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बाल कहानी : (Lotpot Hindi Kids Stories) कामचोर
बाल कहानी : (Lotpot Hindi Kids Stories) कामचोर- राजू! ओ राजू! माँ ने पुकारा।
ओ हो जब देखो काम ही काम, जरा देर हुई नहीं खेलते की चिल्लाना शुरू। राजू बड़बड़ाते हुए माँ के सामने जा पहुँचा। क्या है माँ? उसने पूछा। बेटा जरा बाजार जाकर सब्जी तो ले आना। माँ बोली।
ओह! माँ जब घर मे नौकर है तो फिर तुम मुझे ही बेवजह क्यों परेशान करती हो नौकर से मंगवा लो। और राजू गिल्ली डंडा उठाकर फिर जा पहुँचा मैदान में। बिना माँ के जवाब की प्रतीक्षा किये।
काम से मुँह फेरना उसके लिए कोई नई बात न थी। जब भी माँ काम बताती वह फौरन टाल देता था। वैसे तो घर में किसी चीज की कमी न थी। घर में कुल चार सदस्य ही तो थे। माता-पिता, राजू और उसकी छोटी बहन रिंकी। उसके पिता की मौहल्ले में किराने की दुकान थी। एक ही दुकान होने के कारण कमाई भी अच्छी हो जाती थी।
उसके पिता की इच्छा थी कि राजू स्कूल से आने के बाद दुकान में भी कुछ हाथ बटांये। उन्होंने राजू को समझाया, लेकिन उसके समझ में कुछ न आया। उसे तो केवल खेल कूद ही अच्छा लगता था। एक दिन राजू के पिता बीमार पड़े। डाँक्टरों ने भी बहुत कोशिश की परन्तु उनकी बीमारी का पता न लगा। थक कर उन्होंने जवाब दे दिया कि इनकी बीमारी ठीक करना अब भगवान के हाथ में है। पिता के बीमार पड़ने के कारण अब दुकान में ताला लग गया।
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आखिर कौन चलाता दुकान?
धीरे-धीरे घर पर राशन और पैसा दोनों खत्म हो गया। पर राजू इन सब बातों से बेखबर था। एक दिन शाम को वह जैसे ही घर आया, माँ ने राजू को अपने पास बुलाया और समझाया। बेटा, मैं तुम्हें कोई काम बताना नहीं चाहती परन्तु मजबूर हूूँ। क्योंकि दुकान बंद होने की
वजह से नौकर भी काम छोड़कर चले गये हैं। यदि तुम्हारे पास अभी फुर्सत हो तो जरा दूकान जाकर थोड़ा बहुत अनाज ले आओ। घर में अन्न का एक दाना नहीं है। इतना कहकर माँ ने दुकान की चाबी राजू की ओर बढ़ा दी।
राजू ने चाबी लेने हेतु हाथ आगे बढ़ाया और चाबी ले ली। तभी उसने अपने हाथ में कुछ गरम गरम महसूस किया। उसने नज़र उठाकर देखा तो माँ के आँसू छलक कर नीचे गिर रहे थे।
राजू का दिन माँ को रोते देख पिघल गया
माँ को रोते देख उसका हृदय पिघल गया। उसने आगे बढ़कर माँ के आँसू पोंछ दिये और कहा। मत रो माँ, इन सबका जिम्मेदार मैं ही हूँ। अगर मैंने पिताजी को काम में हाथ बटाया होता तो आज पिता जी शायद बीमार न होते। तुम्हारी कसम माँ अब मैं रोज दुकान जाऊँगा और जितना हो सकेगा, पिताजी को आराम देने की कोशिश करूगां।
इतना कहकर वह दुकान जा पहुँचा। दुकान खोलकर वह दुकान में बैठ गया। बस फिर क्या था ग्राहकों की लाइन लग गई। खूब बिक्री हुई थी आज। रात को वह घर लौटा।
घर में कदम रखते ही वह बुरी तरह चैंका। सामने ही पिताजी बैठे हुए थे। पिता जी की तबीयत तो खराब थी फिर ये अचानक कैसे भले चंगे हो गये? उसे कुछ समझ में न आया।
राजू को देखते ही पिता जी उठ खड़े हुए। उन्होंने आगे बढ़कर उसे गले लगा लिया और कहा। बेेटे, मुझे तुम पर नाज है। तुमने आज साबित कर दिया कि तुम खेल के अलावा काम भी कर सकते हो। आओ तुम्हारे एक नये जीवन की शुरूआत की खुशी में तुम्हारी माँ ने हलवा बनाया है।
पिताजी ने खोला राज
हलवा खाते खाते पिताजी ने बताया। बेटा! मैं जानता हूँ, कि तुम्हारे मन में ये सवाल जरूर उठ रहा होगा कि मैंने ये बीमार पड़ने का नाटक क्यों किया? तो सुनो- मैं चाहता था कि तुम खेल कूद के अलावा काम में भी मन लगाओ। और जो बच्चे काम करते हैं, उन्हें जीवन में आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता।
और जो काम से मुहँ मोड़ते हैं, लोग उन्हें, उसके नाम की बजाये एक दूसरे नाम से पुकारते हैं, वो नाम है ‘कामचोर’। और मैं नहीं चाहता था कि तुम्हारे ऊपर भी ‘कामचोर’ का ठप्पा लग जाये। इतना कहकर पिता जी राजू का चेहरा देेखने लगे।
राजू के चेहरे में अब आत्मविश्वास झलक रहा था।
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