चांदी के सिक्के और मुल्ला नसरुद्दीन की चतुराई- मुल्ला नसरुद्दीन के जीवन में एक ऐसा समय आया जब हालात इतने खराब हो गए कि उनके पास खाने के लिए भी पैसे नहीं बचे। उन्होंने बहुत सोचा और आखिरकार यह फैसला किया कि भीख मांगना, उनकी वर्तमान स्थिति में, सबसे आसान और सीधा रास्ता है। इसके बाद नसरुद्दीन ने शहर के मुख्य चौक पर जाकर भीख मांगना शुरू कर दिया। उनके पुराने दुश्मन, जो उनकी बेहतर स्थिति में उनसे जलते थे, उन्हें देखकर मजाक उड़ाने का कोई मौका नहीं छोड़ते। वे उनके सामने एक सोने का और एक चांदी का सिक्का रख देते और कहते, "इनमें से एक चुन लो।" लेकिन नसरुद्दीन हमेशा चांदी का सिक्का ही चुनते और दुआएं देते। यह देखकर दुश्मन उनकी खिल्ली उड़ाते और उन्हें बेवकूफ समझते। शहर के कुछ लोग, जो नसरुद्दीन के प्रशंसक थे, उनकी इस हरकत को देखकर हैरान होते। एक दिन उनमें से एक व्यक्ति ने नसरुद्दीन से पूछा, "मुल्ला साहब, आप जानते हैं कि सोने का सिक्का चांदी के सिक्के से कहीं ज्यादा कीमती है। फिर भी आप हर बार चांदी का सिक्का क्यों चुनते हैं? क्या आपको यह पता नहीं?" नसरुद्दीन मुस्कुराते हुए बोले, "हर चीज वैसी नहीं होती जैसी वो दिखती है। अगर मैं एक बार सोने का सिक्का उठा लूं, तो अगली बार ये लोग मुझे किसी भी तरह के सिक्के देना बंद कर देंगे। मैं चांदी का सिक्का उठाकर हर बार उन्हें हंसने का मौका देता हूं, और इसी तरह धीरे-धीरे मैंने इतने चांदी के सिक्के जमा कर लिए हैं कि अब मुझे खाने-पीने की कोई चिंता नहीं है।" इस जवाब से वह व्यक्ति बहुत प्रभावित हुआ। नसरुद्दीन ने अपनी सरलता और चतुराई से अपनी स्थिति को बेहतर बना लिया था, और यह बात उसे दूसरों से अलग बनाती थी। सीख: इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि कभी-कभी जीवन में चतुराई और धैर्य से काम लेने पर हमें लंबे समय तक लाभ मिलता है। दिखावे के पीछे भागने के बजाय, अगर हम अपनी समझ और रणनीति का इस्तेमाल करें, तो अपनी समस्याओं को आसानी से हल कर सकते हैं। सही समय पर सही निर्णय लेने की कला ही असली सफलता की कुंजी है। और पढ़ें : चालाक चिंटू ने मानी ग़लती | हिंदी कहानी चेहरे को ठंड क्यों नहीं लगती? Fun Story : मोहित का चतुराई भरा प्लान आनंदपुर का साहसी हीरो