होली की बाल कहानी : रंग भरा सपना

सायंकाल मैं खाना खाकर उठा ही था कि पत्नी ने कहा, अगले रविवार को होली है। रंग इत्यादि लाने हैं। होली का हुड़दंग के मामले में मैं जरा डरपोक किस्म का आदमी हूं। उस समय तो मैंने स्वीकृति में सिर हिला दिया किन्तु मेरे सारे शरीर में एक कम्पन फूट गया। हर साल यह बला सिर पर आती रहती है। कैसा बेतुका त्योहार है। सभी तमीज भूलकर सज्जन से दुर्जन हो उठते हैं। यही एक अवसर है कि सामाजिक बन्धनों में जकड़ा आदमी इस बात का सबूत होता है कि वह भी कभी बन्दर था।

By Lotpot
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होली की बाल कहानी (Holi Story) : रंग भरा सपना

Holi Story in Hindi

होली की बाल कहानी (Holi Story) : रंग भरा सपना - सायंकाल मैं खाना खाकर उठा ही था कि पत्नी ने कहा, अगले रविवार को होली है। रंग इत्यादि लाने हैं।

होली का हुड़दंग के मामले में मैं जरा डरपोक किस्म का आदमी हूं। उस समय तो मैंने स्वीकृति में सिर हिला दिया किन्तु मेरे सारे शरीर में एक कम्पन फूट गया।

हर साल यह बला सिर पर आती रहती है। कैसा बेतुका त्योहार है। सभी तमीज भूलकर सज्जन से दुर्जन हो उठते हैं। यही एक अवसर है कि सामाजिक बन्धनों में जकड़ा आदमी इस बात का सबूत होता है कि वह भी कभी बन्दर था। कुछ देर बाद मैं अपने काम में लगा और बात आयी गई हो गई।

होली आ गई है और मैं मारे डर के छिपा फिर रहा हूं। मेरे दोस्त इस ताक में हैं कि मैं कब उनकी गिरफ्त में आऊं और वे मेरी दुर्गति करें?

होली की बाल कहानी (Holi Story) : रंग भरा सपना

मैं छत पर एक उपन्यास लिये बैठा हूं। कभी-कभी अगलें-बंगलें झांक लेता हूं। कहीं कोई आ न जाये। अचानक हवाई जहाजों की गूंजती आवाज सुनाई पड़ती है और मैं आकाश की ओर झांकता हूं। मैं क्या देखता हूं कि हन्टर बाम्फर एरोप्लेन बम्बों के स्थान पर गुब्बारों में रंग का पानी डाल-डाल कर फेंक रहे हैं। मैं संभलता हूं इतने में तो एक गुब्बारा मेरे पास ही आकर गिरता है।

धत् तेरे की आखिर पजामा तो खराब कर ही दिया। लेकिन साहब हमारे पुरखे भी कम समझदार नहीं थे। उन्होंने मकान की एक छत को ढक भी रखा था। मैं उसमें जाकर बैठ गया और फिर पढ़ने में व्यस्त हो गया।

कुछ ही देर बाद मुझे फिर हुल्लड़ सुनाई दिया। आसमान से कुछ छाताधारी पैराशूट उतरते दिखे। अब तो साहब हमारी हालत खराब थी। पता नहीं किस दुश्मन के आदमी हो। वैसे ही देश के आसपास के पड़ोसी लिये-दिये बैठे हैं।

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शुक्र है खुदा का कि वे हमारे मित्र ही थे किन्तु निशाना चूक जाने के कारण वे मेरे मकान पर तो नहीं उतरे, आस-पास के मकानों की छतों पर उतर गये। उन सबके पास बजाये गनों के पिचकारियां थीं और उनका निशाना था अपने राम, कुछ दूरी अधिक होने के कारण उनके रंगों की मार हम तक नहीं आ पा रही थी अब क्या था। हम आराम से छत पर घूम-घूम कर उनका मजा ले रहे थे।

होली की बाल कहानी (Holi Story) : रंग भरा सपना

इतने में ही साहब क्या बतायें एक बम्ब हमारे पास आ गिरा। देखते-देखते सारी छत पर गुलाल ही गुलाल छा गया। मेरा सारा शरीर गुलाल से रंग गया। पहले तो इस गुलाल बम्ब की हरकत पर हमको गुस्सा आया। खैर, गुलाल की होली तक तो कोई ऐसी बात नहीं। कोई ईमानदारी से होली का ‘फेयर गेम’ गुलाल से खेलें तो हमें इसे भी होली खेलने से कोई एतराज नहीं है। किंतु साहब आज एतबार लायक रहा ही नहीं कोई, आपने किसी पर एतबार किया समझो आप धोखे में पड़े।

मकान के पास ही एक मैदान था। वहां काफी देर से शोर हो रहा था। कुछ लोग दाँत निकाल रहे थे। तो कुछ तालियाँ पीट रहे थे। हमने सोचा कोई सरकारी आदमी लाये होंगे कुछ। हमें क्या पड़ा हमसे तो हमारी ही नहीं निपटती, दूसरे के हथेली लगाने कहां तक जाये हम।

ये देख भाई साहब डर गए 

ज्यों-ज्यों तोप नज़दीक नज़र आने लगी तो हमारा दिल हिलने लगा। कहीं कोई गड़बड़ नहीं हो.. अब उस पर लगा साइन बोर्ड साफ नजर आने लगा था ‘हैबी आर्टिलरी 105 एम.एम.’ दिल हिलने की तो बात ही थी साहब, उस तोप का मुंह मेरी ही ओर था। नन्ही-सी जान, एक मैं ही सफाया हो जाये। बैठे-ठाले ये निर्दोष गरीब तो मारा जाये न, आपका और हंसने वालों का क्या बिगड़ा।

हम नीचे जाने की सोच रहे थे कि साहब पूछें मत, बात क्या बनी। काले-कलूटे बन गये कि चारों ओर होली के नारे लगने लगे।

हड़बड़ा कर नींद खुली तो हम चिल्ला रहे थे, ये भी कोई होली है। होली खेलने का तरीका है। नामाकूल कहीं के किसी को चैन से नहीं रहने देते, क्या ‘बेवकूफ’ इस हिन्दुस्तान में ज्यादा ही हैं।
हम पसीने-पसीने हो रहे थे ‘क्या हुआ’ पत्नी ने पूछा उसने लाइट जलाई तो कुछ भी नहीं था। पत्नी ने फिर ‘क्या बात हुई थी?’ और मैं हँस पड़ा। कुछ नहीं सपना देख रहा था। हमारा जवाब था और वह हँस पड़ी।

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