बच्चों आपके लिए हाॅकी खिलाड़ी ध्यानचंद के 10 दिलचस्प तथ्य
ध्यानचंद को अब तक का सबसे अच्छा हाॅकी खिलाड़ी माना जाता है। उनके गोल को स्कोर करने की क्षमता बहुत बढ़िया थी और दूसरी टीम के डिफेंडर भारत के इस खिलाड़ी के सामने महज बैठी हुई बतख की तरह लगते थे।
ध्यानचंद को अब तक का सबसे अच्छा हाॅकी खिलाड़ी माना जाता है। उनके गोल को स्कोर करने की क्षमता बहुत बढ़िया थी और दूसरी टीम के डिफेंडर भारत के इस खिलाड़ी के सामने महज बैठी हुई बतख की तरह लगते थे।
गर्मियों में बाहर जाने से हमारी हालत बुरी हो जाती है। बढ़ती गर्मी आपके स्वास्थ्य पर बुरा असर डालती है और कई बार तो मनुष्य को गर्मी की वजह से लू भी लग जाती है। लू की वजह से पानी की कमी भी हो जाती है। हाल ही में बदलते मौसम की वजह से आपको सही खाना और पानी पीना चाहिए और धूप में कम से कम जाना चाहिए। हम आपको कुछ टिप्स बताते है, जो आपको लू से बचने में मदद करेंगे।
धारावाहिक रामायण की याद आते ही सीता माता यानि दीपिका टोपीवाला (Dipika Topiwala) का चेहरा सामने आ जाता है। उस धारावाहिक के बाद दीपिका सांसद भी बनी, लेकिन अभिनय से वे दूर होती चली गई। बीच बीच में वे गुजराती सीरियल्स करती रही। लेकिन अब करीब बीस साल बाद वे लेखक डायरेक्टर धीरज मिश्रा की फिल्म
नैनीताल (Nainital) हिमालय की कुमाऊँ पहाड़ियों में स्थित है। समुद्र तल से नैनीताल की कुल ऊंचाई लगभग 1938 मीटर (6358 फुट) है। नैनीताल की घाटी में नाशपाती के आकार की एक झील है जो नैनी झील के नाम से जानी जाती है। यह झील चारों ओर से पहाड़ों से घिरी है। इस झील के चारों ओर स्थित पहाड़ो के उत्तर में इनकी सबसे ऊंची चोटी नैनी पीक है।
'Apple' कम्पनी यकीनन टेक्नोलॉजीस के इतिहास में सबसे पॉपुलर ब्रांड है और उनका वो एप्पल 'LOGO' भी प्रसिद्ध है। विश्व मे हर कोई किसी भी एप्पल प्रोडक्ट को, उसके 'लोगो' से पहचान जाता है, जो एक ताज़ा सेब है और जिसका एक हिस्सा थोड़ा सा कटा हुआ दिखता है, जैसे किसी ने उस सेब को काट खाया हो लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि ऐसा अजीब logo कम्पनी ने क्यों बनाया?
क्राफ्ट टाइम : मधुमक्खी कार्नर बुकमार्क: यह एक बहुत आसान और जल्दी से बनने वाली कला है।
मेहनती लकड़हारा (Hindi Kids Story) : किसी गांव में एक लकड़हारा रहता था। वह बहुत ही गरीब था। परन्तु बहुत महनती आदमी था। एक दिन जब वह पेड़ पर चढ़कर लकड़ी काट रहा था। तब उसने मन में सोचा कि रोज दस बीस रूपए की लकड़ी को बेचकर हमारा कुछ भी भला नहीं होता। रोज सुबह आकर मैं शाम तक लकड़ी काटूंगा और थोड़ी लकड़ी ले जाकर बाजार में बेच दूंगा।
सावन का महीना था, पूर्णिमा से दो दिन पहले ही रीटा राखियाँ लेकर अपने गाँव चली गई। शंभू भईया गाँव में ही रहते थे। डाॅक्टरी पढ़कर लौटे थे तो शहर में नौकरी लगी थी पर वह गए नहीं। उनका कहना था कि पढ़ लिखकर सभी युवक यदि गाँव छोड़कर शहर में बस जायेंगे तो गाँव का उत्थान कैसे होगा।