/lotpot/media/media_files/MS5MlLATZeFpKDALghhd.jpg)
गोलू की चतुराई
जंगल की मजेदार कहानी: गोलू की चतुराई:- नंदन वन की घनी झाड़ियों में चम्पा नाम की एक चुहिया रहती थी। जितना सुन्दर नाम उतनी ही सुन्दर खुद भी थी। उसके एक बच्चा था- गोलू बड़ा शरारती और नटखट। जितना शरारती उतना ही बुद्धिमान और साहसी भी। एक बार चम्पा किसी काम से बाहर जा रही थी। जाते समय गोलू से कह गई, "घर पर ही रहना और घर का ध्यान रखना, आजकल बिल्ली मौसियों ने बहुत आंतक मचा रखा है, इसलिए जब तक मैं नहीं आती घर से मत निकलना"।
चम्पा के जाने पर कुछ देर तक गोलू घर पर रहा, किन्तु काफी देर होने पर वह घर में बैठे-बैठे ऊब गया, तो सोचा थोड़ी देर बाहर खेल ही लिया जाए। उसे अपनी मां की हिदायत अच्छी तरह से याद थी। इसलिए वह अपने घर के आस-पास ही खेल रहा था। लेकिन खेलते-खेलते वह कब पास ही पहाड़ी पर पहुंच गया? यह उसे मालूम तब चला, जब अंधेरा होने लगा।
तभी उसे बिल्ली मौसी का ख्याल आया तो वह और भी डर गया। वह सोचने लगा अभी कोई बिल्ली आएगी और...
तभी उसे बिल्ली मौसी का ख्याल आया तो वह और भी डर गया। वह सोचने लगा अभी कोई बिल्ली आएगी और उसे खा जाएगी। जल्दी से जल्दी यहां से चलना चाहिए नहीं तो आज मां इंतजार ही करती रहेगी। ऐसा सोचकर वह ज्यों ही चलने को हुआ चट्टान के पीछे से आवाज आई, "भांजे!" गोलू ने मुड़कर देखा, वह भूरी बिल्ली ही थी। अरे बाप रे! आ गयी कमबख्त, अब कया होगा? वह सोचने लगा। उसकी मां कहा करती थी कि मुसीबत के समय साहस और बुद्धिमानी से काम लेना चाहिए। गोलू ने मन में सोचा और कलेजा मजबूत करते हुए बोला, "अरे मौसी जी आप यहां हैं, आपको मैं कब से ढूंढ रहा हूं"।
"मुझे ढूंढ रहे हो, भला क्यूं?" मौसी ने आश्चर्य से पूछा।
"बात ऐसी है मौसी जी कि मेरी मां ने मुझे आज ही बताया कि आप बहुत अच्छा गाती हैं, सो मैं आपका गाना सुनने चला आया, क्या आप मुझे गाना नहीं सुनाएंगी"।
"बेवकूफ हैं दोनों" मौसी ने मन में सोचा और खुश होते हुए बोली- "हां-हां क्यों नहीं अवश्य सुनाऊंगी। वह जानती थी कि यह पिद्दी सा चूहा यदि चकमा देकर भागने की कोशिश करेगा, तो भी भागकर आखिर जाएगा कहां? मैं एक छलांग में पकड़ कर इसका काम तमाम कर दूंगी। पहले इसकी अंतिम इच्छा भी पूरी कर दूँ। ऐसा सोचकर वह गाने लगी, किन्तु गोलू ने उसे बीच में टोक दिया, "अरे! यह क्या कर रही हैं, यह कहां गा रही हैं, अच्छे कलाकार हमेशा मंच पर चढ़कर गाते हैं ताकि उसकी आवाज चारों ओर फैल सके"।
"हां यह ठीक है", कहते हुए मौसी चट्टान पर चढ़कर पालथी लगाकर अपनी चिर-परिचित शैली में गाने लगी। गाना खत्म होते ही गोलू ने जोरदार तालियां बजाई और कहा- "वाह! बिल्ली मौसी वाह, क्या कंठ है आपका"। अपनी तारीफ सुनकर बिल्ली फूली नहीं समाई।
"मौसी सुना है आप प्रभु के भजन भी बहुत अच्छा गाती हैं", गोलू बोला।
"हां-हां क्यों नहीं। मैं तो रोज सुबह उठकर प्रभु के भजन करती हूं। आस-पड़ोस वाले सत्संग-समारोह में मुझे बुलाते हैं।
"सुनाओ न बिल्ली मौसी फिर से एक भजन। मैं आपके मधुर कण्ठ से प्रभु के भजन सुनकर कुछ देर प्रभु की भक्ति में लीन हो जाना चाहता हूं"।
बिल्ली ने सोचा इसकी ये अंतिम इच्छा भी पूरी कर ही देती हूं और वह भजन सुनाने लगी- "प्रभु मेरे अवगुण चित न धरो"।
"बिल्ली का भजन शुरू होते ही गोलू ने आंखे बन्द कर लीं"।
"क्या मेरा भजन इतना घटिया है, जो तुम्हें नींद आने लगी", बिल्ली बोली।
"नहीं मोसी! ये बात नहीं है। दरअसल आप तो जानती ही हैं कि प्रभु के भजन हमेशा आंखे बन्द करके ही सुनने चाहिए। इससे ईश्वर में श्रद्धा बढ़ती है और प्रभु प्रसन्न भी रहते हैं। है न मौसी", गोलू बोला।
"हां-हां गोलू हां। मैं तो भूल ही गई दरअसल मैं भी जब सुबह-सुबह भजन गाती हूं न, तो आंखे बंद करके ही गांती हूं। वह तो अब दिन है न इसलिए ऐसा नहीं कर रही"।
"नहीं मौसी। बात चाहे सुबह की हो या दिन की भजन हमेशा आंखे बंद करके ही गाने चाहिए, वरना प्रभु रूष्ट हो जाते हैं"। गोलू गंभीर होकर बोला।
गोलू की गंभीरता देखकर बिल्ली आंखे बंद करके भजन सुनाने लगी। बिल्ली "प्रभु मेरे अवगुण चित न धरो" गाती रह गई और गोलू न जाने कब वहां से गोल हो गया।
सीख: इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि बुद्धिमत्ता और साहस से बड़ी समस्याओं को भी हल किया जा सकता है। गोलू की चतुराई ने उसे बिल्ली मौसी से बचाया।