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Hindi Kids Story जमीन का चक्कर: सरजू और मुरारी पड़ोसी किसान थे। दोनों अपने अपने खेत में फसल उगाते और सुखपूर्वक रहते। एक हद तक वे एक दूसरे के दुख-सुख के साथी भी थे। खाली समय में वे अक्सर पेड़ की छाया में बैठकर बाते करते थे। और सलाह-मशवरा करते।
एक दिन सरजू ने कहा। मुरारी भाई, मैं शीघ्र ही एक भैंस खरीदने वाला हूँ। अपनी भैंस होगी तो बच्चे छक कर दूध पीयेंगे। घी मक्खन खायेंगे।
बड़ी खुशी की बात हैं। सरजू भाई, लेकिन तुम्हारी पशुशाला में तो जगह ही नहीं है। भैंस कहाँ बाँधोंगे? मुरारी ने अपनेपन से पूछा तो सरजू बोला। बाँधने की क्या चिन्ता। सामने जो परती जमीन पड़ी है वहीं।
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मुरारी उसकी बात बीच में ही काटकर बोला, वहाँ कैसे बाँधोगे? वह तो मेरी जमीन हैं। मैं बैलगाड़ी लेने वाला हूँ, उसे रखने के लिए वहां छप्पर डालूँगा।
बस, तभी से परती जमीन का वह छोटा सा टुकड़ा सरजू और मुरारी के बीच तनातनी का कारण बन गया। उनकी बोलचाल बंद हो गई। दोनों परिवारों में अब कोई संबंध था तो केवल नफरत का। कई बार तो उनमें मारपीट तक होते होते बची।
दोनों गाँव में घूम घूमकर अपने पक्ष की बात कहते। वे गाँव के लोगों का अपने अपने पक्ष में समर्थन चाहते थे। सरजू के पक्ष वालों ने उसे समझाया, तुम जमीन में अपना खंूटा गाढ़ दो। तुम्हारी भैंस वहीं बँधनी चाहिए।
सरजू ने आवेश में खूँटा गाढ़ दिया। तभी मुरारी ने अपने पक्ष वालों की शह पर उसे उखाड़ फेंका। फलस्वरूप दोनों ओर से लाठियाँ तड़क उठी। खून खराबा हुआ और मामला पुलिस में पहुँचा। फिर पुलिस से अदालत में पहुँच गया। दो साल मुकदमा चलता रहा। दोनों पक्षों के वकीलों ने तरह तरह की दलीलें पेश की। सरजू और मुरारी ने पानी की तरह पैसा बहाया।
अचानक वह न्यायाधीश बदल गये, जिनकी अदालत में वह मामला चल रहा था। नए न्यायाधीश ने फाइल देखतेे हुए सरजू से पूछा। जिस भैंस को बाँधने के लिए तुमने उस जमीन पर खूंटा गाड़ा था। तो उसी जमीन के खूँटे में भैंस बाँधते हो।
माफी दे सरकार, वह भैंसे तो मैं खरीद नहीं पाया।
सरजू की बात सुनकर न्यायाधीश चैंके। उन्होंने अगला प्रश्न मुरारी से किया।
तुमने तो बैलगाड़ी खरीद ली होगी?
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जी नहीं माईबाप। मुरारी झेंपता हुआ बोला। सुनकर न्यायाधीश आश्चर्यचकित हो उठे। जब तुम दोनों ने न भैंस खरीदी हैं और न बैलगाड़ी फिर झगड़ा कैसा?
इतना कहकर न्यायाधीश ही नहीं, अदालत में उपस्थित सब लोग हँस हँसकर लोटपोट होने लगे। बाद में दोनों ने न्यायाधीश को अपनी व्यथा कथा सुनाई कि कैसे गाँठ का पैसा खत्म हो जाने पर उन्होंने जमीन का एक टुकड़ा बेचकर मामले की पैरवी की है।
फिर न्यायधीश ने समझाया की जब तुम दोनों ने कुछ लिया ही नहीं तो लड़ाई किस बात के लिए की। और न्यायधीश ने उनका केस बन्द कर दिया। और ये भी बोला की किसी की बातों में मत आया करो।
सरजू और मुरारी गाँव में जाकर पहले कि तरह मिल कर रहने लगे।