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जंगल की कहानी : हंस चला जंगल के स्कूल- जंगल के पास एक बड़ा सा तालाब था, जिसमें रहता था हंसराज। हंसराज एक मोटा-तगड़ा, आलसी और बेहद मस्तीखोर हंस था। वह दिनभर पानी में तैरता, मछलियां खाता और अपनी टोली के साथ गप्पें मारता।
लेकिन जंगल में कुछ दिनों से एक नई हलचल थी। जंगल का स्कूल शुरू हो चुका था, जहां हर जानवर के बच्चे पढ़ने आते थे। वहां पर बाघ का बेटा बिल्लू, बंदर का बच्चा मोंटू और तोता का बच्चा टीटू पढ़ाई करते थे।
स्कूल जाने की जिज्ञासा
एक दिन हंसराज तालाब के किनारे बैठा था। उसने देखा कि जंगल के सभी जानवरों के बच्चे अपनी-अपनी किताबें लेकर स्कूल जा रहे हैं। बच्चों की बातों और हंसी-ठिठोली को सुनकर उसने सोचा,
"ये स्कूल क्या चीज है? क्यों सब इतनी खुशी-खुशी वहां जा रहे हैं? मैं भी चलकर देखता हूं।"
अगले दिन, हंसराज ने अपनी चोंच में एक पुरानी किताब दबाई, अपने पंख झाड़े और तालाब से निकलकर स्कूल की ओर चल पड़ा।
स्कूल पहुंचने का मजेदार सफर
रास्ते में उसकी मुलाकात गिल्लू गिलहरी और लंबू खरगोश से हुई।
गिल्लू: "हंसराज, कहां जा रहे हो? तालाब में तैरने का मन नहीं है क्या?"
हंसराज: "मैं जंगल के स्कूल जा रहा हूं। मुझे भी देखना है कि वहां क्या होता है। शायद मुझे कुछ नया सीखने को मिले।"
लंबू: "तुम स्कूल? वहां तो पढ़ाई होती है और नियम मानने पड़ते हैं!"
हंसराज: "तो क्या हुआ? मैं नियम मान सकता हूं। बस देखना चाहता हूं कि ये स्कूल आखिर होता क्या है।"
जंगल के स्कूल में हंसराज की एंट्री
जब हंसराज स्कूल पहुंचा, तो सभी जानवर उसे देखकर हैरान रह गए।
बिल्लू बाघ: "अरे! ये हंसराज स्कूल क्यों आया है?"
मोंटू बंदर: "लगता है, इसे भी पढ़ाई करने का शौक हो गया है!"
टीचर, जो खुद उल्लू मास्टरजी थे, ने हंसराज को देखा और मुस्कुराते हुए कहा,
"हंसराज, अगर तुम स्कूल में पढ़ना चाहते हो, तो तुम्हें भी नियम मानने होंगे।"
हंसराज ने झुककर कहा, "जी मास्टरजी, मैं सबकुछ करूंगा।"
क्लास की मस्ती
पहला पीरियड गणित का था। मास्टरजी ने सवाल पूछा,
"अगर तालाब में 10 बत्तखें हैं और 2 उड़ जाएं, तो कितनी बचेंगी?"
हंसराज फौरन बोला, "जो बचेंगी, वो भी उड़ने की तैयारी कर रही होंगी!"
पूरी क्लास ठहाके लगाने लगी।
दूसरे पीरियड में हिंदी पढ़ाई गई। मास्टरजी ने पूछा,
"‘हंस’ का विलोम शब्द क्या है?"
हंसराज ने सोचा और बोला, "विलोम तो नहीं पता, लेकिन मैं उड़ सकता हूं!"
सभी जानवर उलटे सीधे जवाब सुनकर हंसते-हंसते लोटपोट हो गए।
लंच ब्रेक की मस्ती
लंच ब्रेक में सभी जानवर अपने-अपने खाने का टिफिन खोलकर खाने लगे। लेकिन हंसराज को तालाब की याद आ गई। वह सीधे तालाब की ओर भागा और पानी में तैरते-तैरते मछलियां पकड़ने लगा।
मोंटू: "अरे! यह तो लंच भी अपने स्टाइल में कर रहा है।"
टीटू: "शायद इसे तालाब के बिना चैन नहीं आता।"
हंसराज का फैसला
दिन के आखिर में, मास्टरजी ने पूछा, "हंसराज, तुम्हें स्कूल कैसा लगा?"
हंसराज बोला, "मास्टरजी, स्कूल तो मजेदार है, लेकिन मेरी असली जगह तालाब है। पढ़ाई मेरे बस की बात नहीं, लेकिन मैं तालाब में रहकर अपने दोस्तों को मस्ती और तैराकी सिखा सकता हूं।"
कहानी की सीख
हर किसी की अपनी ताकत और जगह होती है। हमें दूसरों से सीखना चाहिए, लेकिन अपनी क्षमताओं को पहचानना और उनका उपयोग करना भी जरूरी है।
"और हंसराज? वह वापस तालाब चला गया, लेकिन अपने स्कूल के दिन कभी नहीं भूला।"