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टी.वी. में बंदर: मोनू की मस्ती भरी कविता- नमस्ते छोटे दोस्तों! क्या तुम्हें कविताएँ पढ़ना और सुनना पसंद है? अगर हाँ, तो यह कविता तुम्हारे लिए एक खास तोहफा है! आज हम लेकर आए हैं "टी.वी. में बंदर" नाम की एक मज़ेदार कविता, जो छोटे बच्चे मोनू की शरारतों और हंसी-खुशी के पलों से भरी है। यह कविता न केवल तुम्हें हंसाएगी, बल्कि घर के माहौल में प्यार और मस्ती का रंग भी भर देगी। मोनू एक नन्हा सा बच्चा है, जो अपने खिलौनों और परिवार के साथ टी.वी. देखते हुए एक अनोखा अनुभव जीता है। जब अचानक टी.वी. में बंदर दिखाई देते हैं, तो उसकी उत्सुकता और चीख-पुकार से घर में हलचल मच जाती है। यह कविता बच्चों की नन्हीं-नन्हीं जिज्ञासाओं और उनकी मासूमियत को दर्शाती है, जो हर घर में देखने को मिलती है।
कविता में मोनू की मम्मी, और परिवार के अन्य सदस्य भी शामिल हैं, जो उसकी बातों पर हंसते हैं और उसे प्यार से समझाते हैं। यह कविता सिर्फ मनोरंजन ही नहीं, बल्कि बच्चों को यह सिखाती है कि सपनों और कल्पना की दुनिया कितनी रंगीन हो सकती है। आज के समय में, जब बच्चे टी.वी. और स्क्रीन के सामने ज्यादा समय बिताते हैं, यह कविता उन्हें हंसी-मज़ाक के साथ एक सबक भी देती है। क्या होगा जब मोनू सोचे कि बंदर सचमुच घर में आ गए? क्या उसकी शरारतें और बढ़ेंगी या परिवार उसे समझाएगा? इन सवालों के जवाब जानने के लिए इस कविता को ध्यान से पढ़ो और अपने दोस्तों के साथ शेयर करो। यह कविता तुम्हें नई दुनिया में ले जाएगी, जहाँ हंसी और प्यार हमेशा साथ रहते हैं। तो चलो, तैयार हो जाओ और मोनू के साथ इस मज़ेदार सफर पर चल पड़ो!
टी.वी. में बंदर
मोनू बैठा घर के अंदर,
साथ खिलौने—हाथी-बंदर।
टी.वी. देख रहे सब मिलकर,
हँसते जाते वे खिल-खिलकर।
टी.वी. में कुछ बंदर आये,
देख उन्हें मोनू चिल्लाये।
पापा-पापा, बंदर आये,
देखो टी.वी. में घुस आये।
मम्मी दौड़ी, पापा हँसे,
मोनू की बातों में रंग चढ़े।
बंदर नाच रहे स्क्रीन पर,
मोनू बोला, "वाह रे बंदर!"
खिलौना बंदर उठाया वो,
टी.वी. के आगे नाचा वो।
मम्मी ने हंसकर समझाया,
"ये तो फिल्म है, सपनों का माया।"
टी.वी. बंदर अब दोस्त बने,
मोनू के खेल में लगे रंग भरने।
रात हुई, सोने का समय आया,
मोनू ने सपने में बंदरों को पाया।
सपनों में भी नाचता रहा वो,
बंदरों संग खेलता रहा वो।
सुबह उठा, हँसी आई मन को,
टी.वी. का मज़ा बना जीवन-रंग को।
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