पुस्तकों से प्यार की एक मजेदार कहानी एक बार रमेश समाचार पत्र में पढ़ता है कि उसकी पसंदीदा पुस्तकों की प्रदर्शनी लगी है। उसका मन हुआ कि वह भी प्रदर्शनी देखने जाए और वहाँ से अपनी रुचि की अच्छी पुस्तकें खरीद कर लाए। लेकिन उसने सोचा By Lotpot 19 Oct 2024 in Fun Stories Moral Stories New Update Listen to this article 0.75x 1x 1.5x 00:00 / 00:00 एक बार रमेश समाचार पत्र में पढ़ता है कि उसकी पसंदीदा पुस्तकों की प्रदर्शनी लगी है। उसका मन हुआ कि वह भी प्रदर्शनी देखने जाए और वहाँ से अपनी रुचि की अच्छी पुस्तकें खरीद कर लाए। लेकिन उसने सोचा, "रुपये तो मेरे पास हैं नहीं... पांच सौ एक रुपये पड़े होंगे। यदि उन्हें खर्च कर दिया तो क्या होगा?" फिर उसने सोचा कि अगर वह पुस्तक मेले में गया, तो मन ललचाएगा, और फिर किताबें खरीदने का क्या लाभ? तभी उसने अपने मन को समझाया, "यदि मैं पुस्तकें खरीद नहीं सकता, तो क्या हुआ? मैं उन्हें देख तो सकता हूँ। कौन-कौन सी, किन-किन लेखकों की नई-नई पुस्तकें आई हैं। कम से कम इससे मेरी जानकारी तो बढ़ेगी।" यह सोचकर वह पुस्तक मेले की ओर चल पड़ा। पुस्तक मेले में हजारों की संख्या में पुस्तकें थीं। उसने हर दिशा में नजर घुमाई, जहाँ-तहाँ पुस्तकें ही पुस्तकें दिखाईं दीं। उसका मन हुआ कि वह इन सारी पुस्तकों को खरीद ले, लेकिन उसने अपनी जेब में हाथ डाला और सहम गया। "नहीं, इस पांच सौ को मैं खर्च नहीं करूंगा।" लेकिन जब उसकी दृष्टि पुस्तकों पर जाती, तो उसका मन फिसलने लगता। वह उन ढेर सारी पुस्तकों से लिपटने का मन बना रहा था। उसे पुस्तकों के कागज की सुगंध बहुत भाती थी। उसने एक पुस्तक उठाई, उसे खोला और गहरी सांस लेकर उस पुस्तक की सुगंध को अपने भीतर समा लिया। तभी एक सेल्समैन ने उसे टोका, "अरे! यह क्या कर रहे हो? ये पुस्तकें हैं, फूल नहीं!" उसका मन हुआ कि वह इस सेल्समैन से कहे, "भाई, तुम्हें ये पुस्तकें दिखती होंगी, लेकिन मेरे लिए ये मेरी आत्मा को तृप्त करती हैं।" लेकिन उसने कुछ कहा नहीं। उसका विवेक उससे बोला, "इसमें रुष्ट होने की कोई बात नहीं है। इस सेल्समैन का कर्तव्य है कि वह पुस्तकों की देखभाल करे। तुम कर भी रहे हो तो बचकाना हरकत।" उसने चुपचाप गुमसुम दृष्टि लिए उस स्टाल से आगे बढ़ गया। उसका हाथ बार-बार अपने पांच रुपये के नोट पर जाता और दृष्टि पुस्तकों पर। उसने कई बार अपना पांच रुपये का नोट निकालकर देखा और सोचा, "पुस्तक लूँ या न लूँ? दो सौ रुपये की खरीद लूँ?" फिर उसने मन में कहा, "नहीं, अभी ट्यूशन के रुपये मिलने में पंद्रह दिन शेष हैं। अगर इस बीच पैसे की आवश्यकता हुई तो किससे मांगता फिरूंगा?" इसी बीच, उसकी दृष्टि दीवारों पर लगे बड़े-बड़े पोस्टरों और बैनरों पर गई। उन पर लिखा था: "हमें पुस्तकें पढ़नी और पढ़ानी चाहिए। पुस्तकों का संग्रह करो।" उसने सोचा कि "ये किताबें तो चंदन की लकड़ी की तरह हैं, जो सुगंधित होती हैं।" जब उसकी दृष्टि एक लंबे चौड़े टाई वाले आदमी पर पड़ी, जिसने सेल्समैनों को निर्देश दिया, तो उसने सोचा कि वह उस अधिकारी से बात करेगा। "जो पुस्तकें तुम मांग रहे थे, वे अनुपलब्ध हैं। ये केवल पुस्तकालय में मिलेंगी," अधिकारी ने उसे बताया। उसने कहा, "पुस्तकालय मेरे घर से बहुत दूर है।" अधिकारी ने कहा, "तो तुम्हें शाही ठाठ चाहिए।" उसने आत्मविश्वास के साथ कहा, "नहीं, मुझे घर के पास पुस्तकालय चाहिए।" अचानक उसे याद आया कि उसके पास केवल पांच सौ रुपये हैं। उसने जेब की ओर हाथ बढ़ाया, लेकिन वहाँ कुछ नहीं था। सीख: जीवन में जब भी कठिनाइयाँ आएं, तो धैर्य और समझदारी से निर्णय लें। अपने ज्ञान और इच्छाओं को बढ़ाने के लिए हमेशा कोशिश करें। यह भी पढ़ें:- सीख देती मजेदार कहानी: राजा और मधुमक्खी मजेदार हिंदी कहानी: आलसी राजू मजेदार हिंदी कहानी: घमण्डी राजा Fun Story: घमंडी ज़मींदार #best funny hindi stories #best hindi funny story. #best hindi fun stories You May Also like Read the Next Article