रंगों का खेल: पंडित चतुर के साथ होली

नमस्ते बच्चों! होली का त्योहार रंगों और खुशियों का है, और आज हम एक Best Fun Story, लेकर आए हैं, जिसमें पंडित चतुर और बच्चों का मज़ेदार खेल देखने को मिलेगा। यह बच्चों की होली कहानी न सिर्फ हंसी-मज़ाक से भरी है

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रंगों का खेल- नमस्ते बच्चों! होली का त्योहार रंगों और खुशियों का है, और आज हम एक Best Fun Story, लेकर आए हैं, जिसमें पंडित चतुर और बच्चों का मज़ेदार खेल देखने को मिलेगा। यह बच्चों की होली कहानी न सिर्फ हंसी-मज़ाक से भरी है, बल्कि सच्चाई और चालाकी का पाठ भी सिखाती है। तो चलो, इस रंगीन सफर पर चलें!

पंडित चतुर का दावा

एक छोटे से शहर में पंडित चतुर रहते थे, जो खुद को बहुत होशियार समझते थे। वे ग्रह-नक्षत्रों का डर दिखाकर लोगों से मुफ्त में खाना खाते थे। उन्हें चुनौती देने की आदत भी थी। जब होली नजदीक आई, तो उन्होंने मुहल्ले के बच्चों को ललकारा, "इस बार भी मैं होली नहीं खेलूंगा। कोई मुझे रंग नहीं लगा सकता। मेरी चतुराई हर बार मुझे बचा लेती है!"

तभी पास से गुजरते हुए छोटू ने कहा, "दोस्तों, इस बार होली में खूब मस्ती करनी है, है न?" राजू ने जवाब दिया, "हां, लेकिन पंडित चतुर फिर से चुनौती दे रहा है कि कोई उसे रंग नहीं लगा सकता।" पंडित चतुर मुस्कुराए और बोले, "अगर कोई मुझे रंग लगा दे, तो मैं सबको स्वादिष्ट दावत दूंगा!"

छोटू तुरंत बोला, "चुनौती स्वीकार है, पंडित जी! पर वादा न भूलना।" पंडित चतुर ने गर्व से कहा, "मेरी बात पत्थर की लकीर होती है।"

योजना की शुरुआत

घर लौटते ही पंडित चतुर ने सोचना शुरू किया, "अबकी बार इज्जत का सवाल है, रंग से बचना होगा।" दूसरी ओर, बच्चे एक साथ बैठे और पंडित को रंगने की योजना बनाने लगे। छोटू चिल्लाया, "मेरा एक शानदार आइडिया है!" सबने उसे घेर लिया, "बताओ न, छोटू भाई!" लेकिन छोटू मुस्कुराया, "थोड़ी देर रुक जाओ, पहले तुम सब मेरी तारीफ करो!"

राजू, जो जल्दबाज था, बोला, "अरे, इंतजार नहीं होता! मेरा भी एक प्लान है, सुनो सब!" उसने सबके कान में कुछ फुसफुसाया, और बच्चे खुशी से नाचने लगे। "राजू का प्लान कमाल का है! अब पंडित चतुर को छकाना तय है!" वे गाते हुए बोले, "राजू की चाल चलेंगे, पंडित को रंग में डुबाएंगे!"

छोटू का घमंड चूर हो गया। उसने सोचा, "अब मेरी बारी है।" वह बीच में कूद पड़ा, "रुको, मेरी योजना भी सुनो, शायद यह सबसे बेहतर हो!" राजू हंसा, "हां, बताओ, मेरी योजना तो बस तुम्हें जल्दी बोलने के लिए थी!" छोटू शरमाया, लेकिन बोला, "ठीक है, सुनो—हम पंडित जी के घर के बाहर एक नकली दुकान का बोर्ड लगाएंगे!"

होली का दिन

होली की सुबह पंडित चतुर अभी सोकर उठे ही थे कि बाहर से आवाज आई, "साब, गरमा-गरम समोसे चाहिए!" पंडित ने खिड़की से झांका और बोले, "यह मेरा घर है, कोई दुकान नहीं! गलत जगह आए हो।" लेकिन आवाज फिर आई, "अरे साब, आपका बोर्ड तो साफ कह रहा है—'समोसा सेंटर'!"

गुस्से में पंडित बाहर आए और बोले, "कौन सा गधा यह बोर्ड टांग गया?" उन्होंने एक लाठी उठाई और बोर्ड पर जोर से मारी। तभी रंग भरे गुब्बारे फूटे, और पंडित चतुर रंगों से सराबोर हो गए! छिपे बच्चों ने ताली बजाई और गाया, "होली आई रे, रंगों की बहार आई रे!"

यह छोटू का प्लान था—बोर्ड के पीछे गुब्बारे छिपाकर। सीमा चहककर बोली, "राजू भैया, अब दावत कब?" पंडित चकित थे, "लड़कियों को कैसे पता?" सीमा हंसी, "हमने तुम्हारे साथ मदद की, दावत के लिए!" पंडित हार मानकर बोले, "ठीक है, बैठो, मैं मिठाई लाता हूँ।"

दावत में बच्चे खीर, जलेबी और पूरी खा रहे थे। पंडित चतुर ने सोचा, "इन बच्चों ने मुझे चकमा दिया, लेकिन मज़ा भी आया।" उसी दिन शाम को एक और योजना बनी। बच्चे पंडित को होली के रंगों से भरे एक खेल में शामिल करने को तैयार हुए। पंडित बोले, "अब तो मैं भी खेलूंगा, पर अगली बार तुम्हें पछाड़ दूंगा!" सब हंसे और रंगों का खेल शुरू हुआ।

सीख

इस मज़ेदार हिंदी कहानी से बच्चों को यह शिक्षा मिलती है कि चालाकी से नहीं, सच्चाई और दोस्ती से ही खुशी मिलती है। होली में सबको साथ लेकर खेलो!

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