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Jungle Story : यह कहानी एक सियार और भेड़िये की है, जो जंगल के राजा बनने का सपना देखते हैं। वे सोचते हैं कि अगर वे राजा बन गए, तो वे अन्य प्राणियों पर हुक्म चला सकेंगे। लेकिन जंगल का असली राजा शेरसिंह होता है। जब सियार और भेड़िया शेरसिंह से अपने राजा बनने की इच्छा व्यक्त करते हैं, तो शेरसिंह उन्हें हाथी से लड़ने का प्रस्ताव देता है, ताकि यह साबित हो सके कि कौन ज्यादा योग्य है। लेकिन हाथी का सामना करने की बात से ही दोनों डर जाते हैं और राजा बनने की इच्छा छोड़ देते हैं। शेरसिंह उन्हें समझाता है कि साहस के बिना कोई भी बड़ा नहीं बन सकता। अंत में, दोनों अपनी कमजोरियों को स्वीकार करते हुए भाग जाते हैं, और शेरसिंह का शासन जंगल में कायम रहता है।
जंगल में एक सियार और भेड़िया रहते थे। यह जंगल हरा-भरा और बहुत ही सुंदर था। रंग-बिरंगे फूल यहां खिलखिलाते और अपनी भीनी-भीनी सुगंध बिखेरते। सियार अक्सर सोचता था, "काश! मैं इस जंगल का राजा होता, तो कितना अच्छा होता। हर कोई मेरी आज्ञा मानता और जंगल का हर प्राणी मेरे सामने सिर झुकाता। चारों ओर मेरे नाम की धूम मची रहती।" दूसरी ओर, भेड़िया भी ऐसे ही सपने देखता था। वह सोचता, "अगर मैं इस जंगल का राजा होता, तो मैं सियार पर हुक्म चलाता, लोमड़ी को नाकों चने चबवाता और जंगल के हर प्राणी पर अपनी ताकत का प्रदर्शन करता।"
लेकिन सोचने से क्या होता? इस समय जंगल पर शेरसिंह का राज था। किसी की हिम्मत नहीं थी कि वो शेरसिंह के सामने आँखें मिलाए।
एक दिन सियार खेत से खरबूजे खाकर घूमने निकला था। रास्ते में उसे भेड़िया मिल गया, जो किसी मरे हुए पशु पर हाथ साफ करके टहलने निकला था। दोनों ने इधर-उधर की बातें कीं। सियार बोला, "भेड़िया भाई! अगर मैं इस जंगल का राजा होता, तो कितना अच्छा होता। मुझे लगता है कि मैं तुमसे बड़ा हूँ।"
भेड़िया आँखें लाल-पीली करते हुए बोला, "सियार भाई, अपनी हद में रहो। जंगल का राजा मुझे होना चाहिए, क्योंकि मैं तुमसे बड़ा और ताकतवर हूँ। लेकिन मौका नहीं मिला, वरना अब तक मैं राजा बन चुका होता।"
दोनों बातें करते हुए आगे बढ़ रहे थे कि अचानक वे जंगल के असली राजा शेरसिंह से टकरा गए, जो पास की नहर से पानी पीकर लौट रहा था। सियार और भेड़िया घबराकर बोले, "महाराज! हम आपसे एक फैसला करवाना चाहते हैं।"
शेरसिंह ने कहा, "जल्दी कहो, क्या फैसला करवाना है?"
सियार बोला, "महाराज! भेड़िया कहता है कि वह मुझसे बड़ा है और उसे जंगल का राजा बनना चाहिए।"
शेरसिंह ने दोनों की बातें सुनीं और हंसते हुए बोला, "तुम दोनों में से कौन बड़ा है, इसका फैसला मैं अभी कर देता हूँ। कुछ ही देर में यहां से हाथी गुजरेगा। मैं तुम दोनों को हाथी से लड़वाता हूँ। जो भी हाथी से जीतेगा, उसे मैं आधे जंगल का राजा घोषित कर दूंगा। बाकी आधे जंगल का राजा मैं रहूंगा। लेकिन ध्यान रहे, तुम दोनों में से कोई भी हाथी से लड़े बिना भाग नहीं सकेगा।"
शेरसिंह की बात सुनकर कुछ देर के लिए दोनों मौन रहे, लेकिन फिर सियार रोने लगा। शेरसिंह ने कहा, "क्या बात है, मिट्टी के शेर? अभी तो हाथी आया भी नहीं है।"
सियार बोला, "महाराज! मुझे राजा बनने का कोई शौक नहीं है। आप भेड़िया को राजा बना दीजिए।"
कुछ देर बाद भेड़िया भी कांपने लगा। शेरसिंह ने हंसते हुए कहा, "भेड़िया महाशय, क्या ठंड लग रही है?"
भेड़िया कांपते हुए बोला, "जहांपनाह! मुझे राजा नहीं बनना है। सियार मुझसे बड़ा है, मैं यह मान लेता हूँ। लेकिन कृपया मुझे हाथी से मत लड़वाएं। वह मुझे सूँड़ में लपेटकर पटक देगा, और मेरी हड्डी-पसली टूट जाएगी।"
सियार और भेड़िया घबरा गए (Jungle Story )
थोड़ी सी आहट भी होती, तो सियार और भेड़िया को लगता कि हाथी आ रहा है। शेरसिंह ठहाका मारकर हंसते हुए बोला, "हाथी से तो तुम दोनों को जरूर लड़ना पड़ेगा। हो सकता है कि हाथी हार जाए और तुम दोनों में से कोई एक राजा बन जाए।"
दोनों रोते हुए बोले, "नहीं, बादशाह! दया कीजिए, हमें हाथी से मत लड़वाइए। हमें राजा बनना मंजूर नहीं।"
शेरसिंह ने कहा, "तुम दोनों आने वाली विपत्ति के भय से आतंकित हो गए हो। अभी तो हाथी आया भी नहीं है। तुम लोगों ने यह नहीं सोचा कि हाथी आएगा तो मुझसे भी तो लड़ेगा। जो विपत्ति की आशंका मात्र से घबरा जाते हैं, वे कभी बड़े नहीं बन सकते। तुम दोनों में साहस की कमी है। अतः तुम दोनों बेहद कमजोर हो।"
शेरसिंह यह सब कहता रहा, और सियार और भेड़िया वहाँ से भाग खड़े हुए। आज भी सियार और भेड़िया जंगल में मिलजुल कर रहते हैं, लेकिन वे अब छोटे-बड़े का भेदभाव नहीं करते। और आज भी जंगल पर केवल शेरसिंह का ही राज चलता है।