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बाल कहानी : (Lotpot Hindi Kids Stories) बड़ा होटल- करीम दिल्ली में आधी जिंदगी गुजार चुका था, पर उसने शायद ही कभी किसी बड़े होटल (Hotel) में खाना खाया हो। उसे मालूम था कि चमकती और सजी सजाई प्लेटों का होटल में एक वक्त में इतना पैसा लग जाता है कि जितना उसके घर में महीने भर का राशन आता होगा।
इसलिए अगर कभी उसे सपने (Dream) में भी कोई बड़ा होटल देखा नहीं कि वह हड़बड़ा के उठ बैठता था फिर भी बाहर से दमदमाते होटल को भीतर से देखने भर की उसकी इच्छा बढ़ती गई।
पिछले साल करीम की फैक्टरी को बहुत लाभ हुआ उसके मालिक (Owner) ने पूछा। तुम लोग क्या ईनाम चाहते हो?
किसी ने अपना वेतन (Salary) बढ़ाने की बात कहीं तो किसी ने बोनस, करीम ने सबको एक अच्छे होटल में खाना खिलाने का प्रस्ताव रखा।
यह हुई न बात, हमें मंजूर है। मालिक ने खुशी से भर कर कहा।
दिन निश्चित हो गया आठ कर्मचारी (Employ)एक बडे़ होटल में खाना खाने पहुँच गए। सब खुशी खुशी चल रहे थे।
दरवाजे के बाहर एक बहुत बड़ी पार्किग को देख करीम भौचक्का रह गया।
वह अपने मित्र से बोला यहाँ आकर लगता है, एक हम हैं जिसके पास कार नहीं है।
तो क्या हुआ मुँह पर तो नहीं लिखा होता कि अमुक के पास कार है या नहीं? करीम नेे अपनेे दोस्त की हिम्मत बढ़ाई।
दरवाजे पर जगह-जगह दरबान खड़े थे। उन्होंने सलाम किया। करीम हर दरबान के सलाम का जवाब देता जा रहा था। वे डाइनिंग हाॅल में पहुँचे उनके वहाँ पहूँचते ही सब उन्हें देखने लगे।
करीम अपने दोस्त से बोला। मैंने पहले ही कहा था कि ऐसी जगहों पर खटखट करते जूते अच्छे नहीं लगते। अब तो यहाँ पहुँच ही गए है।
सबकी तैयारी शुरू हो गई थी
वे सब एक खाली मेज पर बैठ गए। चारोें तरफ हल्की हल्की रोशनी, हल्का मदमाता संगीत, इन्द्रलोक की याद दिलाने लगा। करीम चारों तरफ के वातावरण को अपने मन के भीतर समा लेना चाहता था, फिर न जाने यहाँ आना हो भी या नहीं।
मीनू बताया खाना आ गया। सबसे पहले सूप (Soup) के कटोरे मेज पर आए। सूप पीते हुए करीम को अपनी दादी माँ की याद आ गई वह भी इतनी ही पतली दाल बनाती थी।
उन्होंने खाना शुरू किया। वहाँ बोला भी धीरे जाता है। इसलिए उनका दम घुटने लगा।
बस फिर क्या था
बीच में खट की आवाज होती और कभी करीम के हाथ से चम्मच छूट कर गिर जाता, तो कभी छुरी कांटा उसके दोस्त के हाथ से खैर, खटपट के साथ साथ उनका डिनर समाप्त हुआ। उसके अन्त में वेटर ने गरम पानी के कटोरे हाथ धोने के लिए उनके सामने रखे।
करीम को यह आईटम बहुत जँचा। ठिठुरती सर्दी में उसने बहुत देर तक अपने हाथ की उंगलियाँ गरम पानी में ही डुबोये रखीं। दोस्त के इशारा करने पर उसने अपने हाथ गरम पानी से बाहर निकाले।
वेटर को टिप दे कर वे डाइनिंग हाॅल से बाहर आए। बाहर जाने के लिए दूसरा रास्ता था। वे उसी तरफ चल दिए।
करीम थोडा झिझक रहा था
वहाँ पर उसे चलती सीढियाँ (Stair) दिखीं करीम झिझक गया। इससे पहले उसने ये सीढियाँ नहीं देखी थी। वह दूसरी तरह की सीढियां के लिए इधर उधर ताकने झाकने लगा। उस ग्रुप में से एक दोस्त विदेश होकर आया था। उसने कहा मेरे साथ चलो करीम का दिल धकधक करने लगा। वह सोचने लगा, कहीं मुझे करंट न लग जाए पर घर तो पहुंचना ही था।
उसने हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa) का पाठ मन ही मन पढ़ा और अपने दोस्त का हाथ थाम कर ‘बिजली की सीढी’ पर पाँव रख दिया।
कुछ ही देर में वह होटल से बाहर आ गये। जैसे तैसे भाग कर उन्होंने बस पकड़ी और अपने अपने घर पहुँचे।
उसके बाद करीम फिर इंतजार करने लगा कि कब फैक्टरी को लाभ हो और मालिक उनके एक बड़े होटल में जाने का खर्च उठाए।
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