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बाल कहानी (Hindi Kids Story) : बेवकूफ गधा- एक जंगल में एक शेर रहता था। वो अब बूढा हो चुका था। वो अकेला ही रहता था। कहने को वो शेर था लेकिन उसमें शेर जैसी कोई बात न थी। अपनी जवानी में वो सारे शेरों से लड़ाई में हार चुका था। अब उसके जीवन में उसका एक दोस्त गीदड़ ही था।
वो गीदड़ अव्वल दर्जे का चापलूस था। शेर को ऐसे एक चमचे की जरुरत थी। जो उसके साथ रहता। गीदड़ को बिना मेहनत का खाना चाहिए था।
एक बार शेर ने एक सांड पर हमला कर दिया। सांड भी गुस्से में आ गया। उसने शेर को उठा कर दूर पटक दिया। इस से शेर को काफी चोट आई। किसी तरह शेर अपनी जान बचा कर भागा।
जान तो बच गई। लेकिन जख्म दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे थे। जख्मों और कमजोरी के कारण शेर कई दिन तक शिकार न कर सका और अब भूख से शेर और गीदड़ की हालत ख़राब होने लगी।
‘‘देखो मैं जख्मी होने के कारण शिकार करने में असमर्थ हूँ। तुम जंगल में जाओ और किसी मूर्ख जानवर को लेकर आओ मैं यहाँ झाड़ियों के पीछे छिपा रहूँगा और उसके आने पर उस पर हमला कर दूंगा। तब हम दोनों के खाने का इंतजाम हो जाएगा।” शेर ने भूख से न रहे जाने पर कहा। शेर की आज्ञा के अनुसार वो एक मूर्ख जानवर की तलाश करने के लिए निकल पड़ा।
जब गीदड़ जंगल से बाहर पहुंचा तो -
जंगल से बाहर जाकर उसने देखा एक गधा सूखी हुई घास चर रहा था। गीदड़ को वो गधा देखने में ही मूर्ख लगा।
गीदड़ उसके पास गया और बोला,
‘‘नमस्कार चाचा, कैसे हो? बहुत कमजोर हो रहे हो। क्या हुआ?’’
सहानुभूति पाकर गधा बोला,
‘‘नमस्कार, क्या बताऊँ मैं जिस धोबी के पास काम करता हूँ। वह दिन भर काम करवाता है। पेट भर चारा भी नहीं देता।’’
‘‘तो चाचा तुम मेरे साथ जंगल में चलो। वहां बहुत हरी-हरी घास है। आप की सेहत भी अच्छी हो जाएगी।’’
‘‘अरे! नहीं मैं जंगल नहीं जाऊंगा। वहाँ मुझे जंगली जानवर खा जाएँगें।’’
‘‘चाचा, तुम्हें शायद पता नहीं है। जंगल में एक बगुले भगत जी का सत्संग हुआ था। तब से जंगल के सारे जानवर शाकाहारी हो गए हैं।’’
गधे को फंसाने के लिए गीदड़ बोला, सुना है पास के गाँव से अपने मालिक से तंग होकर एक गधी भी जंगल में रहने आई है। शायद उसके साथ तुम्हारा मिलन हो जाए। इतना सुन गधे के मन में एक खुशी की लहर दौड़ गई।
गधे का माथा ठनका -
वह गीदड़ के साथ जाने के लिए राजी हो गया। गधा जब गीदड़ के साथ जंगल में पहुंचा तो उसे झाड़ियों के पीछे शेर की चमकती हुई आँखें दिखाई दी। उसने आव देखा ना ताव। ऐसा भागना शुरू किया कि जंगल के बाहर आकर ही रूका।
‘‘भाग गया? माफ़ करना दोस्त इस बार मैं तैयार नहीं था। तुम दुबारा उस बेवक़ूफ़ गधे को लेकर आओ। इस बार कोई गलती न होगी।’’
गीदड़ एक बार फिर उस गधे के पास गया। उसे मनाने के लिए गीदड़ ने मन में नई योजना बनाई।,
‘‘अरे चाचा, तुम वहां से भाग क्यों आए?’’
‘‘भागता नहीं तो क्या करता? वहां झाड़ियों के पीछे शेर बैठा हुआ था। मुझे अपनी जान प्यारी थी तो भाग आया।’’
‘‘हा हा हा अरे वो कोई शेर नहीं वो गधी थी जिसके बारे में मैंने आपको बताया था।’’
‘‘लेकिन उसकी तो आंखें चमक रही थी।’’
‘‘वो तो उसने जब आपको देखा तो खुशी के मारे उसकी आँखों में चमक आ गई। वो तो आपको देखते ही अपना दिल दे बैठी और आप उस से मिले बिना ही वापस दौड़ आये।’’
गधे को अपनी इस हरकत पर बहुत पछतावा हुआ। वह गीदड़ की चालाकी को समझ नही पा रहा था। समझता भी कैसे आखिर था तो गधा ही। वो गीदड़ की बातों में आकर फिर से जंगल में चला गया। जैसे वो झाड़ियों के पास पहुंचा। इस बार शेर ने कोई गलती नहीं की और उसका शिकार कर अपने भोजन का जुगाड़ कर लिया।
सीख क्या मिली -
पाठकों, कहते हैं जब तक इन्सान को ठोकर नहीं लगती उसे अक्ल नहीं आती। इसलिए ठोकर खाना अच्छी बात है। लेकिन एक ही पत्थर से बार-बार ठोकर खाना बेवकूफी की निशानी होती है। जैसा की गधे ने किया। आज के जीवन में हमे होशियारी से रहना चाहिए। नहीं तो इस जंगल में बहुत से गीदड़ हमसे अपना काम निकालने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। इसलिए सदैव सतर्क रहे, सुरक्षित रहें।