बाल कहानी : बूढ़ी ताई का सपना मोहल्ले के सारे बच्चे ताई को बेहद चाहते थे। पढाई-लिखाई के बाद सारा समय ताई के साथ बिताते थे। ताई भी बिल्कुल अकेली थी। सफेद बाल धुनी हुई रूई जैसे चेहरे पर ढेरों झुर्रियों की लकीरें जैसे भूगोल के नक्शे में नदियाँ बह रही हो। मुँह में एक भी दाँत नहीं बड़ी भोली भाली सी पोपली हँसी थी ताई की। इतनी उम्र हो जाने पर भी ताई जसवन्ते बड़ी मेहनती थी। By Lotpot 17 Jan 2020 | Updated On 17 Jan 2020 10:05 IST in Stories Moral Stories New Update बाल कहानी- बूढ़ी ताई का सपना: मोहल्ले के सारे बच्चे ताई को बेहद चाहते थे। पढाई-लिखाई के बाद सारा समय ताई के साथ बिताते थे। ताई भी बिल्कुल अकेली थी। सफेद बाल धुनी हुई रूई जैसे चेहरे पर ढेरों झुर्रियों की लकीरें जैसे भूगोल के नक्शे में नदियाँ बह रही हो। मुँह में एक भी दाँत नहीं बड़ी भोली भाली सी पोपली हँसी थी ताई की। इतनी उम्र हो जाने पर भी ताई जसवन्ते बड़ी मेहनती थी। मौसम की चिन्ता, न नदी के ऊबड़ खाबड़ रास्तों का डर, नदी के किनारे से सोंधी-सोंधी गीली मिट्टी लाती। कंकड़ पत्थर बीन कर डालती और मलाई जैसी चिकनी करके खिलौने बनाने बैठ जाती थी। बूढ़ी आँखों पर पतली तारों से टिका धुंधला सा चश्मा लगा रहता था। ताई की कांपती उंगुलियाँ हाथों में मिट्टी का लोंदा थामती तो पलक झपकते ही मोर, बिल्ली, खरगोश, गूजरी या बैंड मास्टर बनाकर धर देती। लगता था जैसे कि बूढ़ी ताई की कांपती उंगलियों में कोई जादू है कि मंत्र पढ़ा और खिलौने बन गये। धूप में सुखाकर कंडे और कूड़े की आँच में खिलौने पकते और फिर ताई के सधे हाथ रंगों के प्यालों में रूई के फाहे डुबो-डुबोकर खिलौनों की रंग बिरंगे कपड़े पहना देते। फिर इन्हीं खिलौनों को बुध बाजार या अन्य ठौर ठिकानों पर बेचकर ताई अपना गुजारा करती। ज्यादातर ताई को कहीं जाना ही नहीं पड़ता था। फुटकर खिलौना बेचने वाले खुद ताई के घर आकर खिलौने ले जाते और पैसे दे जाते। मोहल्ले के पुराने लोग बताते हैं कि ताई जसवन्ते बेचारी अकेली भूखी प्यासी चीथड़े कपड़ों में देश के उस पार से आयी थी। सन् 1947 में देश आजाद हुआ था तो बंटवारे की आग ने सब कुछ राख कर डाला था। ताई के पति यानि बनवारी लाल चैधरी और प्यारा सा बेटा। हरीशू देखते देखते मौत के घाट उतार दिये गये थे। ताई भी जिन्दा नहीं रहना चाहती थी मगर जीने की शक्ति ने ताई को जिन्दा रखा। फिर यहाँ आकर जो प्यार मिला उसने ताई के मन को बहलाया। फिर सहारनपुर, दिल्ली और मुरादाबाद होती हुई ताई लखनऊ आ बसी। हाथ में खिलौना बनाने का हुनर था और मन में बच्चों के लिए ढेर सा प्यार। बच्चे भी खिलौने रंगने और हाट बाजार पहुँचाने में ताई की मदद करते थे। जिस बच्चे पर ताई बहुत खुश होती उसे हरीशू कह कर बुलाती। ताई के मन में देश प्रेम कूट-कूट कर भरा था उन्होंने गाँधी जी, नेता जी सुभाष, तिलक, नेहरू, मालवीय जी, सरदार पटेल और अमर शहीद भगत सिंह सबको देखा था। हर वर्ष 15 अगस्त की सुबह ताई की आँखे भर आती थी। अपनी गीली आँखों से देर तक लहराता हुआ झंडा देखती रहती थीं। पिछले वर्ष बच्चों से कहने लगी मैंने रात भर एक सपना देखा। पीले दरवाजों वाली मेरी पुरानी हवेली के बाहर गुलमोहर के लाल लाल फूलों के गुच्छे झूम रहे हैं। देश के नेता एक पंक्ति में खड़े हैं और आपस में बोल रहे है। मालवीय जी, शास्त्री जी, गाँधी जी, नेहरू जी, तिलक नेता जी और मौलाना आजाद न जाने क्या क्या बातें कर रहे थे। फिर अचानक प्रभातफेरी निकली और भारत माता की जयकार से मेरी आँख खुल गई। मुझे ऐसा लगा जैसे आज से अधिक सुन्दर सवेरा मैंने कभी नहीं देखा। झंडे के रंगों में मेरे खिलौने के सारे रंग लहक उठे हैं बच्चों! देश प्रेम की बाँह कभी मत छोड़ना मुझे अपने बेटे हरीशू का दुख नहीं, तुम सब मेरे हरीशू हो। आज ताई जसवन्ते बच्चों के बीच नहीं है। मगर बच्चों ऐसा लगता है जैसे अपने प्यारे तिरंगे के रंगों और नेताओं के सजे चित्रों के बीच बूढ़ी ताई मुस्करा रही हैं और कह रही हैं बच्चों, देश प्रेम की बाँह कभी मत छोड़ना। ये कहानी भी पढ़ें : बाल कहानी : आदमी का शिकार Facebook Page #Acchi Kahaniyan #Bacchon Ki Kahani #Best Hindi Kahani #Hindi Story #Jungle Story #Kids Story #Lotpot ki Kahani #Mazedaar Kahani #Moral Story #Motivational Story #जंगल कहानियां #बच्चों की कहानी #बाल कहानी #रोचक कहानियां #लोटपोट #शिक्षाप्रद कहानियां #हिंदी कहानी #Inspectional Story You May Also like Read the Next Article