मजेदार बाल कहानियां :- दूध वाला स्पोंसर दूध वाला स्पोंसर :- टीम तैयार थी उन्हें सिर्फ एक स्पोंसर की जरूरत थी। इलाके के सभी बच्चे हाॅकी बड़ी दिलचस्पी से खेलते थे। लगभग सभी के पास अपनी-अपनी हाॅकी स्टिक थी। By Lotpot 23 Oct 2024 in Fun Stories Moral Stories New Update Listen to this article 0.75x 1x 1.5x 00:00 / 00:00 मजेदार बाल कहानियां- दूध वाला स्पोंसर :- टीम तैयार थी उन्हें सिर्फ एक स्पोंसर की जरूरत थी। इलाके के सभी बच्चे हाॅकी बड़ी दिलचस्पी से खेलते थे। लगभग सभी के पास अपनी-अपनी हाॅकी स्टिक थी। उनके मोहल्ले से लगभग एक मील की दूरी पर एक खाली मैदान था जिसे उन लोगों ने खेलने के लायक बना लिया था। उनके पास गोल पोस्ट नहीं था लेकिन उन्हें कोई परवाह नहीं थी। उन्होंने पत्थरों से गोल का दायरा बना लिया था सभी के पास खेलने के लिए जूते नहीं थे पर वो इतने जरूरी भी नहीं थे। उन्हें ऐसा स्पोंसर चाहिए था जो कि उनकी टीम का मैनेजर बन सके। और अगर सभी खिलाड़ियों के पास हाॅकी स्टिक न हो तो वो कहीं से जुगाड़ कर के उसका बंदोबस्त कर ले, फिर चाहे उसे पुराने खिलाड़ियों से मांग कर लानी पड़े। और सबसे जरूरी अगर टीम जीत जाये तो उन्हंे बढ़िया से पार्टी दे सके। बस एक स्पोंसर को इतना ही करना था। यह कहानी हाॅकी खिलाड़ी ध्यानचंद के समय की है उस समय भारतीय टीम ओलंपिक खेलों में जीती थी और जर्मनी के अडोल्फ हिटलर ने भी टीम की भूरी-भूरी प्रशंसा की थी। लेकिन खिलाड़ियों के माता-पिता को उनके खेलने से काॅफी परेशानी थी। उनका कहना था कि खेल से उनके बच्चों का पढ़ाई से ध्यान भटकता है। टीम ने फिर भी उम्मीद नहीं छोड़ी थी। मोहल्ले का दूधवाला उनका स्पोंसर बनने को तैयार हो गया। उसकी एक छोटी सी दुकान थी जहां वो रोज सुबह ताजा दूध बेचता था। और बचे हुए दूध को काढ-काढ कर शाम को कुल्हड़ में मलाई वाला दूध बेंचता था। दूधवाला टीम को भी स्पोंसर के रूप में बेचता था। क्योंकि न सिर्फ वो विजयी खिलाड़ियों को मुफ्त में दूध पिलाता था बल्कि उनकी टूटी हुई हाॅकी स्टिक भी जोड़ देता था।उसका टीम के साथ जुडना इसलिए भी बहुत अच्छा था कि उसके पास दिन में काफी खाली समय होता था सुबह दूध बेचने के बाद वह दुकान बंद करता था और फिर शाम को ही खोलता था। खाली समय में वह टीम के लिए नये मैच खेलने का बंदोबस्त करता था। टीम में कौन-कौन से खिलाड़ी खेलेंगे, इसका निर्णय भी वही करता था। जिले के हाॅकी टूर्नामेन्ट में टीम सेमीफाइनल तक पहुंच गई थी। उनका मुकाबला मिशन स्कूल की टीम से था। दूसरा सेमीफाइनल इस्लामिया स्कूल और एक अन्य टीम के साथ था।तभी एक दुर्घटना हुई। प्रैक्टिस मैच के दौरान उनकी बाॅल की सिलाई खुल गई। नई बाॅल लाना बेहद मुश्किल था और प्रैक्टिस भी जरूरी थी अगर वे प्रैक्टिस नहीं करते तो उनका विनर्स कप जीतना लगभग नामुमकिन था। अगले दिन एक और गाज गिर गई। उनके स्पोंसर की मृत्यु हो गई। उसका कोई रिश्तेदार नहीं था आस-पास के दुकानदारों ने ही उसकी अंतिम क्रिया का बंदोबस्त किया। मोहल्ले के बुजूर्गो ने पुलिस की उपस्थिति में उसके दुकान में दाखिल हुए और पाया कि वहां एक पुराने बक्से में केवल उसके कुछ कपड़े और दो चादरें थी। उसमें पैसे तो नहीं थे पर एक पोटली में दो नई हाॅकी बाॅल रखी थी। स्पोंसर को अपनी टीम की आवश्यकता का पूरा ध्यान था और इसलिए उस ने अपने जीवन का मैच समाप्त होने से पहले ही अपनी टीम की जरूरतें पूरी कर दी थीं। कहानी की सीख: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि सच्ची स्पॉन्सरशिप केवल वित्तीय सहायता देने तक सीमित नहीं होती, बल्कि एक वास्तविक स्पॉन्सर वह होता है जो टीम के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का पालन करता है और खिलाड़ियों की जरूरतों को समझता है। दूधवाले ने अपनी टीम के खिलाड़ियों के प्रति जो समर्पण दिखाया, वह उनके लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया। यह भी हमें याद दिलाता है कि मुश्किल समय में दोस्ती और सहयोग का महत्व कितना बढ़ जाता है। ये मजेदार बाल कहानियां भी पढ़ें : मजेदार कहानी : तुम कब बड़े होगे? पुस्तकों से प्यार की एक मजेदार कहानी स्कूल के रहस्यमय चोर का पर्दाफाश Cricket story : वीनू को क्रिकेट का बुखार You May Also like Read the Next Article