Jungle Story- मूर्ख को सीख - एक समय की बात है, एक घने जंगल में एक ऊंचे पेड़ पर एक गौरैया का घोंसला था। वह घोंसला उसका प्यारा घर था, जिसमें वह और उसके बच्चे रहते थे। सर्दी के दिन थे, और कड़ाके की ठंड से पूरा जंगल ठिठुर रहा था। इसी जंगल में कुछ बंदर भी रहते थे। एक दिन, ठंड से कांपते हुए तीन-चार बंदरों ने उसी पेड़ के नीचे आश्रय लिया।
बंदरों में से एक ने कहा, "भाई, ये ठंड तो हमें खा जाएगी। काश! कहीं से आग मिल जाए तो थोड़ा तापकर जान बचा लें।"
दूसरे बंदर ने उत्साह से कहा, "हां भाई! देखो, यहां कितनी सूखी पत्तियां गिरी हैं। इन्हें इकट्ठा कर लेते हैं। फिर सोचेंगे कि आग कैसे लगानी है।"
तीसरे बंदर ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा, "सही कहा, चलो, जल्दी से पत्तियां इकट्ठी करते हैं।" बंदरों ने मिलकर सूखी पत्तियों का एक बड़ा ढेर बना लिया और उसके चारों ओर बैठ गए।
अब सवाल यह था कि आग कैसे लगाई जाए। सभी बंदर सोच में पड़ गए। तभी एक बंदर की नजर दूर हवा में उड़ते हुए एक जुगनू पर पड़ी। वह उछल पड़ा और चिल्लाया, "देखो! हवा में चिंगारी उड़ रही है। इसे पकड़ लेते हैं। इसे ढेर पर रखकर फूंक मारेंगे तो आग सुलग जाएगी।"
बाकी बंदर भी उत्साह में आ गए। "हां, हां! जल्दी पकड़ो!" सभी जुगनू के पीछे भागने लगे। इस पूरे दृश्य को पेड़ पर बैठी गौरैया देख रही थी। वह काफी बुद्धिमान और समझदार थी। उससे चुप नहीं रहा गया और उसने कहा, "बंदर भाइयों, यह जो तुम देख रहे हो, यह चिंगारी नहीं, जुगनू है। इससे आग नहीं सुलगेगी।"
लेकिन बंदरों को यह बात अच्छी नहीं लगी। उनमें से एक ने क्रोधित होकर कहा, "अरे, मूर्ख चिड़िया! चुपचाप अपने घोंसले में बैठ। हमें मत सिखा। हम जानते हैं क्या करना है।"
इतना कहकर एक बंदर उछलकर जुगनू को पकड़ लाया और उसे पत्तियों के ढेर के बीच में रख दिया। अब सभी बंदर चारों ओर से ढेर पर फूंक मारने लगे। गौरैया ने फिर से सलाह दी, "भाइयों, मेरी बात सुनो। जुगनू से आग नहीं जलेगी। इसके बजाय, दो पत्थरों को आपस में टकराकर चिंगारी पैदा करो।"
लेकिन बंदरों को ये सलाह नागवार गुजरी। उनमें से एक बंदर गुर्राकर बोला, "चुप रह! तू हमें बेवकूफ समझती है क्या?" वे अब भी फूंक मारते रहे, लेकिन आग नहीं सुलगी। गौरैया ने हिम्मत नहीं हारी और फिर कहा, "कम से कम दो सूखी लकड़ियों को आपस में रगड़ने की कोशिश करो। इससे आग लग सकती है।"
अब बंदरों का गुस्सा सातवें आसमान पर था। ठंड और आग न सुलगाने की खीझ से वे आगबबूला हो गए। उनमें से एक बंदर आगे बढ़ा और क्रोध में आकर गौरैया को पकड़ लिया। उसने गौरैया को जोर से पेड़ के तने पर मारा। बेचारी गौरैया तड़पकर जमीन पर गिर गई और उसकी जान चली गई।
गौरैया की मृत्यु के बाद बंदरों को एहसास हुआ कि उन्होंने एक बड़ी गलती कर दी है। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
सीख:
यह कहानी हमें सिखाती है कि अहंकार और मूर्खता हमेशा विनाश की ओर ले जाती है। यदि बंदर गौरैया की बुद्धिमान सलाह मान लेते, तो वे ठंड से बच सकते थे। हमें हर किसी की बात सुनने और सीखने की आदत डालनी चाहिए, चाहे वह कितना ही छोटा या कमजोर क्यों न हो। समझदारी से काम लेना ही असली ताकत है।