बाल कहानी : दुश्मनी का अंत इन्सपेक्टर हरीश ने घड़ी पर निगाह डाली रात के आठ बज रहे थे। उन्होंने सोचा कि थोड़ी देर सुस्ता लिया जाये पर तभी एक सिपाही ने पन्द्रह वर्षीय एक बालक के साथ उनके ऑफिस में प्रवेश किया। साहब यह लड़का आपसे कुछ कहना चाहता है। सिपाही ने बालक की ओर संकेत करके कहा। By Lotpot 28 Jan 2020 | Updated On 28 Jan 2020 11:19 IST in Stories Moral Stories New Update दुश्मनी का अंत बाल कहानी (Lotpot Hindi Kids Stories): दुश्मनी का अंत - इन्सपेक्टर हरीश ने घड़ी पर निगाह डाली रात के आठ बज रहे थे। उन्होंने सोचा कि थोड़ी देर सुस्ता लिया जाये पर तभी एक सिपाही ने पन्द्रह वर्षीय एक बालक के साथ उनके ऑफिस में प्रवेश किया। साहब यह लड़का आपसे कुछ कहना चाहता है। सिपाही ने बालक की ओर संकेत करके कहा। इन्सपेक्टर हरीश ने ग्रामीण वेशभूषा वाले लड़के से प्यार से पूछा। क्या बात है सहमा-सा लड़का उनके निकट खिसक आया। बोला, ‘‘साहब, मैं चीतलगढ़ गाँव से पैदल चल कर आ रहा हूँ। मेरा नाम देव है। और उसने अपने आने का उद्देश्य बयान कर दिया। सुनकर इन्सपेक्टर हरीश ने अविश्वास और आश्चर्य से देव को सिर से पाँव तक निहारा। फिर गहरी साँस ले कर उससे पूछा। ‘‘क्या तुम अदालत में अपने पिता जी के खिलाफ गवाही दे सकोगे?’’ ‘‘हा साहब।’’ देव ने शांत स्वर में कहा। ‘‘इस खानदानी दुश्मनी से दोनों घर बर्बाद हो रहे है।’’ इन्सपेक्टर, हरीश मौन होकर उसकी बातों पर विचार करने लगे। देव ने उन्हें बताया था कि गाँव के एक अन्य परिवार के साथ उनकेे परिवार की पीढ़ियों से दुश्मनी चली आ रही है। दो वर्ष पूर्व देव के ताऊ जी ने उस परिवार के एक सदस्य की हत्या का बदला लेने के फलस्वरूप ताऊ जी पकड़े गये और उन्हे जेल हो गई। फिर एक दिन शत्रु परिवार के एक आदमी ने देव के चाचा जी की हत्या कर दी। वह आदमी भी पकड़ा गया और उसे भी आजीवन कारावास की सजा मिली। अब देव के पिता जी अपने भाई की हत्या का बदला शत्रु परिवार के एक मात्र सरंक्षक राम किशन से लेना चाहते थे। देव ने देखा था कि उनके कमरे में शाम से ही कुछ आदमियों का जमघट लग गया था। उसने उनकी बातों से अनुमान लगाया था कि आधी रात के बाद राम किशन के घर पर हमला करके उसकी हत्या कर देने की योजना बनायी जा रही थी। वह भागा-भागा थाने पहुँचा था ताकि दो परिवार और तबाही से बच जायें। उधर राम किशन का परिवार उस पर आश्रित था और इधर देव के पिता जी पर बहुत सी जिम्मेंदारियाँ थी। ताऊ जी और चाचा जी के बच्चों की देखभाल का जिम्मा भी उनके सिर पर था। देव के जन्म से पहले से आरम्भ हुई शत्रुता ने दोनों घरों के बड़े लोगों की हमेशा बलि ली थी। इन्सपेक्टर हरीश को इस पुलिस थाने में आये अभी थोड़े दिन ही हुए थे। एक पुराने पुलिस कांस्टेबल की जुवानी चीतलगढ़ गाँव के इन दोनों परिवारों की दुश्मनी का वृत्तांत वह सुन चुके थे। पर उन्हें आश्चर्य इस बात पर था कि देव ने कैसे अपने पिता जी की शिकायत करने का साहस किया? उसके साहस की वह मन ही मन प्रशंसा भी कर रहे थे। कुछ देर बाद पुलिस जीप चीतलगढ़़ गाँव की तरफ दौड़ी जा रही थी, जिसमें इन्सपेक्टर हरीश और कुछ सिपाहियों के अलावा देव भी सवार था। इन्सपेक्टर हरीश ने देव के घर से थोड़ा इधर ही जीप रूकवा ली। वह सिपाहियों और देव के साथ पैदल उसके घर की तरफ बढ़े, घर के बाहर उन्होंने सिपाहियों को रूकने के लिए कहा और देव के साथ दबे पाँव भीतर प्रवेश किया। देव ने इशारे से उन्हें अपने पिताजी के कमरे के बारे में बताया। उसे कमरे से कह कहे गूँज रहे थे। लगता था, जैसे कोई जश्न मनाया जा रहा हो। इन्सपेक्टर हरीश ने बन्द कमरे के दरवाजे से अपने कान सटा दिए। भीतर हो रहे वार्तालाप सुन कर देव की बातों की पुष्टि हो गई तो उन्होंने अपनी टार्च जला कर बाहर खड़े सिपाहियों को संकेत दिया। सिपाही धड़धड़ाते हुए घर के भीतर घुस आये, फिर दरवाजा खुलवा कर देव के पिता जी को आए उनके साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया और पुलिस जीप में बैठा कर थाने ले जाया गया। अगली सुबह इन्सपेक्टर हरीश ने चीतलगढ़ गाँव के सरपंच, पंचों और राम किशन को थाने में बुलाया। देव को भी घर से बुला लिया गया। इन्सपेक्टर हरीश ने उसकी तरफ इशारा करके राम किशन से कहा, ‘‘देखो राम किशन। इस बच्चे ने तुम्हारी जान बचाई है, जिसे तुम मन ही मन दुश्मन का बेटा समझ रहे होंगे। नहीं साहब, राम किशन बोला, अब यह मेरा बेटा है, मेरा जीवन दाता है, मुझे रात की घटना का सारा विवरण मिल चुका है। इस लड़के ने दुश्मनी की दीवारें तोड़ दी हैं, जिसके कारण गाँव के दो परिवार एक दूसरे के रक्त के प्यासे रहे हैं। आप इसके पिता जी को छोड़ दीजिये, मैं उनके साथ राजी नामा और सुलह करना चाहता हूँ ताकि भविष्य में हमारे बच्चे दुश्मनी की आग में न झुलसें। इन्सपेक्टर हरीश ने तुरन्त देव के पिता जी को हवालात से अपने दफ्तर में बुलवाया। सरपंच और पंचों ने उन्हें अलग ले जाकर समझाया-बुझाया और इनको राम किशन और देव की भावनाओं से अवगत कराया। देव के पिता जी ने धैर्य पूर्वक उनकी बातें सुनी। फिर उन्होंने राम किशन और देव की तरफ देखा। दोनों आशा भरी नजरों से उन्हें निहार रहे थे। जैसे कह रहे हों। ‘‘दुश्मनी की आग में और मत झुलसिये, इससे कुछ हासिल नहीं हुआ और न ही होगा।’’ वह आहिस्ता-आहिस्ता दृढ़ कदमों से चलते हुए इन्सपेक्टर हरीश के सामने जा खड़े हुए और बोले, ‘‘इन्सपेक्टर साहब, मैं पीढ़ियों पुरानी दुश्मनी को सच्ची दोस्ती में बदलता हूँ। और उन्होंने आगे बढ़ कर राम किशन को गले लगा लिया। देव सहित सभी के चेहरों पर संतोष भरी मुस्कान फैल गई। बाल कहानी : नई सोच नई उम्मीद Facebook | Twitter #Acchi Kahaniyan #Bacchon Ki Kahani #Best Hindi Kahani #Hindi Story #Inspirational Story #Jungle Story #Kids Story #Lotpot ki Kahani #Mazedaar Kahani #Moral Story #Motivational Story #जंगल कहानियां #बच्चों की कहानी #बाल कहानी #रोचक कहानियां #लोटपोट #शिक्षाप्रद कहानियां #हिंदी कहानी You May Also like Read the Next Article