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गिल्लू रानी

लुक छुप, लुक छुप आती हूं,
कहीं पर भी चढ़ जाती हूं।

घूम घूम कर दौड़ कर,
सभी जगह हो आती हूं।

चाहे चीकू हो या फिर,
मीकू सबके घर घुस जाती हूं।

मैं नटखट गिल्लू रानी,
सबके मन को भाती हूं।

घनी पूंछ, छोटी मूंछ से,
सबको मैं ललचाती हूं।

इठला कर खाती हूं खाना,
न गिरने देती एक भी दाना।

कभी गांव में कभी शहर में,
कभी गली में कभी डगर में।

जगह है मेरी कई अनेक,
पर लगती सबको मैं एक।

नाम है मेरा गिल्लू रानी,
करती सदा अपनी मनमानी।

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