मजेदार कहानी : तुम कब बड़े होगे?

मजेदार कहानी : तुम कब बड़े होगे?- राजा तेरह साल का था। उसे अपनी मां से यह वाक्य दिन में कई बार सुनना पड़ता था। राजा को एक बड़ी अजीब परिस्थिति का सामना करना पड़ रहा था।

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मजेदार कहानी : तुम कब बड़े होगे?- राजा तेरह साल का था। उसे अपनी मां से यह वाक्य दिन में कई बार सुनना पड़ता था। राजा को एक बड़ी अजीब परिस्थिति का सामना करना पड़ रहा था। अगर वह बच्चों के साथ खेलने जाता, तो बच्चे उसे बड़े बच्चों या लोगों के साथ जाने के लिए कहते। और जब वह बड़े लड़कों के साथ खेलने जाता, तो वे उसे बच्चों के साथ खेलने को कहते। उसके माता-पिता भी सोचते थे कि वह अभी बड़ा नहीं हुआ है।

राजा के माता-पिता एक खुशहाल दंपत्ति थे। वे कुछ समय पहले अपना पुश्तैनी गांव छोड़कर शहर आ गए थे। गांव में उनके लिए कोई काम नहीं था। लगातार दो वर्षों से सूखा पड़ने के कारण खेतों में काम करने वाले मजदूरों और किसानों के पास कोई काम नहीं था। ज्यादातर लोग अपने गांव छोड़कर शहरों में काम ढूंढने आ गए थे। राजा के पिता एक अच्छे बढ़ई थे, इसलिए उन्हें जल्दी ही शहर में काम मिल गया। राजा फुटबॉल का अच्छा खिलाड़ी था, इसलिए उसे भी जल्दी ही एक अच्छे स्कूल में दाखिला मिल गया।

राजा और उसका परिवार शहर से कुछ दूर रहते थे। वह रोज सुबह आठ बजे से पहले ही घर छोड़ देता था ताकि वह वक्त से स्कूल पहुंच जाए। स्कूल से घर वापिस आने में वह थक जाता था, और गर्मियों में तो और भी बुरा हाल होता था। लेकिन राजा ने इसका एक रास्ता निकाल लिया था। उसके रास्ते में एक रेलवे गोदाम पड़ता था, जहाँ बैलगाड़ियों में सामान लादकर भेजा जाता था। राजा उस में से किसी एक गाड़ी में लिफ्ट ले लेता था और आसानी से घर पहुंच जाता था।

एक दिन जब उसकी गाड़ी गोदाम पहुंची, तो बैलगाड़ी वाले ने उससे कहा, "मेरी तबियत ठीक नहीं है। क्या तुम यह सामान उतारने में मेरी मदद करोगे?" राजा को लगा कि रोज लिफ्ट लेता है, तो उसे उनकी मदद करनी चाहिए। बस यही सोचकर उसने बैलगाड़ी वाले की मदद कर दी।

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बैलगाड़ी वाले ने राजा को कुछ पैसे भी दिए। पहले तो राजा ने मना किया, लेकिन गाड़ी वाला बोला, "मुझे जो मिलता है उसमें से दे रहा हूं," तो राजा ने पैसे ले लिए।

उस दिन के बाद से तो यह रोज होने लगा। हफ्ते भर में राजा ने अच्छी कमाई कर ली थी। राजा ने इस बारे में अपने माता-पिता को कुछ नहीं बताया था।

राजा की मां को सजना-संवरना बहुत अच्छा लगता था। वे महंगे कपड़े या कीमती जेवर तो नहीं खरीद सकती थीं, लेकिन उनके बाल भी कंघी से कढ़े होते थे। बीच की मांग निकालकर उसमें पतली सिंदूर की लाइन लगाने का उन्हें बहुत शौक था।

लेकिन उनकी एक ही समस्या थी। उनके पास एक टूटा शीशा था, जिसमें उन्हें ठीक से दिखाई नहीं देता था। एक दिन, स्कूल से वापिस आते समय राजा के दिमाग में एक विचार आया। उसने अपने कमाए पैसों से एक बड़ा सा शीशा खरीदा और घर ले जाकर चुपचाप उस टूटे शीशे की जगह रख दिया।

शाम को जब राजा की मां कमरे में आईं, तो शीशा देख कर बहुत खुश हुईं क्योंकि अब वो उसमें अपने-आप को ठीक से देख सकती थीं। उन्होंने राजा के पिता जी को बुलाकर धन्यवाद करना चाहा। पिता को कुछ समझ नहीं आया। राजा की मां ने शीशे की तरफ इशारा किया, तो वे बोले, "ये मैं नहीं लाया हूं। ये कौन लाया है?" उसी समय राजा कमरे में आया और उन्हें सारी बात बताई कि किस तरह उसने पैसे कमाए और उन पैसों से अपनी मां के लिए तोहफा लाया है।

उसके माता-पिता की खुशी का ठिकाना न रहा और इस बार उसकी मां के मुंह से निकला, "मेरा लड़का अब बड़ा हो गया है।"

मजेदार कहानी से सीख:

कड़ी मेहनत और सकारात्मक सोच से हम अपने परिवार को खुश कर सकते हैं। बच्चों को अपने प्रयासों की कीमत समझनी चाहिए और अपनी जिम्मेदारियों को निभाना चाहिए।

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