Jungle Story: छुटकी गिलहरी

एक थी गिलहरी, बहुत छोटी सी। मां उसे प्यार से छुटकी कहती थी। छुटकी दिनभर अपने कोटर में उछल-कूद मचाती थी। मां गिलहरी जब भी दाना-दुना लेने कोटर से बाहर जाती, उसे छुटकी की ही चिन्ता लगी रहती।

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छुटकी गिलहरी

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Jungle Story छुटकी गिलहरी:- एक थी गिलहरी, बहुत छोटी सी। मां उसे प्यार से छुटकी कहती थी। छुटकी दिनभर अपने कोटर में उछल-कूद मचाती थी। मां गिलहरी जब भी दाना-दुना लेने कोटर से बाहर जाती, उसे छुटकी की ही चिन्ता लगी रहती।छुटकी गिलहरी को फुदकते देख उसकी मां बड़ी खुश होती थी, पर कभी-कभी उसके भोलेपन को देखकर उसे डर भी लगने लगता था कि कहीं उसकी छुटकी उसके हाथ से न निकल जाये। एक दिन उसे समझाते हुए वह बोली- "बिटिया रानी! अभी तू बहुत छोटी है, भूलकर भी कभी कोटर के बाहर मत जाना। कोटर के बाहर तेरे लिए खतरा ही खतरा है। जब मैं घर पर नहीं हूं तब भी तू घर में रहना"। (Jungle Stories | Stories)

"मां! आप मेरे लिए परेशान न हों। मैं समझदार हो गई हूं। आपकी बात भला कैसे टाल सकती हूं?"

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मां को खुश करने के लिए छुटकी बोली, पर मन ही मन उसने मां से छिपकर बाहर निकल गई। बाहर की दुनिया उसे बड़ी...

मां को खुश करने के लिए छुटकी बोली, पर मन ही मन उसने मां से छिपकर बाहर निकल गई। बाहर की दुनिया उसे बड़ी लुभावनी लगी थी। वैसे भी जब मां घर में नहीं होती थी तब उसे कोटर का सूनापन बड़ा खलता था। कोटर में अकेले रहना उसे बिल्कुल पसन्द न था। एक दिन जब गिलहरी माँ भोजन का प्रबन्ध करने गई तभी पीछे से छुटकी गिलहरी भी कोटर से बाहर निकल गई। बाहर की सुन्दर दुनिया को देखकर एक बार तो उसकी आंखे ही चुंधिया गई। ऐसी सुन्दर दुनिया की तो वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी। (Jungle Stories | Stories)

हरे-भरे बगीचे में घूमना उसे बड़ा अच्छा लगा। वह बगीचे की हरी-भरी घास पर फुदकने लगी। उछलते-कूदते वह एक नन्‍हीं सी झाड़ी पर चढ़ गई। अपने फुदकने से झाड़ी की पत्तियों को हिलते देख छुटकी गिलहरी को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह सोचने लगी कि अब वह बड़ी हो गई है। तभी तो उसके उछलने से पत्ते तक हिलते हैं। छुटकी को इस बात का अभिमान हो गया कि अब वह अपनी सुरक्षा स्वयं कर सकती है। बड़े जानवर अब उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते।

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माँ झूठ कहती है कि मैं अभी छोटी हूं अब मां भी मुझे नहीं बहका सकतीं। उसके पास ही घूमती नन्‍ही चुहिया ने खाने के लिए उसे मूंगफली भी दी। छुटकी ने चुहिया को धन्यवाद दिया और कुतर-कुतर कर मूंगफली खाने लगी। अब छुटकी गिलहरी और अधिक मस्त होकर कूदने-फुदकने लगी। उसकी खुशी का कोई ठिकाना न था। तभी उसे कुछ दूरी पर एक कुत्ता दिखाई दिया जो ललचाई नजरों से उसे घूर रहा था। कुत्ते को देखकर छुटकी एक दम घबरा उठी। डर के मारे वह पसीना-पसीना हो गई। उसे मां की याद सताने लगी। वह सोचने लगी कि मां ठीक ही कहती थी कि मैं अभी बहुत छोटी हूं, मुझे घर से बाहर नहीं आना चाहिए था। (Jungle Stories | Stories)

अब वह क्या करे? कैसे अपने घर लौटे? कैसे अपने प्राण बचाये? तभी उसने देखा कि उसकी मां उसे खोजती हुई इधर-उधर भटक रही है। मां को देखते ही छुटकी की जान में जान आई। उसने तुरंत मां को आवाज लगाई। बेटी पर कुत्ते को घात लगाये देखकर मां गिलहरी अन्दर तक कांप गई। बेटी पर से कुत्ते का ध्यान हटाने के लिए वह भी वहां आकर उछल-कूद करने लगी। इसी बीच उसने छुटकी गिलहरी को कहा- "बिटिया! मौका देखकर पास वाले पेड़ पर चढ़ जा, कुत्ता वहां नहीं पहुंच सकेगा"।

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छुटकी गिलहरी पेड़ पर चढ़ने लगी, पर उसे पेड़ पर चढ़ने का अभ्यास नहीं था। पीछे-पीछे मां गिलहरी भी उसे सहारा देते हुए पेड़ पर चढ़ गई। पेड़ की ऊंची डाल पर चढ़ कर मां-बेटी ने चैन की सांस ली। छुटकी गिलहरी मां गिलहरी से लिपट गई। उसने मां के सामने कसम खाई कि आगे से वह हमेशा उसका कहना मानेगी। वह समझ गई थी कि उसे अपनी शक्ति पर अभिमान नहीं करना चाहिए। अभी भी पेड़ के नीचे कुत्ता भौंक रहा था, पर मां गिलहरी को अब उसका डर न था। छुटकी तो मां की गोद में सुरक्षित थी ही। (Jungle Stories | Stories)

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