चेहरे को ठंड क्यों नहीं लगती?- जाड़े का मौसम था। कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। एक सुबह, बंगाल के एक कॉलेज के आँगन में 16 वर्षीय एक तरुण विद्यार्थी, विवेकानंद जी की एक पुस्तक पढ़ने में मग्न था। उसे यह पता ही नहीं चला कि कॉलेज के अंग्रेज प्रिंसिपल, मि. ओटन, कब से उसके पीछे खड़े थे।
प्रिंसिपल साहब को यह देखकर आश्चर्य हो रहा था कि इतनी भयानक ठंड में, सामान्य सूती कपड़ों में यह लड़का न ठंड से काँप रहा है और न ही उसकी एकाग्रता भंग हो रही है। दूसरी ओर, प्रिंसिपल साहब गरम सूट-बूट और मफलर में लिपटे हुए भी ठंड महसूस कर रहे थे।
अंततः प्रिंसिपल ने उस तरुण से पूछा,
"तुम्हें इस खुले मैदान में पढ़ना अच्छा लगता है? क्या तुम्हें ठंड नहीं लग रही?"
तरुण ने किताब से ध्यान हटाते हुए उत्तर दिया,
"नहीं।"
यह सुनकर प्रिंसिपल हैरान रह गए। उन्होंने दोबारा पूछा,
"आखिर तुम्हें ठंड क्यों नहीं लग रही?"
यह सुनते ही तरुण उनके पास गया, अपनी हथेली उनके चेहरे पर घुमाई और कहा,
"सर, आपने अपना सारा शरीर तो कपड़ों से ढक रखा है, लेकिन आपका चेहरा खुला है। इसे ठंड क्यों नहीं लग रही?"
प्रिंसिपल ने कहा,
"हम सबका चेहरा हमेशा खुला रहता है। इसे सब कुछ सहने की आदत हो गई है। इसी कारण इसे ठंड नहीं लगती।"
तब तरुण तपाक से बोला,
"मैं भी हमेशा इन्हीं साधारण कपड़ों में रहता हूँ। इसलिए मुझे भी ठंड नहीं लगती।"
आगे चलकर यही तरुण "नेताजी" के नाम से प्रसिद्ध हुआ। "जय हिंद" का नारा इन्हीं से देश को मिला। विद्यार्थी जीवन में उन्होंने गरीबों की सेवा की। आई.सी.एस. की डिग्री लेकर भी उन्होंने देश सेवा को प्राथमिकता दी। विदेश जाकर उन्होंने "आजाद हिंद फौज" का गठन किया और देश को आजादी दिलाने की कोशिश की। यह महान व्यक्तित्व थे सुभाषचंद्र बोस।