बाल कहानी: जादुई पत्थर

बाल कहानी: रोहित पढ़ने में बिल्कुल भी मन नहीं लगाता था या फिर यूँ कहा जा सकता है कि उसने अपने मन में पहले से ही बैठा रखा था कि वह पढ़ नहीं सकता। पढ़ाई उसके बस की नहीं है। उसके घर वाले इस बात को लेकर परेशान थे कि उसे कैसे समझाया जाए। उसके परिवार के हर सदस्य ने उसे समझाने की कोशिश की लेकिन सब व्यर्थ हो गया।

By Lotpot
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बाल कहानी (Hindi Kids Story) जादुई पत्थर

बाल कहानी (Hindi Kids Story): जादुई पत्थर- रोहित पढ़ने में बिल्कुल भी मन नहीं लगाता था या फिर यूँ कहा जा सकता है कि उसने अपने मन में पहले से ही बैठा रखा था कि वह पढ़ नहीं सकता। पढ़ाई उसके बस की नहीं है। उसके घर वाले इस बात को लेकर परेशान थे कि उसे कैसे समझाया जाए। उसके परिवार के हर सदस्य ने उसे समझाने की कोशिश की लेकिन सब व्यर्थ हो गया।

एक दिन उन्होंने सुना कि उनके शहर में कोई पहुंचे हुए संत महात्मा आए हैं। ये सुनकर रोहित के माता-पिता ने सोचा कि वो रोहित के लिए उन संत-महात्मा से मिलेंगे। हो सकता है कोई चमत्कार हो जाए। छुट्टी वाले दिन उनके पास जाने का निर्णय हुआ।

रोहित ने कर ली तैयारी -

रविवार का दिन था, रोहित और उसके माता-पिता सुबह जल्दी तैयार हो गए जाने के लिए। क्योंकि उन्होंने सुना था कि वहाँ पर बहुत ज्यादा लोग आते हैं और मिलने में काफी देर लग जाती है। इसलिए वो लोग जल्दी ही घर से निकल गए।

जहाँ वो महात्मा ठहरे हुए थे वो जगह रोहित के घर से थोड़ी ही दूरी पर थी। इसलिए वो लोग जल्दी ही पहुँच गए और सुबह जल्दी पहुँचने के कारण उनकी मुलाकात भी जल्दी हो गई। मुलाकात होते ही रोहित के माता-पिता ने अपनी परेशानी उनके सामने रख दी।

"बाबा जी, ये हमारा बेटा रोहित है। पढ़ने में बिल्कुल मन नहीं लगाता। हमने अपनी तरफ से हर कोशिश कर के देख ली परन्तु कोई भी तरीका कारगर नहीं हुआ।’’

‘‘ये लो बेटा ये एक जादुई पत्थर है। इसे सदा अपने पास रखना। इससे तुम्हें पढ़ाई करते समय एक अद्भुत शक्ति मिलेगी। जिससे तुम्हें सब कुछ आसानी से याद हो जायेगा। लेकिन एक बात याद रखना किसी को भी इस जादुई पत्थर के बारे में पता नहीं लगना चाहिए नहीं तो इसकी जादुई शक्तियाँ ख़त्म हो जाएंगी।’’

एक छोटा सा पत्थर देते हुए उन महात्मा ने कहा।

महात्मा से मिलने की दोबारा बनाई योजना -

इसके बाद रोहित और उसके माता-पिता वापस घर आ गए। उस दिन के बाद रोहित हर पल उस पत्थर को अपने पास रखने लगा। पढ़ते समय, खेलते समय यहाँ तक कि सोते समय भी वो पत्थर अपने पास ही रखता था।

रोहित की पढ़ाई में अब कुछ सुधार हो रहा था। उसका मन पढ़ाई में लगने लगा था। ये परिवर्तन देख कर सब लोग हैरान थे।

लेकिन सिर्फ रोहित और उसके घर वालों को ही इस राज के बारे में पता था।

बाल कहानी (Hindi Kids Story): जादुई पत्थर

रोहित की पढ़ाई में इस कदर सुधार हुआ कि उसने अपनी कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। रोहित और उसके परिवार की खुशी का ठिकाना न था। उन्होंने उन महात्मा का धन्यवाद करने के लिए उनसे मिलने की योजना बनाई।

अगले ही दिन वो लोग उन महात्मा के पास पहुंचे। रोहित के पिता ने कहा,

‘‘बाबा आपके दिए गए जादुई पत्थर की करामात के कारण आज रोहित पढ़ाई में मन लगाने लगा है। इसी के कारण ही उसने अपनी कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया है।’’

‘‘कौन सा जादुई पत्थर?’’

बाबा ने शांत भाव से कहा। तभी रोहित की माँ बोली,

‘‘वही जादुई पत्थर बाबा जो आपने रोहित की पढ़ाई में सुधार के लिए दिया था।’’

‘‘हा हा हा हा हा हा’’

बाबा हँसे और बोले,

‘‘वो कोई जादुई पत्थर नहीं था वह तो एक साधारण सा पत्थर था।’’

‘‘क्या?’’

रोहित के माता-पिता दोनों हैरान होते हुए बोले,

‘‘हाँ, वह एक साधारण पत्थर था। असल में वह पत्थर नहीं एक विश्वास था। जो मैंने रोहित के लिए दिया था। उसने अपने मन में यह बात बैठा रखी थी कि वह पढ़ नहीं सकता, उसे कुछ याद नहीं होता। यही कारण था कि वह पढ़ नहीं पाता था।

उसने अपने मन में यह विश्वास पक्का कर रखा था। इस विश्वास को तोड़कर उसके मन में एक नया विश्वास बसाना था। वो काम इस पत्थर ने किया।’’

बाल कहानी (Hindi Kids Story): जादुई पत्थर

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब ये कि ये पत्थर प्राप्त करते ही रोहित की मानसिक स्थिति बदल गई। उसके मन में यह विश्वास अपनी जगह कर गया। कि वह अब पढ़ सकता है और उसे सब याद भी हो जायेगा। जैसे ही उसके मन ने यह सब स्वीकार किया। वैसे ही उसकी पढाई में सुधार आरंभ हो गया।’’

‘‘मतलब वो पत्थर बेकार था।’’

अब बात रोहित के माता-पिता के समझ में आ गई थी। उन्होंने महात्मा का धन्यवाद किया और घर कि ओर चल दिए। हाँ, उस पत्थर को उन्होंने रास्ते में फेंक दिया।

दोस्तों ऐसी ही हालत हमारी भी है। हम में से ज्यादातर लोग अपने जीवन में बस इसलिए आगे नहीं बढ़ पाते क्योंकि हमने अपने मन को यह समझाया हुआ है कि हम आगे नहीं बढ़ सकते, हम इस समस्या का हल नहीं निकाल सकते, जैसा भगवान चाहेंगे वैसा ही होगा आदि।

क्या मिली सीख-

ऐसा कुछ नहीं होता। हम वैसा ही जीवन जीते हैं जैसा हम जीना चाहते हैं। हमारे जीवन को नियंत्रित करने के लिए कोई दूसरा यंत्र नहीं बना है। यदि हम अपने जीवन को बेहतर देखना चाहते हैं तो उसके लिए हमें ही कुछ करना होगा।

उसके लिए सबसे पहले हमें अपने मन को यह समझाना होगा कि हम कुछ भी कर सकते हैं और हमारे जीवन में होने वाली चीजों को हम नियंत्रित कर सकते हैं। तभी हम अपने जीवन को सुखदाई बना पाएँगे। और हाँ जादू किसी पत्थर में नहीं, हमारे मन में होता है।

बाल कहानी : बेवकूफ गधा

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