हिंदी प्रेरक कहानी: चाटुकारों का अंत

राजा वीरप्रताप, जो अपने नाम के विपरीत, नालायक और आत्ममुग्ध था, अपने राज्य में केवल चाटुकारों से घिरा हुआ था। मंत्री ने पड़ोसी राज्य के आक्रमण की चेतावनी दी, तो राजा ने सैनिकों को तैयार नहीं किया। परिणामस्वरूप, राजा युद्ध में बंदी बन गया।

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चाटुकारों का अंत

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हिंदी प्रेरक कहानी: चाटुकारों का अंत:- अवध प्रदेश का राजा एकदम नालायक था। राजा का नाम था वीरप्रताप। परन्तु उसके नाम के विपरीत उसका काम था। उसके राज्य में सिर्फ चाटुकार ही भरे पड़े थे। चाटुकार राजा की झूठी तारीफ करके अपना काम निकालते थे। चाटुकारों से घिरा राजा स्वयं को बहुत प्रतापी समझता था।

एक दिन की बात है। मंत्री ने राजा के पास आकर कहा, "महाराज, गुप्तचरों ने सूचना दी है कि पड़ोसी राज्य से आक्रमण होने वाला है। हमें अपने सैनिकों को तैयार रखना चाहिए"।

अरे! महाराज वीरप्रताप तो अपनी प्रशंसा सुन कर फूले हुए थे। उन्होंने मंत्री को डांटा, "मंत्री क्या तुम्हारी बुद्धि घास चरने गई है? क्या तुम जानते नहीं मैं कितना प्रतापी हूं! मैं तो अकेले ही दुश्मन की फौज को तहस-नहस कर दूंगा"।

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वहां बैठे चाटुकारों ने महाराज की हां में हां मिलाई। महाराज ने खुश होकर चाटुकारों को इनाम में सौ मोहरें दीं।

मंत्री खिन्‍न होकर वहां से चला गया। कुछ ही दिनों के बाद पड़ोसी राज्य के राजा ने वीरप्रताप के राज्य पर...

मंत्री खिन्‍न होकर वहां से चला गया। कुछ ही दिनों के बाद पड़ोसी राज्य के राजा ने वीरप्रताप के राज्य पर आक्रमण कर दिया। राजा अचानक इस हमले से तैश में आ गया। राजा ने आव देखा न ताव, बस कुछ चाटुकारों को लेकर शत्रु के साथ युद्ध करने को निकल पड़ा। रास्ते भर चाटुकार राजा की झूठी प्रशंसा करते रहे। राजा भी झूठी प्रशंसा से फूल कर कुप्पा हो रहा था। कुछ ही देर के बाद राजा युद्ध भूमि में जा पहुंचा। युद्ध भूमि में पहुंचते ही चाटुकार पीछे हट गए। राजा अकेले ही दुश्मनों से जा भिड़ा। शक्तिहीन राजा को दुश्मनों ने तुरंत बंदी बना लिया।

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बंदी बनते ही राजा को अपनी ताकत का एहसास हुआ। डर के मारे वह थर-थर कांपने लगा। दुश्मन राजा के ऊपर तरह-तरह के अत्याचार करने लगे। राजा  को स्वयं पर गुस्सा आ रहा था कि क्‍यों उसने मंत्री की बात नहीं मानी थी। राजा के आंखों में पश्चाताप के आंसू आ गए।

अचानक राजा को फौजों का शोर सुनाई पड़ा। उसने देखा कि मंत्री ने अपनी फौज के साथ दुश्मनों के ऊपर आक्रमण कर दिया है। दुश्मन एक-एक करके मरने लगे। 

राजा को यह देखकर जोश आ गया। राजा भी किसी तरह से अपने बंधन तोड़ कर मंत्री के पास जा पहुंचा। राजा को सही सलामत देखते ही मंत्री और राजा के सैनिकों में नया उत्साह भर गया। वे दुगने जोश से दुश्मनों पर हमला करने लगे। जल्दी ही दुश्मनों का सफाया हो गया।

युद्ध जीतने के बाद राजा ने अपने मंत्री एवं सैनिकों से माफी मांगी। राजा ने सभी चाटुकारों को राज्य से बाहर निकाल दिया। राजा ने राजमहल के बाहर एक तख्ती टंगवा दी। तख्ती पर लिखा हुआ था- "चाटुकारों को राज्य में रहना मना है"।

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