Fun Story: जूते चप्पल से आई अक्ल

पहले मेरी हल्दी-धनिया तथा अन्य मसालों की दुकान थी। हल्दी नाक में घुसती थी, मिर्च आंखों को जलाती रहती थी और मैं सदा दुखी रहता था। आमदनी भी कुछ खास नहीं थी। दुकान चलती ही नहीं थी तो आमदनी कहां से होती?

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जूते चप्पल से आई अक्ल

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Fun Story जूते चप्पल से आई अक्ल:- पहले मेरी हल्दी-धनिया तथा अन्य मसालों की दुकान थी। हल्दी नाक में घुसती थी, मिर्च आंखों को जलाती रहती थी और मैं सदा दुखी रहता था। आमदनी भी कुछ खास नहीं थी। दुकान चलती ही नहीं थी तो आमदनी कहां से होती? फिर कुछ ऐसा हुआ कि मैंने धंधा बदल दिया। पुराने जूते-चप्पल इकट्ठा करता था और बोरे में लादकर मण्डी में बेच आता था। अक्सर इसी तरह टमाटर, गोभी और बैगन वगैरह भी इतना इकट्ठा कर लेता था कि मैं उन्हें मण्डी लेजाकर थोक के भाव में बेच सकता था। मण्डी के सारे थोक व्यापारी मुझे जानने लगे थे, इसलिए कि जितने सस्ते दामों में मैं उन्हें माल बेचता था, उतने में तो कोई किसान या मोची भी नहीं दे सकता था। (Fun Stories | Stories)

लोग समझते थे कि मेरा दिमाग खराब हो गया है और मैं अपने आप को लुटा रहा हूं, पर मैं खुश था। मेरा यह धंधा बड़ी तेजी के साथ फल-फूल रहा था। जेब से कुछ खर्च नहीं करना पड़ता था कि शहरों में मुशायरे और कवि सम्मेलन दिन-रात चलते रहे। पब्लिक हर मुशायरे को हूट करती रहे। हरेक कवि सम्मेलन में जूते-चप्पल उछलते रहे और मेरा धंधो निखरता रहे।

मुझे अचानक मुशायरों और कवि सम्मेलन में जाने का शौक हो गया है। दोस्तों से पूछता रहता हूँ, अगला कवि सम्मेलन कब होगा? मैं सिर्फ यह खबर तलाशता रहता हूं कि अगला मुशायरा कब होगा? (Fun Stories | Stories)

पड़ोसी और घरवाले मुझमें अचानक पैदा होने वाली इस साहित्यिक रूचि पर हैरान हैं। और मैं बार-बार धन्यवाद देता हूं रहीमू कसाई के लड़के को, जिसके कारण मेरे जीवन में यह क्रांति आई। बात कुछ समय पहले की है। रात को खाना खाने के बाद हम सैर को निकले थे। नुक्कड़ वाले पनवाड़ी से एक उधार का पान खाकर, एक फिल्‍मी गीत गुनगुनाते हुए अभी दो ही कदम आगे बढ़े थे कि पीछे से आवाज आई, जरा सुनिए भाई साहब। हमने पीछे मुड़कर देखा। एक लड़की हमें पुकार रही थी।

लड़की कुछ करीब आई तो मेरे साथी के मुँह से निकला, अरे! यह तो रहीमू कसाई का लड़का धीगे है। मैंने जरा आंख फाड़कर देखा और मुंह ही मुंह में बड़बड़ाने लगा, 'आग लगे इस फैशन को, न लड़की समझ में आती है, न लड़का।' आखिर धीगे की जुल्फे थोड़ी लंबी थी ना। (Fun Stories | Stories)

तभी हमें एहसास हुआ कि पीछे मुड़कर हमने गलती की है, क्योंकि रहीमू कसाई के लड़के के बारे में मशहूर था कि वह आधा पागल है। उस पर किसी मरे हुए...

तभी हमें एहसास हुआ कि पीछे मुड़कर हमने गलती की है, क्योंकि रहीमू कसाई के लड़के के बारे में मशहूर था कि वह आधा पागल है। उस पर किसी मरे हुए कवि या शायर की बेचैन आत्मा का कब्जा है। इसलिए वह सोते में, बाथरूम में, मतलब कि हर पल और हर जगह कवितायें बका करता है। जो भी उसके फंदे मे फंस गया है, एक बार तो समझिए कि वह बेचारा गया काम से। आपको कम से कम दो दर्जन कविताएं, चार सौ दोहे और साढ़े ग्यारह दर्जन शेर जरूर हजम करने पड़ेंगे और हजम करने के साथ-साथ आपको वाह-वाह भी करनी पड़ेगी। आपको चाय-पान खिलाना तो दूर, वह उल्टा ही आपसे कुछ वसूल कर लेगा। इसलिए मुहल्ले का कोई आदमी अब उसके फंदे में नहीं फंसता। आज हमारी शामत आई थी जो हमने मुड़कर देखा था।

हमारा दोस्त तो भागने में कामयाब हो गया मगर मैं ज्योंही भागने को मुड़ा, वह मेरे सिर पर पहुंच चुका था। (Fun Stories | Stories)

“भाई साहब, किधर चल दिए हो। इधर तो आओ, मेरे दिल को इतना न सताओ।" वह एक पुराने फिल्‍मी गीत के मुखड़े से संबोधित हुआ।

मैंने कुढ़कर कहा 'यह तो किसी फिल्‍मी गीत की लाइन है'। वह बोला, "क्‍या बात है भाई साहब, यह गीत तो अभी-अभी मैंने आपको देखकर बनाया है। खैर, यह तो बताते जाइए कि अभी-अभी जो शेर आप गुनगुना रहे थे, वह किसका लिखा हुआ था?"

"अरे भाई, यह शेर-वेर नहीं है। यह फिल्‍मी गीत का मुखड़ा था।'' हमने पीछा छुड़ाने की कोशिश की। (Fun Stories | Stories)

“गलत, एकदम गलत।" उसने खास अंदाज से हाथ हिलाते हुए कहा “यह हमारा कहा हुआ शेर है। जो हमने सन 47 से पहले लिखा था। इसका एक मुखड़ा और है। वह है ''आई-आई या करूं मैं क्या सुकु-सुकु।'' और इसके बाद वह रेडियो की तरह कान फाडे जा रहा था। उसने मेरी कमीज का बटन पकड़ रखा था और गाने की रफ्तार ऐसी थी मानो जम्बो-जेट हो।

मैं गुस्से से सिर पीट रहा था। आखिर एक उपाय समझ में आया। मैंने कमीज का बटन तुड़वा दिया और भाग निकला। आधे घंटे बाद जब मैं लौट रहा था तो देखा कि वह वही बटन हाथ में पकड़े गाए जा रहा है। मैंने सोचा कि सीधा भाग चलूं, मगर वही हुआ जिसका डर था। हम अभी सिर पर पैर रखकर भागने ही वाले थे कि उसको जैसे होश आ गया। और मैं फिर पकड़ लिया गया। “अजी, आप कहां जा रहे हैं?'' आज हम लोगों का कवि सम्मेलन है।आपको उसमें चलना ही पड़ेगा।”

कवि सम्मेलन का नाम सुनते ही हमारे हाथ की मक्खियां उड़ गईं। मुझे वह मुशायरा याद था, जिसमें मैं सभापति बनाया गया था। इस मुशायरे के गीत और गजलें सुनकर श्रोताओं को इतना जोश आ गया कि उन्होंने अपनी चप्पलों और जूतों के अलावा सडे-गले अंडे और टमाटर भी बरसाए थे। मुझे तो उस दिन एक जोड़ी नई चप्पल भी मुफ्त में गंवानी पड़ी थी। (Fun Stories | Stories)

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इसी तरह एक कवि सम्मेलन में जाने का मौका मिला था। दोस्तों के बहकाने पर। मैं भी माइक्रोफोन पर गीत गाने के लिए उठ खड़ा हुआ। एक घंटे बाद जब मैंने अपना गीत खत्म किया और आंखे खोलकर देखा तो पण्डाल में एक भी आदमी न था। अलबत्ता सामने के पेड़ पर बैठा एक उल्लू हमें हैरानी से घूर रहा था।

हां, तो मैं कह रहा था, रहीमू कसाई के लड़के की बात। फंस तो चुका ही था मैं। उसके साथ चल पड़ा। एक टूटी-फूटी झोपड़ी में दाखिल होते ही चरस की बदबू ने पूरे जोश से हमारा स्वागत किया। वहां सारे हिप्पी जमा थे।
कवि सम्मेलन पहले ही शुरू हो चुका था। एक सज्जन चरस का दम मारते हुए उठे और कहा 'एक कविता आपकी सेवा में पेश करता हूँ"। और हमारी सेवा में उन्होंने यह कविता पेश की “हम तुम एक जंगल से गुजरे और शेर आ जाएं।''

“ठहरो।” एक मरियल आवाज सुनाई दी। उन सज्जन का मुखड़ा अधूरा ही रह गया। एक दूसरे सज्जन उठ खड़े हुए और उन्होंने चरस के नशे में झूमते हुए गुस्से से कहा, यह..यह..यह आदमी चोर है। इसने यह गीत चुराया है। इस गीत का मालिक मैं हूँ।''

पहले वाले खपच्ची पहलवान ने कहा 'यह झूठ बोलता है। यह गीत मेरा है।' इसी तू-तू, मैं-मै में दोनों कवि एक दूसरे से भिड़ गए। फिर कया था? किसी ने किसी का साथ नहीं दिया। सारे चरसिए अपनी-अपनी चप्पलें उतार कर उन दोनों के सिरों की तरफ उछालने लगे, दोनों को चप्पलें पड़ी। दोनों के सिर में गुम्मड़ निकले। (Fun Stories | Stories)

और ठीक दो हफ्ते के बाद इसी चप्पल युद्ध की मेहरबानी से हमारी एक पुराने जूतों-चप्पलों की दुकान खुल गई। नए जूते और चप्पलें इतने महंगे हो गए हैं कि हमारी दुकान का माल देखते ही देखते खत्म हो गया और मांग बहुत बढ़ गई। और अभी हम बड़ी बेसब्री से फिर किसी आधुनिक कवि-सम्मेलन या मुशायरे का इंतजार कर ही रहे थे कि खबर मिली की ठीक उसी जगह, जहां हमने चप्पल और जूते बटोरे थे, एक बहुत बड़ा मुशायरा होने जा रहा है। लेकिन इस बार मैं अपने इस नए कारोबार को बड़े पैमाने पर करना चाहता था, इसलिए इस संघर्ष के लिए मुझे एक साझीदार की जरूरत पड़ी। मैंने अपने एक मित्र से बात की। वह मित्र बेकार थे। यानी कविताएं लिखा करते थे। कवि सम्मेलनों का मौसम था। हमारा कारोबार बड़ी तेजी से फूला-फला। जल्दी ही हमें यह भी मालूम हुआ कि ऐसी जगह पर जूते चप्पलों के अलावा तो टमाटर-बैंगन और केले फेंके जाते हैं, हम उन्हें भी इकट्ठा करके थोक के भाव बाजार में बेच सकते हैं।

देखते-देखते हम पुराने जूते-चप्पलों के थोक व्यापारी के रूप में मशहूर हो गए। सब्जी मण्डी में भी हमारे नाम का डंका बजने लगा। जिस तरह हर धंधे में थोड़ा बहुत खतरा है, वैसे ही इसमें भी कभी-कभी खतरे से गुजरना पड़ता है। माल बटोरते-बटोरते श्रोताओं के हमले का शिकार अक्सर हम भी हो गए हैं। मगर बात इससे ज्यादा गंभीर नहीं हुई कि सिर में दो-चार गुम्मड़ निकल आएं।

इस धंधे में फिलहाल कोई कम्पीटिशन नहीं है। हमारा एकछत्र राज है। फिलहाल हम दोनों हाथों से माल बटोर रहे हैं। न आंख में मिर्च लगती है और न नाक में हल्दी घुसती है। (Fun Stories | Stories)

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