शिक्षाप्रद बाल कहानी : लापरवाही का सबक

शिक्षाप्रद बाल कहानी: माँ को रवि की आदतें बिल्कुल पसंद नहीं थी। वह हमेशा उससे नाराज रहती। पिताजी भी रवि को बार-बार समझाते। परन्तु रवि पर किसी की बातों का असर नहीं होता था। रवि बहुत जिद्दी और शरारती था। उस दिन सवेरे सात बजे तक रवि सोता रहा। मां उसे बार-बार जगाती रही। लेकिन रवि नहीं उठा।

By Lotpot
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Instructive Children's Story Lessons of Negligence

शिक्षाप्रद बाल कहानी: माँ को रवि की आदतें बिल्कुल पसंद नहीं थी। वह हमेशा उससे नाराज रहती। पिताजी भी रवि को बार-बार समझाते। परन्तु रवि पर किसी की बातों का असर नहीं होता था। रवि बहुत जिद्दी और शरारती था। उस दिन सवेरे सात बजे तक रवि सोता रहा। मां उसे बार-बार जगाती रही। लेकिन रवि नहीं उठा।

पिता जी आठ बजे कोयला खदान में काम करने चले जाते थे। उस दिन भी चले गए। मां ने कहा, ‘रवि... जल्दी से नहा ले... स्कूल बस साढ़े आठ बजे आ जाती है!’ मां... आज मैं नहीं नहाऊंगा !!

‘‘क्यों नहीं नहाएगा? स्वस्थ रहने के लिए हर रोज नहाना चाहिए बेटे... साफ सुथरे नहीं रहोगे, तो तरह-तरह की बीमारियां घेर लेती है। ‘लेकिन रवि जिद पर अड़ गया पहले तो मां उसे समझाती रही। फिर डांट पड़ी तो रवि बेमन से नहा आया।

मां रसोई में खाना परोसने चली गई। जब वह रवि को पुकारने आई तो सन्न रह गई। उसने बड़े परिश्रम से जो स्वेटर बुनना शुरू किया था उसे रवि खोलकर सारा ऊन फर्श पर फेंक चुका था।

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‘रवि...यह क्या... मेरी सारी मेहनत पर तूने पानी फेर दिया...?’ ‘हां...मैने फेंक दिया। मैने कल अपनी कमीज इसी मेज पर रखी थी। ढूंढकर हार गया...’ ‘‘तो गुस्से में तुमने सारा ऊन नीचे फेंक दिया है न?’ मां को बहुत गुस्सा आया। फिर भी रवि को समझाते हुए बोली, ‘बेटे.. क्या कमीज उतार कर मेज पर फेंकी जाती है? क्या अच्छे बच्चे ऐसा ही करते है? कपड़े टांगने के लिए खूंटियां हैं। कपडे़ इधर-उधर फेंकने से गंदे हो जाते है। तुम्हें मालूम है गंदे कपडे धोने में मुझे कितना परिश्रम करना पड़ता है?’

‘‘चलो मुझे नए कपडे़ दो!’ रवि जैसे मां की कोई बात सुनना नही चाहता था। मां ने अलमारी से उसे नए कपडे दिए। फिर रवि को खाना खिलाया। खाना खाकर रवि स्कूल चला गया। स्कूल से लौटा तो मां उस पर बरस पडी, ‘‘रवि... आज ही तू नए कपडे पहनकर गया और कमीज पर इतने धब्बे कैसे लगे है... आह... कितने गंदे हो गए हैं तुम्हारे कपडे।’

‘‘मां... स्कूल में दोस्तों के साथ कबड्डी खेल रहा था। कपड़ों में धूल लग गई और ये नीले निशान स्याही के है।’  ‘स्याही के?’ ‘हां...सुन्दर का पेन खराब हो गया था। उसे बना रहा था तो स्याही उलट गई। ‘ओह...तू बहुत शैतान होता जा रहा है... सुबह स्कूल जाने से पहले तू बेबी के घर

गया था न?!

‘हां गया तो था?’ रवि ने उसकी ओर देखा। और बेबी ने परिश्रम से जो मिट्टी के खिलौने बनाए थे, उसे तूने तोड़ दिए हैं... है न?’ ‘‘पैर लग गया तो मैं क्या करूं?’ मां चुप रह गई। उसे समझ में न आ रहा था कि कैसे वह रवि को समझाए। कैसे रवि की लापरवाही दूर की जाए। मां ने पिताजी को भी सब कुछ बता दिया। सुनकर पिताजी भी सोच में पड गए। सप्ताह इसी तरह बीत गया। उस दिन। रवि ड्राईंग पेपर पर पेंसिल से चित्र बना रहा था। रवि...क्या कर रहे हो?’ पिता जी. ने पूछा।

‘‘पिताजी... देखिए न... हमें होम वर्क में एक चित्र बनाना है...’ ‘‘कौन-सा चित्र?’’ एक जोड़ा आम, पत्तियों के साथ तुमने बना लिया?! ‘हां एक घंटे से बना रहा हूं। मेहनत तो काफी लगी...लेकिन बन ही गया...अब रंग भरने है।’

पिताजी मुस्कराए, ‘चलो अच्छा हुआ... अरे हां... बेटे मां से कहकर जरा मेरे लिए चाय तो ला दो।’ ‘अभी ठहरिए न पिताजी... पहले इस चित्र को पूरा...’ ‘‘तो ठीक है। मै चाय पिए बिना बाजार जाऊंगा नहीं। बाजार जाऊंगा नहीं तो पत्रिका आएगी नहीं!, ‘पत्रिका’ ‘अच्छा-अच्छा अभी चाय लाता हूं।’

रवि उठकर रसोई घर की ओर चला गया। जब वह पिताजी की चाय देकर चित्र के पास गया तो स्तब्ध रह गया। पूरे ड्राईंग पेपर पर नीली स्याही बिखरी थी। रवि के सारे परिश्रम पर पानी फिर गया था। पिताजी चाय की चुस्की लेते हुए अखबार पढ़ रहे थे।

रवि फूट-फूटकर रोने लगा। पिताजी ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा, ‘क्या हुआ बेटे?! ‘‘मैने कितनी मेहनत से चित्र बनाया था...ऊं ऊं... आपने उस पर स्याही बिखेर दी ऊं ऊं

तब तक मां भी वहां आ गई। ‘‘बेटे... मैं तो अखबार लेने जा रहा था। पैर से लग कर स्याही उलट गई तो मैं क्या करूं?’ एकाएक रवि को अपनी लापरवाही याद आ गई। वह भी तो मां के हर परिश्रम पर पानी फेर देता है? बेबी के खिलौनों को लापरवाही से उसने तोड़ दिए थे?

रवि चुप हो गया। पश्चाताप से उसने सिर झुका लिया। ‘देखा बेटे ...तुम्हारे परिश्रम पर पानी फेर देने से तुम्हें कैसी चोट लगी। वैसे ही सभी को दुख होता है। सिर्फ तुम्हें महसूस कराने के लिए मैने ऐसा किया। वैसे जिस चित्र पर तुमने परिश्रम किया उसे मैने छिपाकर अलमारी पर रख दिया है।’

अचानक रवि की आंखें भर आईं। वह धीरे से बोला, ‘पिताजी आप बहुत अच्छे है... मुझे क्षमा कर दीजिए अब मै कभी लापरवाही नहीं करूंगा। अच्छा बच्चा बनूंगा।’ ‘शाबाश बेटे!’ पिताजी प्रसन्नता से बोले। मां का मन भी प्रसन्‍नता से झूम उठा। रवि को अच्छा सबक मिल गया था।’

 

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