हिंदी जंगल कहानी: सच्चे वफादार:- जंगल में जोनू शेर का दबदबा था। जंगल के सारे प्राणी उसकी आज्ञा का पालन करते थे। जोनू के शाही महल के रास्ते पर ही महात्मा नीकू हाथी की विशाल कुटिया थी। नीकू के उपदेश सुनने के लिए जोनू के साथ-साथ उसके तमाम मंत्रीगण भी जाया करते। (Jungle Stories | Stories)
एक दिन महात्मा नीकू ने उपदेश के उपरांत कहा- "भाईयों! मैं तपस्या ग्रहण करने के लिए स्वामी धर्मा बन्दर के आश्रम में जा रहा हूं। स्वामी धर्मा का आश्रम यहां से सैंकड़ों मील दूर नीले पर्वत के पीछे है, और मैं ठीक दो वर्ष बाद वापस आऊंगा। और मैं चाहता हूं तब तक जंगल में शान्ति बनी रहे। आप लोग सुख-दुख में एक दूसरे की मदद किया करें"।
यह सुनकर जोनू शोर ने बड़ी अकड़ के साथ कहा- "महात्माजी आप किसी तरह की चिन्ता मत कीजिए। जंगल की प्रजा की रक्षा करना मेरा फर्ज है"। जोनू ने दूसरे दिन महात्मा नीकू हाथी को महकते फूलों की माला पहनाई, फिर बैण्ड बाजों के साथ विदा किया। कई दिनों के सफर के उपरांत नीकू महात्मा धर्मा बन्दर के आश्रम में पहुंचे, धर्मा बन्दर प्रतिदिन उनको ज्ञान के नये-नये उपदेश देते। सांझ ढले आश्रम के बाहर आम के विशाल वृक्ष के नीचे दोनों दो घण्टे की कठोर तपस्या भी किया करते।
नीकू महात्मा को ज्ञान सीखते व तपस्या ग्रहण करते पूरे दो वर्ष व्यतीत हो चुके थे। एक दिन...
नीकू महात्मा को ज्ञान सीखते व तपस्या ग्रहण करते पूरे दो वर्ष व्यतीत हो चुके थे। एक दिन नीकू महात्मा ने धर्मा बन्दर से कहा- "मैंने आपके सानिध्य में काफी ज्ञान ग्रहण कर लिया है व तपस्या भी की है, अब मैं आपसे आशीर्वाद लेकर अपने जंगल की ओर जाना चाहता हूं"। धर्मा ने आशीर्वाद देते हुए कहा- "ठीक है, कल आप यहां से प्रस्थान कीजिए। आपके पहुंचने की खबर मैं आज रात को अपने शिष्य मुनमुन उल्लू के माध्यम से आपके जंगल के शासक के पास भिजवा दूंगा। (Jungle Stories | Stories)
सतरंगे जंगल के शासक को जैसे ही महात्मा नीकू के आगमन की खबर मिली तो उन्होंने पूरे जंगल में यह ऐलान करवा दिया कि महात्मा नीकू तपस्या ग्रहण करके पधार रहे हैं, उनका भव्य स्वागत किया जाए। तकरीबन तीन हफ्ते उपरांत महात्मा नीकू ने जंगल के शासक से कहा- "राजा जी। आपके पुराने मंत्री कहां गए? मुझे तो सारे मंत्रीगण नये-नये नजर आ रहे है?"
इस पर जोनू ने कहा- "मैंने अपने तमाम पुराने वफादार मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया है"।
"क्यों?" महात्मा नीकू ने पूछा। (Jungle Stories | Stories)
जोनू बोला- "दरअसल वे वफादार के नाम पर घोर कलंक थे, वे राजकाज के मामलों में बार-बार दखल दिया करते। यही नहीं वे मेरे बनाये गये कानूनों का मजाक भी उड़ाया करते। हर वक्त मेरी आलोचना करते रहते थे। भला ऐसे वफादार मंत्रियों को रखकर मैं क्या करता? हां मैंने जो नये मंत्री नियुक्त किये हैं। वे हर मामले में मेरी खूब प्रशंसा करते हैं और बार-बार मुझसे कहते हैं आप एक कुशल व बुद्धिमान शासक हैं"।
यह सुनकर नीकू महात्मा ने गंभीर स्वर में कहा- "राजा जी, आपने यह ठीक नहीं किया वफादार वे नहीं, जो आपकी हर बात की ताली बजाकर तारीफ करें, बल्कि सच्चे वफादार तो वे ही हैं जो आपके दोषों को बताए"। यह सुनकर जोनू को बोध हुआ- "दरअसल सच्चे आलोचक ही सच्चे वफादार होते है"।
फिर जोनू ने अपने तमाम पुराने मंत्रियों को सम्मान के साथ पुनः बुलाया, उनसे क्षमा मांगी और कहा- "मैंने आप लोगों को गलत समझा था। हां आप लोग पुनः अपने पद पर कार्य कीजिए"। जोनू ने अपने नये मंत्रियों को उनके पद से हटा दिया। अब नीकू महात्मा ने सूंड उठाकर अपनी विशाल कुटिया की तरफ जाते हुए कहा, याद रखो- "जीवन के सफर में सच्चे आलोचक ही सच्चे वफादार होते हैं"। (Jungle Stories | Stories)
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