शिक्षाप्रद कहानी: वन का सनकी राजा और चीटियों की चतुराई सोनार वन का सनकी राजा लंपट सिंह अपनी सनक और मूर्खतापूर्ण फैसलों से वन के जानवरों की ज़िंदगी मुश्किल कर देता है। इस कहानी में भोलू की बुद्धिमत्ता और सहयोग की शक्ति के माध्यम से न्याय की विजय होती है। By Lotpot 30 Jul 2024 in Stories Jungle Stories New Update शिक्षाप्रद कहानी: वन का सनकी राजा और चीटियों की चतुराई Listen to this article 0.75x 1x 1.5x 00:00 / 00:00 शिक्षाप्रद कहानी: वन का सनकी राजा और चीटियों की चतुराई:- सोनार वन का राजा लंपट सिंह बहुत ही सनकी स्वभाव का शेर था। अपने ऊटपटांग और मुर्खतापुर्ण कारनामों से उसने वन के जानवरों का जीना मुश्किल कर दिया था। वह कब क्या फैसला कर बैठता कोई नहीं बता सकता था। लंपट सिंह का मंत्री, भोलू खरगोश बहुत ही बुद्धिमान था। वह कई बार महाराज से अपनी आदत बदलने का अनुरोध कर चुका था पर महाराज पर उसका कोई असर नही हुआ। भोलू भी लपंट सिंह की आदतों से तंग आ चुका था। एक दिन लंपट सिंह को मिठाई खाने की इच्छा हुई। उन्होंने तुरंत अपने सेवकों को मिठाई लाने का हुक्म दिया। कुछ ही देर में सेवकों ने कई तरह की रसीली और स्वादिष्ट मिठाई, महाराज के सामने परोस दी। लंपट सिंह ने पेट भर कर मिठाई खाई। मिठाई खाने के बाद उन्हें जोरों से नीद आने लगी, इसलिए वे बिना मुंह धोए ही अपने राजमहल में जाकर अपने बिस्तर पर खर्राटे लेने लगे। मिठाई की लालच में चीटियों का आगमन मिठाई खाते समय थोड़ी सी मिठाई, लंपट सिंह की मूंछों पर भी चिपक गई थी। इधर मिठाई की मीठी महक सूंघकर, चीटियों का एक दल वहां आ पहुंचा। धीरे-धीरे चीटियों का दल लंपट सिंह की मूंछो की ओर बढ़ने लगा। पर तभी एक बूजुर्ग, दादी चीटी, जो कि लपंट सिंह के स्वभाव से परिचित थी, उसने सबको रोकते हुए कहा, "कोई आगे मत बढ़ना, अगर लंपट सिंह जाग गए तो हम सब बुरे फसेंगे और लेने के देने पड़ जाएंगे। पता नहीं यह सनकी राजा हमें क्या सजा दे बैठे"। पर चिटियां कहां मानने वाली थीं। उन पर तो मिठाई खाने की धुन सवार थी। एक छोटी चीटी, जिसके मुँह से बराबर पानी टपक रहा था, बोली, "दादीजी, आप घबराइये नहीं हम महाराज की मूंछों पर लगी मिठाइयों को इतनी सफाई से खाएंगे की उन्हें पता भी नहीं चलेगा कि कोई उनकी मूंछों पर बैठा है, और अगर वह जाग भी गए तो हमें यहां से नौ-दो-ग्यारह होने में वक्त ही कितना लगेगा"। "बच्चों मेरा काम था तुमको समझाना, अब आगे तुम जानो। वैसे मैं तो अब भी कहती हूं कि यहां से चलकर हमें कहीं और भोजन की तलाश करनी चाहिए। इस सनकी राजा का कोई भरोसा नहीं है"। दादी चीटी ने सब चीटियों को एक बार फिर से समझाने की कोशिश की। पर अन्य चीटियां मिठाई की लालच में, लंपट सिंह की मूंछों पर जाकर मिठाई खाने लगी। लंपट सिंह का गुस्सा और सजा का आदेश कुछ चिटिया मिठाई खाने के चक्कर में लंपट सिंह के नाक में भी घुस गई। नाक में अन्य चीटियों के घुसते ही लंपट सिंह को जोर से छींक आई और उनकी नीद भी टूट गई। नींद टूटते ही, लंपट सिंह ने गुस्से से दहाड़ लगाई। दहाड़ सुनते ही कई चीटियों के प्राण निकल गए, बाकी बची कुछ चीटियां सिर पर पैर रखकर भाग गईं। चीटीयों को भागता देख, लंपट सिंह का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा। उन्होंने तुंरत अपने मंत्री भोलू खरगोश को बुलाया और कहा, "भोलू, तुम जाकर पूरे वन में यह एलान कर दो कि कल से हमारे वन में एक भी चीटियां नजर नहीं आनी चाहिए और सभी चीटियों को आज शाम तक यह वन छोड़ देने को कहो। यह मेरा आदेश है"। "लेकिन महाराज, एक छोटी सी गलती के लिए इतनी बड़ी सजा" भोलू ने लंपट सिंह को समझाना चाहा। "मैंने जो कह दिया वही मेरा आखिरी फैसला है। मैं आगे कुछ सुनना नही चाहता" लंपट सिंह ने कड़े शब्दों मे भोलू से कहा। भोलू खरगोश की समस्या समाधान योजना भोलू समझ गया कि महाराज को समझाना बेकार है। वह वहां से चला गया। भोलू ने जब चीटियों को जाकर लंपट सिंह द्वारा दी गई सजा के बारे में बताया तो सारी चिटियों में खलबली मच गई। वहां कुछ अन्य जानवर भी थे। उन्हें भी लंपट सिंह का आदेश सुनकर बहुत गुस्सा आया। "यह वन का राजा है या कोई जल्लाद! भला कोई राजा अपने प्रजा के साथ ऐसा बर्ताव करता है क्या?" सोनू बंदर ने अपना गुस्सा इजहार करते हुए कहा। मिन्नी गिलहरी, गिल्लु जीराफ सहित कई जानवरों ने सोनू की हां में हां मिलाई। "महाराज की मुंछों पर लगी थोड़ी सी मिठाई ही तो खा रहे थे हम, कोई चोरी या कत्ल थोड़े ही कर रहे थे। बस इतनी सी बात के लिए वन छोड़ने की सजा"। छोटी चीटी मुंह फुलाकर बोली। दादी चीटी, जो काफी देर से चुप बैठी थी, वह भी झुंझला कर बोली "मैंने तो पहले ही तुम सबको अगाह किया था। पर तुम मेरी बात सुने ही नहीं, अब बोरिया-बिस्तर समेटकर चलो दूसरे वन में मिठाई खाने"। "आप लोग शांत हो जाइए। यह वक्त लड़ने या एक दूसरे की गलतियां ढूंढने का नहीं है। बल्कि कोई ऐसा उपाय सोचने का है, जिससे चीटियों को इस वन से न जाना पड़े और हमें इस सनकी राजा से भी छुटकारा मिल जाए"। भोलू खरगोश ने बीच बचाव करते हुए कहा। भोलू खरगोश का पाताल लोक का प्लान सभी लोग बैठकर उपाय सोचने लगे। अचानक भोलू बोला, "मिल गया उपाय" और फिर उसने सभी जानवरों को अपना उपाय बताया। शाम होते-होते सभी चीटियां सोनार वन छोड़ कर चली गईं। दूसरे दिन भोलू चेहरा लटका कर लंपट सिंह के महल में पहुंचा और वन से चिटियों के चले जाने की सूचना दी। चिटियों के चले जाने की खबर सुनकर लंपट सिंह खुश हो गए, पर भोलू का लटका हुआ चेहरा देखकर उन्होंने पूछा, "भोलू लगता है, चीटियों के चले जाने का तुम्हें बहुत दुख है"। "नहीं, महाराज मैं तो दुखी हूं कि आपने वह सजा मुझे क्यों नहीं दी। अगर मुझे वह सजा मिलती तो मेरी तो जिन्दगी ही बदल जाती"। भोलू ने बुझे स्वर में कहा। "क्या मतलब?" लंपट सिंह ने आश्चर्य चकित होकर पूछा। "महाराज दरअसल आपने कल सभी चीटियों को वन छोड़ देने का आदेश दिया था। सभी चीटियों ने पताल लोक में जाकर शरण ले ली है। महाराज मैंने सुना है कि पाताल लोक में उनको न खाने की चिंता है और न ही कोई काम करने की। बस दिन भर केवल आराम ही आराम है। खाने-पीने की वहां कोई कमी नहीं है। मैंने तो यह भी सुना है कि वहां कोई राजा भी नहीं है। महाराज मैं सोचता हूं कि वहां जाकर मैं राजा बन जाऊं ताकि मेरे बाकी बचे दिन चैन से कटें"। भोलू ने अपनी उदासी का रहस्य खोला। लंपट सिंह की सजा और नई शुरुआत "हरगिज नहीं, मेरे रहते कोई दूसरा राजा नहीं बन सकता। चाहे वह पाताल लोक ही क्यों न हो। अगर पाताल लोक में कोई राजा बनेगा तो वह मैं बनूंगा। मुझे जल्दी से वहां जाने का रास्ता बतलाओ"। लंपट सिंह ने कहा। "ठीक है महाराज जैसी आपकी इच्छा। आज रात को मैं आपको पाताल लोक ले जाऊंगां। आप तैयार रहिएगा"। भोलू ने सिर झुकाकर कहा। रात होते ही, भोलू, लंपट सिंह को साथ लेकर पाताल लोक जाने के लिए निकल पड़ा। अंधेरा होने की वजह से लंपट सिंह को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। पर भोलू, उनका हाथ पकड़कर आगे बढ़ा जा रहा था। एक बड़े कुएं के पास रूककर भोलू बोला, "महाराज आ गई आपकी मंजिल। यही है पाताल लोक जाने का रास्ता। आप इसमें उतर जाइए। नीचे सभी लोग आपका इंतजार कर रहे हैं पर मेरी एक विनती है, पाताल लोक का राजा बनने के बाद मुझे ही वहां का मंत्री बनाइएगा"। अंधेरा होने की वजह से लपंट सिंह को कुंआ दिखाई नहीं दिया। उन्होंने सोचा कि यही पताल लोक जाने का रास्ता है। वह खुश होकर बोले, "जरूर-जरूर, पहले मैं जाकर पाताल लोक का राजा बन जाता हूं फिर तुम्हे मंत्री बनाउंगा"। इतना कहकर उन्होंने कुंए में छलांग लगा दी। कुँए में गिरते ही लंपट सिंह जोर से चिल्लाए, "अरे भोलू, मुझे यहां पाताल लोक जाने का रास्ता नजर नहीं आ रहा है। मुझे यहां से बाहर निकालो, मेरा तो यहां दम घुट रहा है"। "महाराज! यह पाताल लोक जाने का रास्ता नहीं बल्कि यमलोक जाने का रास्ता है। अब आप वहीं जाकर राजा बनिए"। कुंए में उपर से झाँककर भोलू बोला। उधर लपंटसिंह के कुंए में छलांग लगाते ही सभी जानवर और चीटियां जो कि पास ही छिपे हुए थे, बाहर निकल आए। लंपट सिंह जैसे सनकी और मुर्ख राजा से छुटकारा मिलने की खुशी में सबने भोलू को गोद में उठा लिया। तभी दादी चीटी बोली, "लंपट सिंह से छुटकारा दिलवाकर तुमने हम सबका भला किया है भोलू। तुम्हारी काबिलियत को देखकर हम आज से तुम्हें इस वन का राजा बना रहे हैं, अन्य सभी जानवरों ने भी तालियों की गड़गड़ाहट के साथ इस प्रस्ताव का सर्मथन किया। कहानी से सीख: अन्याय का अंत अवश्य होता है: जब कोई शासक या व्यक्ति अत्याचार करता है, तो अंततः उसे परिणाम भुगतने पड़ते हैं। न्याय और सच्चाई की हमेशा जीत होती है। बुद्धिमत्ता का महत्व: एक बुद्धिमान व्यक्ति या शासक केवल समझदारी और चतुराई से ही समस्याओं का समाधान कर सकता है और समाज में शांति स्थापित कर सकता है। सहयोग और रणनीति की शक्ति: किसी भी संकट से उबरने के लिए सामूहिक सहयोग और सही रणनीति का होना अनिवार्य है। इस प्रकार, कहानी हमें यह सिखाती है कि समझदारी और न्याय का मार्ग हमेशा सही और स्थिर समाधान की ओर ले जाता है। यह भी पढ़ें:- हिंदी जंगल कहानी: मुर्गाबी, कौआ और बुद्धिमान उल्लू हिंदी जंगल कहानी: सच्चे वफादार हिंदी जंगल कहानी: जंगल में चुनाव Jungle Story: धन का अभाव #हिंदी जंगल कहानी #kids hindi jungle story #The story of the lion and the rabbit #शेर और खरगोश की कहानी You May Also like Read the Next Article